गोवर्धन बिसेन

Children Stories

4.1  

गोवर्धन बिसेन

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मोरी खासरकी बरात

मोरी खासरकी बरात

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मोरो  बिह्याकी बरात

एक   होती  यादगार।

आयी होती खासरमा

मोरी  भार्या  दिलदार।


सन १९९३ को सुरुवातला म्हणजेच ठिक १ जानेवारीला बुलडाणा जिल्हा परिषदको मोताळा पंचायत समितीमा सहाय्यक कनिष्ठ अभियंताको पदपर नौकरी ज्वाइंट करेव। उमर भी २६ साल भय गयी होती। अजी कवन बस्या, "गोवर्धन, यंदा बिया कर लेबीन। मोरी तबीयत भी चांगली नही रव्ह।" ओन साल दुय तीन ठिकाणका रिस्ता भी आया पर योग नही आया रहेत म्हणून ओन सालं काही बिया जमेव नही। जानेवारी १९९४ को पयलो हप्तामा नागपूर मेडिकलमा किडनीस्टोनको ऑपरेशनको घनी अजी मोरो बिया देखेव बिनाच येन दुनियाला सोडस्यानी चली गया।

दुसरो सालं म्हणजेच १९९४ माच मुंडीकोटामा रिस्ता पक्को भयेव। बियाकी तारीख भी १० जून निकली। बियासाती २३ दिवसकी सुट्टी मंजूर भयी अना मी ८ दिवस पयले बुलडाणा लक बड़ेगाव आयेव। आमरो डोस्कापर अजी को सहारा नोहोतो तसोच मोरो मोठो भाई भी ५ साल पयलेच स्वर्गवासी भया होता येन कारण लक बियाकी पुरी जवाबदारी मोरोदुन ८ साल मोठो मोरो मंजलो भाई पर आयी ह़ोती। बरात कायलक जाये येको नियोजन भयो नोहोतो। मीन बाबा (मी मोरो मंजलो भाईला लहानपन पासून बाबाच कसु) को सामने मुंडीकोटा जवळ रहेव लका मोठी ट्रांसपोर्टकी बस न करता पाच सय च्यारचाकी गाड़ी कर लेबीन असो प्रस्ताव ठेयेव। येको पर बाबा कव्हन लगेव, "जीप गाडीकी बरात आडीजातवानी लगसे। मुंडीकोटा जवळच से बरात खासर लकाच लिजाबीन। खासर पोवारीकी शान आय।" अजी नही रहेव लका मी अजीको रुप बाबामाच देखुसु अना उनकी आज्ञा अजी की आज्ञा समझकर उनको आदर करुसु। आखरी खासर लक बरात लिजानको पक्को भयेव।

   आता खासर जमावनकी तयारी सुरु भयी। ओनं जमानोमा खासर जवळपास लुप्तप्राय होन बसी होती। काही होती पर ओको उपयोग बंद सारखोच होतो। चाप अना भोवरी काहाळस्यान खासरको सांगाळा (छाटी) डयलमा नही त कोठामा एकबाजुला ठेयी रव्हत। मामाजीको यहां लका गुडूर (नवरदेव नवरी की खासर), मोरो मोठो भाईको सुसरोकी एक खासर, घरकी एक खासर अना कुटुंब मोहलाकी च्यार पाच खासर असी ७-८ खासरकी व्यवस्था भयी। ९ जूनला फलदान, बिजोरा अना हरदीका कार्यक्रम भया। मंग भयी बरात सजावनकी तयारी। गुडूरको खासरला मामाजीन नवीन कपडाकी मंगपुढ़ पडदी, बैलइनला रंगबिरंगी झालरदार झुलं, सिंगला सिंगोटी, मोहोरपट्टी अना मोठा मोठा घुंगरु घोलर असो साज सजायीन। बाकीकी भी खासर सजायकर भयी। तीन बजेच नवरदेव घरलका काहाळीन। मंदिर जवळ देखुसु त् गुडूर को संग १२ खासरी अना ३ बिना चापकी (छाटी) असी १६ खासरी बरातसाती तयार होती। बिना सांगेव गाव मोहल्ला की ८-९ खासरी अना छाटी जमा भयीती. मातामायका पाय लगस्यान मी गुडूर पर बसेव. गुडूरमा मोरो संग करोली म्हणून मोरी मोठी बहिण, फुपेबहिण, मोरी ८ सालकी लहान पुतनी, ९ सालकी मामे बहिण (आब बड़ेगाव की सरपंच से), एक वरसालीन अना धुरकुरी (गुडूर हाकने वालो) म्हणून मोरो सोनेगांवको जीजाजी बस्या। बाजा वालोईनन डफरीला ताव देईन अना बरात जानसाती तयार भयी। च्यार डफरी वाला अना दुय पाऊल्या सामने सामने बजावन लग्या। उनको मंग मंग गुडूर अना गुडूरको मंग बाकीकी सपाई खासरकी बरात बड़ेगाव लका निकली। काही लोक खासर त काही सायकल लका अना काही पैदलच बरात संग निकल्या।

