बिरबल की खिचड़ी (पोवारी)
बिरबल की खिचड़ी (पोवारी)
थंडीका दिवस होता। सम्राट अकबर न एक दिवस एक अजब घोषणा करीस। ओको महल को सामने को जलकुंड मा रातभर कोणी उभो रहे ओला शेंभर सोनो की मुद्रा बक्षीस मा भेटेत, अशी दवंडी देयेव जासे। वा आयेकशान एक गरीब माणूस असो साहस करन तयार होसे। वु रातभर ओन जलकुंड मा कुडकुडत उभो रव्हसे। सकाळी अकबर आवसे, तब भी वु आपलो जागापरच उभो रव्हसे। पर अकबर की नजर जलकुंड जवळ ठेयेव एक लहानसो दिवो पर जासे।
अकबर पहारेदार ला बिचारसे, "दिवो रातभर पेटत होतो का?" पहारेदार हो कसे। रातभर दिवो पेटत रहेव लक जलकुंड मा उभो रव्हने वालो माणुस ला गर्मी भेटी रहे असो अनुमान अकबर काहळसे। अना शेंभर सोनो की मुद्रा को बक्षीस देता नही आवनको असो सांगसे। वु गरीब माणूस बिचारो दु:खी होसे। ओला लगसे की आता बिरबलच आपलोला न्याय मिळाय देये। वु बिरबल कर जासे अना पुरी घटना सांगसे। बिरबल ओला कसे, 'तू आता घर जाय। मी देखुसु का करनको से त। '
दुसरो दिवसं दरबार भरसे। रोज टाईमपर आवनेवालो बिरबल अज आयेव नही, म्हणून अकबर सेवक ला बुलावन पठावसे। सेवक जायशान वापस आवसे अना बिरबल खिचडी शिजाय रही से असो सांगसे। बिरबल खिचडी शिजेव को बादमाच आवनेवालो से म्हणून राजा दरबार को कामला सुरु करसे। दुपार भयी तरी बिरबल नही आयेव म्हणून राजा दुसरो सेवकला पठावसे। दूसरो सेवक भी बिरबल की खिचडी शिजीच नही म्हणून सांगसे।
अकबर ला आश्चर्य होसे। दरबार खतम भयेव तरी बिरबल आयेव नही म्हणून अकबरच ओको घर जासे। वहां गयेव पर देखसे त का, बिरबल न लहान चूलो पेटायशान बहुत उचोपर एक हांडी मा खिचडी शिजावन ठेयी सेस। अकबर हाससे अना कसे, अरे बिरबल तू एवढो हुशार अना चतुर। तरी तोला एवढो समझ नही, की खिचडी अना ईस्तो मा एवढो अंतर रहे त वा गरम कशी होये अना कब शिजे?
तब बिरबल कसे, 'क्षमा करो महाराज, दूर को दिवो की गर्मी लक एक माणूस रातभर कडक थंडी मा उभो रह्य शकसे, मंग येनच न्यायलका खिचडी शिजन ला का हरकत से? राजा ला चूक ख्याल मा आयी। रातभर पाणी मा उभो रव्हने वालो माणूसला वु लवकर बुलावन पठावसे अना शेंभर सोनो की मुद्रा को बक्षीस देसे।