ओरख राजा भोज की
ओरख राजा भोज की
. लेखक - गोवर्धन बिसेन
भारत मा असा कम लोक रहेत, जे राजा भोज ला ओरखत नही रहेत. राजा भोज ला अज हजार साल भया रहेती, पर ओको नाव अज बी अजर अमर से. येनं महान राजा की चर्चा घर घर मा होसे. पोवार समाज येला आपलो आराध्य मानसे. या चर्चा उनक प्रतापी या मोठो राजा होता येनं कारण लका नही होय तं, वय खुद एक बहुत मोठा विद्वान अना कवि होन को कारण लका चर्चा होसे. "कहां राजा भोज, कहाँ गंगु तेली" या कहावत तं भारत को सपाई टुरूपोटू इनन आयकी रहेन, जेकोपर हिंदी सिलिमा का गाना बी बन्या सेती "
येनं कहावत मा "राजा भोज" अना "गंगु तेली" को उल्लेख आयी से. यहान राजा भोज तं आय धार देश को #परमारवंशीय राजा - राजा भोज परमार ला राजा भोज अना चालुक्य नरेश तैलप ला गंगु तेली कही गयी से, चालुक्य राजा तैलप ला ....या कहावत काहे पड़ी, येको साती तुमला इतिहास का पाना पलटनो पड़े.
राजा भोज को जनम परमार वंश मा भयी से. संस्कृत मा परमार शब्द को अर्थ काहळेव जाय तं, होसे :- " परान मारयतीति परमारः " जेको अर्थ होसे, शत्रु इनला मारने वालो :-- येनच परमारः वंश मा विक्रमादित्य को जनम भयी से, जिननं विश्वविजय करीतीन. "
सीयक दुसरो जेव कि महाराज भोज को दादाजी (स्यायनोजी) होता, उनको इतिहास लकाच आमी घटना को वर्णन करं सेजन, जेको लका तुमला इतिहास समझनला आसानी होये ..
परमार वंश मा सीयक दुसरो नाव को एक प्रतापी राजा भयी से, इननं आपलो समय मा सबदून ताकदवाला सुमार राष्ट्रकूट इनला बड़ो बेकार हालत लका हाराईन. सीयक दुसरो ला एक टुरा भेटेव, वू टुरा कोनी सैनिक को टुरा होतो, जेव बाप को देहांत को बाद मा अनाथ भय गयेव होतो, सीयक दुसरो, ओनं टुरा ला महल मा आनं से, आता वू टुरा येतरो हुशार निकलसे की, ओनं सीयक दुसरो ला येतरो अधिक प्रभावित कर देसे, की सीयक दुसरो नं आपलो खुद को टुरा सिंधुराज ला राजा घोषित न करता, ओनं अनाथ टुरा ला राजा घोषित कर देसे. ओनंच सम्राट को नाव पुढं चलकर पृथ्वीवल्लभ_वाक्यपति_मुंज नाव लका विख्यात होसे. पृथ्वीवल्लभ को अर्थ से, सम्पूर्ण पृथ्वी को राजा , वाक्यपति को अर्थ से, आपलो बचन (वाक्य) वाया नही जाने देने वालो.
मुंज मोठो कुल को नोहोतो, पर ओनं विजय को तुफान मचाय देईस, कर्नाटक पासून केरल वरी को प्रदेश ओनं एक संगमा जीत लेईस. छेदी को कलचुरी नरेश राजदेव_दुसरो ला हारायकर ओको राजधानी ला पूरो लुट लेईस. मेवाड़ पर चढ़ाई करस्यान आहाड़ ला जीतीस अना चित्तौड़गढ़ को भाग बी मालवा मा मिलाय देईस.
इननं 6 बार चालुक्य नरेश तैलप ला हारायी होतीन, पर सातवो बेरा उनला कैदी कर लेईन, अना बाद मा मोठी यातना देयकर उनला मार टाकीन.
राजा मुंज को ज्योतिष अना पुरोहित नं मुंज ला कहीस की तुमी येनं बेरा गोदावरी नदी पार नोको करो, तुमरो नाश निश्चित से. मुंज नही मान्या, पुरोहित नं आत्महत्या कर लेईस, तरी बी मुंज नही रुक्या.