  गावको बाहेर बरात निकली का मंग बाजा वाला चुप होय जात। मुंडीकोटा जान साती बिरसी पर लक पक्को रस्ता होतो। पर वु थोड़ो फेराको रस्ता होतो म्हणून सिदो अना जवळको असो बोरगांव, गांगलाको कच्चो रस्ता लका बरात निकली। मंग सामने गाव दिसेव का बाजा वाला डफरीला ताव देयस्यान बजावनो सुरु करत। बैलईनको घोलर अना घुंगरु को घुल्लर घुल्लर आवाजमा शान लका बरात गांगलाको बाहरच निकलीच होती त मंग लका कोणीको आवाज आयेव, "अजी, बरात रोको। घरकी खासरको उजवो बाजूवाली भोवरीको बेट निकलेव। थोड़ोसोसाती भोवरी खसस्यान खासर उलटता उलटता बची।" मंग भोवरीपर बेट चड़ायस्यान पानी टाकीन। यकोमा जवळपास अर्धो पाऊन तास बरात रुकी रही। 

बरात पांजरावरी पोहची होती। बाजावाला डफरीला ताव देयस्यान बजावन बस्या। पाऊल्या भी तालमा आयस्यान सिलीमाको धुनपर सुर काहळन लग्या। ओतरोमाच आमरो गुडूर धडाम भयेव। गुडूरकी आस्कुळ मुळी होती। कसो बसो गुडूर लका सपाई जन बाहेर निकल्या। बाका भयेव कोनीला काही लगेव नही। पांजरामा मोरो मावस भाई रव्हत होता। वय भी बरात संगच होता। मंग उनन घर जायस्यान आपलो टुरा संग उनको घरकी खासरकी आस्कुळ आनीन। कसोबसो गुडूरको डोंगीमा आस्कुळ जमायकर दुयी भोवरी लगाईन। येन चक्करमा दुय तास बरबाद भया। पाच बजे पोहचने वाली बरात मुंडीकोटामा जवळपास ८ बजे पोहची। नवरदेव उतरावन साती एक डफरी वालो नवरीको मांडोमा गयेव। उतनलक च्यार पाच सवासनी बाजावालो संग आयी अना गुडूर पर सबला सरबत पिवायस्यान नवरदेव म्हणजे मोला गुडूर परलका उतराईन। अना ७ बजे लगनेवाली लगीन राती १० बजे लगी। तबको बेराको हिसाब लका बहुत टाईम भयी होती। आबको जमानोमात येन टाईमपर लगीनकी सुरुवात होसे।

 दुसरो दिवस नवरी सोपेवको बाद वापसीमा नवरी संग उनकी फुपेबहिण अना ९-१० सालकी नवरीकी मामेबहिण करोली म्हणून गुडूरमा बसी। एक खासरमा धुरकोरी धरस्यार ५ जनच बस सकत होता म्हणून मोरी फुपेबहिण अना वरसालीन दुसरो खासर पर बसी। मुंडीकोटा लक १० बजे वापसीकी बरात निकली। रस्तामा गुडूरपर सौ।तेजेश्वरी (नवरी) असहज महसुस करत होती। जीजाजीनं गुडूरमा चांगली तनीस भरस्यानी चादर सवारी होतीन। बसनकी जागा उची भयेवलका सौ।तेजेश्वरीको डोस्कीला गुडूरकी चाप लगत होती म्हणून मान झुकायस्यान बसी होती। अना येन कारणलक सौ।तेजेश्वरीकी मानला कर लग गयी होती। आखरीमा बरात जवळपास १२ बजे बड़ेगाव पोहची। नवरदेव नवरी मातामायको मंदिर जवळ गुडूरपर लका उतरायस्यान नाचत गाजत बरात घर आयी। डहलमाच प्रवेश द्वारपर मायनं नवरदेव नवरीका पाय धोयकर ओवाळीस अना सौ।तेजेश्वरी चावुरको कलस स्पर्श कर पयलो गृह प्रवेश करस्यान खरो अर्थ लका पटले कुर सोडस्यानी सदासाती बिसेन कुरमा समर्पित भय गयी।

असा नसीब पाहिजे

खासरमा   बसनला।

आता  ढुंडेती केतरा

दिस  नही  सपनला।

 असी या मोरो बियाकी खासरकी एक यादगार बरात मी कभीच भुल नही सकु। खासरमा नसीब वालाच बस्या सेती। आतात सपनमा भी ढुंडेत त खासरमा बसनला भेट नही। हाँ येकी जागा आता कार न जरुर लेयीसेस पर खासरमा बसनकी मज्या काही औरच होती।


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