Govardhan Bisen "Gokul"

Inspirational

4.3  

Govardhan Bisen "Gokul"

Inspirational

ओरख राजा भोज की

ओरख राजा भोज की

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..                            लेखक - गोवर्धन बिसेन 'गोकुल'


भारत मा असा कम लोक रहेत, जे राजा भोज ला ओरखत नही. राजा भोज ला अज हजार साल भया रहेती, पर ओको नाव अज बी अजर अमर से. येनं महान राजा की चर्चा हर घर मा होसे. पोवार समाज येला आपलो आदर्श मानसे. या चर्चा, वय प्रतापी या मोठो राजा होता येनं कारण लका नही होय तं, वय खुद एक बहुत मोठा विद्वान अना कवि होन को कारण लका चर्चा होसे. खुद कवि अना विद्वान रहे लका वय उनको राज मा का कवि अना विद्वान इनको मोठो आदर करत होता. वाग्देवी माय को कृपालका कई विषय पर ८४ ग्रंथ उननं लिखी होतीन. उनको राजमा जवरपास १४०० विद्वान राजाश्रयमा रव्हत होता. राज्यसभा मा ५०० विद्वान रोबोटिक्स तकनीक अना जहाज निर्मितीको काम करत होता. स्थापत्यशास्त्र मा बी राजा भोज की बराबरी अजवरी कोनीनं नही करीन. उनको कालमाच बेतवा नदीपर सिंचाई साती बहुत मोठो माती को धरण बनेव. अकरावो सदीमाच राजाभोज को हात लका उज्जयीनी को महाकालेश्वर मंदिर, केदारनाथ को मंदिर, रामेश्वर को मंदिर, सोमनाथ को मंदिर अना मुंडीर को मंदिर को जीर्णोध्दार भयासेती. आब को भोपाल बी राजा भोजनंच बसायी सेस. यहांच एक मोठो तरा बी बनाईस. जवरच भोजपूर को शिवमंदिर आपलो अजी को स्मृती बनायीतीस. तब तरा को पानी येनं मंदिर वरी रव्हत होतो. येनं तरा को पानी पवित्र अना बिमारी ठिक करने वालो होतो. राजा भोज को विशेष वर्णन करन को कारण की आपलो पोवार वंशमा असा प्रकारका महान प्रतापी, साहित्यिक अना धार्मिक सम्राट राजा भया होता जिनको अकरावी सदीमा पुरो भारतपर भक्तीभावलका माय वाग्देवीको कृपामा इसवी सन १०५५ वरी राजकाभार चलेय.


राजा भोज को बारा मा "कहां राजा भोज, कहाँ गंगु तेली" या कहावत तं भारत को सपाई टुरूपोटू इनन आयकी रहेन, जेकोपर हिंदी सिलिमा का गाना बी बन्या सेती " येनं कहावत मा "राजा भोज" अना "गंगु तेली" को उल्लेख आयी से. यहान राजा भोज तं आय धार देश को परमार वंशीय राजा -  राजा भोज परमार ला "राजा भोज" अना चालुक्य नरेश तैलप ला "गंगु तेली" कही गयी से, चालुक्य राजा तैलप ला ....या कहावत काहे पड़ी, येको साती तुमला इतिहास का पाना पलटनो पड़े.


राजा भोज को जनम परमार वंश मा भयी से. संस्कृत मा परमार शब्द को अर्थ से :- "परान मारयतीति परमारः" जेको अर्थ होसे, शत्रु इनला मारने वालो. येनच परमार  वंश मा विक्रमादित्य को जनम भयी से, जिननं विश्वविजय करीतीन." 


सीयक-दुसरो जेव कि महाराज भोज को दादाजी (स्यायनोजी) होता, उनको इतिहास लकाच आमी घटना को वर्णन करं सेजन, जेको लका तुमला इतिहास समझनला सोपो होये.


परमार वंश मा सीयक दुसरो नाव को एक प्रतापी राजा भयी से, इननं आपलो समय मा सबदून ताकदवालो सुमार राष्ट्रकूट ला बड़ो बेकार परिस्थिती लका हाराईस. सीयक-दुसरो ला एक टुरा भेटेव, वू टुरा कोनी सैनिक को टुरा होतो, जेव बाप को मृत्यू को बाद मा अनाथ भय गयेव होतो, सीयक-दुसरो, ओनं टुरा ला राज महल मा आनं से, वू टुरा येतरो हुशार निकलसे की, ओनं सीयक-दुसरो ला येतरो अधिक प्रभावित कर देईस, की सीयक-दुसरो नं आपलो खुद को टुरा सिंधुराज ला राजा घोषित न करता, ओनं अनाथ टुरा ला राजा घोषित कर देईस. ओनंच सम्राट को नाव पुढं चलकर पृथ्वीवल्लभ - वाक्यपती - मुंज नाव लका प्रख्यात होसे. पृथ्वीवल्लभ को अर्थ से, सप्पाई पृथ्वी को राजा, वाक्यपति को अर्थ से, आपलो बचन (वाक्य) वाया नही जाने देने वालो.