तैलप नं मुंज ला कैद अवश्य करीस, पर राजसी व्यवस्था को संगमा आपलो महलमाच कैद करीस. यहान तैलप को बहन संग मुंज ला पिरम भयेव. धार को सैनिक इननं मुंज ला सोड़ावन लाई सुरंग बी खोद लेईन, पर मुंज राजकुमारी को प्रेम मा असो फस गयेव होतो, की वू सुरंग मा लका बाहेर आयेवच नही, उल्टो आपलो सेनिक इनकी सुरंग दरवाजा वाली बात आपलो प्रेमिका ला सांग देईस ... मंग का होतो ??
तैलप नं मुंज ला भिखारी वानी अवस्था मा पोहचायकर रस्ता पर बसायकर भीख मांगन लगाईस, ओको बाद ओला ओनं मार देईस.
येको बाद सिंधुराज को टुरा अना मुंज को पुतन्या "महाराज भोज परमार" नं प्रतिज्ञा करीस, की "मी तैलप ला तसोच मारून, जसो ओनं मोरो काका ला मारीतीस"
अना कसेत :- भोज नं आपली प्रतिज्ञा पूर्ण बी करीस, भोज नं अशुभ मुहूर्त को बेरा गोदावरी नदी पार करीस, अना तैलप ला आपलो तसोच मारीस.
राजा भोज अना वाक्यपति मुंज ला धरकर एक कथा बहुत प्रचलित से ....कहेव जासे की जब भोज आपलो माय को गर्भ मा होतो, तब ओको अजी सिंधुराज ला राजसत्ता को लड़ाई मा मार देईतीन,अजी को छत्रछाया को बिना आपलो माय को शिक्षण लका वु टुरा नहानपनमाच आपलो तेज को प्रकाश च्यारही बाजुला पसरावन लगेव. एक दिवस जब ओनं टुरानं हत्ती पर सवार आपलो राज्य को महान सेनापति ला जमीन पर रयकर हाराय देईस तं, ओनं टुरा को काका मुंज ला बड़ी चिंता भयी, तुरंत ज्योतिषि ला बुलायकर उनला आदेश देईस की वय भोज की जन्मपत्री देखस्यान सांगो कि कहीं यव टुरा मोठो होयकर मुंज अना मुंज को टुराईन साती अडचन तं नही करन को ...
हालांकि नहान भोज की अद्भुत सुंदरता अना भोलोपन को कारण लका मुंज बी ओको खूब लाड़ करत होतो, पर राजसत्ता असी चीज से का, जेको लोभ लका महाभारत होय जासे --
ज्योतिषी नं भोज की जनम कुंडली देखकर सांगीस, "जेव टुरा तुमरो आंगन मा खेल रही से, येव साधारण पुरुष नाहाय, येको भाग्य तं ब्रह्माजी बी नही सांग सक, तं मी कस सांग सकुसू. हं येतरो निश्चित सांगुसू का, येव येनं देश को संगमाच दक्षिण मा का पुरा देश जीत लेये, आर्यावत का सप्पाई राजा येको अधीपत्य स्वीकार कर लेयेती. अना येव पचपन साल सात महिना तीन दिवस वरी बंगाल सहित पुरो दक्षिण मा राज करे."
वाक्यपति मुंज नं जब असो आयकीस तं ओको पाय को खाल्या की जमीन सरक गयी, ओको चेहरा उतर गयेव. ओला रातभर झोप नही लगी. अना सोच मा पड़ेव, येव मालवा पर राज करे, तं मोरा टुरा का करेती ?? ओनं दुसरो दिवस आपलो सैनिक वत्सराज ला आज्ञा देईस - येला गुरुकुल मा लका भुवनेश्वरी को निर्जन बन मा लिजायस्यानी मार टाको. अना ओकी कटी मुंडकी मोरो जवर आनस्यानी देखावो.
वत्सराज नं राजा मुंज ला बहुत समझाय बुझायकन असो करन ला रोकीस, पर राजा काही मानेव नही. अना वत्सराज पर नाराज भय गयेव. आता राजा की आज्ञा पालन करेव बिगर काही चारा नाहाय असो सोचकर काही सैनिक ला धरकर आश्रम को गुरुकुल मा गयेव अना नहान भोज ला ओको काका नं बुलायीस असो सांगस्यानी भुवनेश्वरी को भयावन बन मा नहान सो भोज ला लिजायकर राजा मुंज की आज्ञा को बारा मा सांगीस.
बालक भोज नं बड़ो हिंमत लका काका मुंज की आज्ञा आयकीस अना वत्सराज ला कहीस, "तुमी निडर होयकर राजा को आज्ञा को पालन करो. पर मी तुमला एक पत्र देसु. वु तुमी मोरो काका राजा मुंज वरी पोहचाय देव."
सैनिक वत्सराज तयार भय गयेव. भोज नं बड़ को पाना तोड़स्यान ओको दोना बनाईस. सुरी लका आपलो मांडी ला चिरकर खून लका दोना भरीस. गवत को दांडी लका बड़ को दुसरो पाना पर एक श्लोक लिखीस अना वत्सराज को हात मा देयकर मरन साती तयार भय गयेव. पत्र देखस्यान वत्सराज को हिरदा पिघल गयेव अना डोरा मा लका पानी निकलन बसेव. ओनं राजकुमार भोज लामाफी मांगीस अना मारन को बिचार सोड़कर भोज ला रथ पर बसायकन आपलो घरं लिजायस्यान लपाय देईस. बाकी सैनिक इनन बी ओला साथ देईन.
एक मुर्तिकार जवर लका भोज की हुबेहुब मुंडकी तयार करस्यान रात को इंधारो मा राजा मुंज जवर आनस्यान ठेय देईन. सैनिक इनन कईन, "महाराज आमीनं बालक भोज ला मार देया. पर मरन को बेरा ओनं तुमरो साती एक पत्र देईस" वाक्यपति मुंज दूर लकाच मुंडकी निहारन बसेव. खुश होयकर वत्सराज ला खबर लेईस, "मरन को बेरा भोज नं अनकी काही कहीस का?" वत्सराज नं चुपचाप भोज को लिखेव पत्र राजा को हात मा देईस. रानी नं दिवो पेटायकर राजा जवर आनीस. दिवो को उजार मा मुंज पत्र बाचन बसेव…..
पत्र मा श्लोक असो लिखेव होतो….
मान्धाता स महीपति: कृतयुगालंकार भूतो गत:
सेतुर्येन महोदधौ विरचित: क्वासौ दशस्यांतक: |
अन्ये चापि युधिष्ठिर प्रभृतिभि: याता दिवम् भूपते
नैकेनापि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति ||
अर्थात - हे राजा, सतयुग को राजा मान्धाता भी चली गयेव, त्रेता युग मा, समुद्र पर पुल बांधकर रावण ला मारने वालो राम बी नही रहेव, द्वापरयुग मा युधिष्ठिर बी स्वर्ग लोक चली गयेव. पर धरती कोनी संग नही गयी, पर होय सिक से, की कलयुग मा, तुमी येनं धरती ला संगमाच लिजाय लेवो.
येनं श्लोक ला बाचकर वाक्यपति मुंज ला बहुत पश्चाताप होसे. "हाय! यव मिनं का कर टाकेव, मिनं येतरो होनहार बालक ला मारकर धरती अना राष्ट्र को संग येतरो मोठो अन्याय कर देयेव , मोला आता जीवित रव्हन को काहीच अधिकार नाहाय." असो कयकर आपली खुद की मुंडकी काटन ला मुंज नं तलवार उचलीस, तब सैनिक वत्सराज नं मुंज ला रोककर कहीस,"असो अनर्थ नोको करो महाराज, बालक भोज आबबी जितो से ! आमीनं ओनं महिमामयी बालक की महिमा लका मोहित होयकर ओला लुपाय देया होता."
ओला जल्दी मोरो डोरा को सामने धरकर आनो. मुंज भोज ला मिलन साती येतरो तड़पत होतो का, जसो पानी बिना मसरी. जब सैनिक भोज ला धरकर आया, तं मुंज नं आपलो पुतन्या ला कसकर गरो ला लगाय लेईस, अना ओनच बेरा घोषणा कर देईस, की भोजच मालवा को राजा बने. बीस साल को उमर मा भोज ला राज सिंहासन पर बसायकर मुंज आपलो धर्मपत्नी संग मा बन मा चली गयेव.
अना यहा लका शुरुवात भयी भारत को एक असो राजा की, जेव वीरता, ज्ञान अना विज्ञान की नवीन सीमा रेसा तय करे, जहां वरी शायद मंग को हजार साल मा कोनी नही पहुंच पाया रहेत.