मुंज मोठो कुल को नोहोतो, पर ओनं विजय को तुफान असो मचाय देईस का, कर्नाटक पासून केरल वरी को प्रदेश ओनं एक संगमा जीत लेईस.  छेदी को कलचुरी नरेश राजदेव दुसरो ला हारायकर ओको राजधानी ला पूरो लुट लेईस. मेवाड़ पर चढ़ाई करस्यान आहाड़ ला जीतीस अना चित्तौड़गढ़ को भाग बी मालवा मा मिलाय देईस. येनं ६ बार चालुक्य नरेश तैलप ला हारायीस, पर सातवो बेरा मुंज ला कैदी कर लेईन, अना बाद मा मोठी यातना देयकर राजा मुंजला मार टाकीन.


राजा मुंज को ज्योतिष अना पुरोहित नं मुंज ला सांगी होतीन की तुमी येनं बेरा गोदावरी नदी पार नोको करो, तुमरो नाश निश्चित से.  मुंज काही मानेव नही, पुरोहित नं आत्महत्या कर लेईस, तरी बी मुंज नही रुकेव. 


तैलप नं मुंज ला कैद जरूर करीस, पर राजसी व्यवस्था को संग मा आपलो महल माच कैद करीस. यहान तैलप को बहिन संग मुंज ला पिरम भय गयेव. धार का सैनिक मुंज ला सोड़ावन साती महल मा सुरंग बी खोद लेईन, पर मुंज राजकुमारी को प्रेम मा असो फस गयेव होतो, की वू सुरंग मा लका बाहेर आयेवच नही, उल्टो आपलो सैनिक इनकी सुरंग दरवाजा वाली बात आपलो प्रेमिका ला सांग देईस. मंग का भयेव? तैलप नं मुंज ला भिखारी वानी अवस्था मा पोहचायकर रस्ता पर भीख मांगन लगाईस, ओको बाद ओला ओनं तड़पाय तड़पायकर मार देईस.


येको बाद सिंधुराज को टुरा अना मुंज को पुतन्या "महाराज भोज परमार" नं प्रतिज्ञा करीस, की "मी तैलप ला तसोच मारून, जसो ओनं मोरो काका मुंज ला मारीतीस" 

अना कसेत, भोज नं आपली प्रतिज्ञा पूर्ण बी करीस, भोज नं अशुभ मुहूर्त को बेरा गोदावरी नदी पार करीस, अना जसो ओको काका मुंज ला तड़पाय तडपायकर मारीस तसोच भोज नं बी तैलप ला तड़पाय तड़पायकर मारीस.


राजा भोज अना वाक्यपति मुंज ला धरकर एक कथा बहुत प्रचलित से ....


कहेव जासे की जब भोज आपलो सावित्री माय को गर्भ मा होतो, तब ओको अजी सिंधुराज ला राजसत्ता को लड़ाई मा मार देईतीन, इ.स. ९८० को बसंत पंचमी को बेरा बालक भोज को जनम भयेव. अजी को छत्रछाया को बिना आपलो माय को शिक्षण लका वु टुरा नहानपन माच आपलो तेज को प्रकाश च्यारही बाजुला पसरावन लगेव. एक दिवस जब बालक भोज नं हत्ती पर सवार आपलो राज्य को मोठो सेनापति ला जमीन पर रयकर हाराय देईस तं, भोज को काका मुंज ला बड़ी चिंता भयी, तुरंत ज्योतिषि ला बुलायकर उनला आदेश देईस, "भोज की जन्मपत्री देखस्यान सांगो कि कहीं यव टुरा मोठो होयकर मोला अना मोरो टुराईन साती अडचन तं नही करन को?"


जब की नहान भोज की अद्भुत सुंदरता अना भोलोपन को कारण लका मुंज बी ओको खूब लाड़ करत होतो, पर राजसत्ता असी चीज से का, जेको लोभ लका महाभारत होय जासे --


ज्योतिषी नं भोज की जनम कुंडली देखकर सांगीस, "जेव टुरा तुमरो आंगन मा खेल रही से, येव साधारण पुरुष नाहाय, येको भाग्य तं ब्रह्माजी बी नही सांग सक, तं मी कसो सांग सकुसू. हं येतरो जरूर सांगुसू का, येव येनं देश को संगमाच दक्षिण मा का पुरा देश जीत लेये, आर्यावत का सप्पाई राजा येको अधीपत्य स्वीकार कर लेयेती. अना येव पचपन साल, सात महिना, तीन दिवस वरी बंगाल सहित पुरो दक्षिण मा राज करे."


वाक्यपति मुंज नं जब असो आयकीस तं ओको पाय को खाल्या की जमीन सरक गयी, ओको चेहरा उतर गयेव. ओला रातभर झोप नही लगी. अना सोच मा पड़ेव, येव मालवा पर राज करे, तं मोरा टुरा का करेती ??  ओनं दुसरो दिवस आपलो सैनिक वत्सराज ला आज्ञा देईस - "येला गुरुकुल मा लका भुवनेश्वरी को निर्जन बन मा लिजायस्यानी मार टाको. अना ओकी कटी मुंडकी मोरो सामने पेश करो."


वत्सराज नं राजा मुंज ला बहुत समझाय बुझायकन असो करन साती रोकीस, पर राजा काही मानेव नही. अना वत्सराज पर नाराज भय गयेव. आता राजा की आज्ञा पालन करेव बिगर काही चारा नाहाय असो सोचकर काही सैनिक ला धरकर ज्याहान भोज शिकत होतो ओनं गुरुकुल मा गयेव अना नहान भोज ला ओको काका नं बुलायीस असो सांगस्यानी भुवनेश्वरी को भयावन बन मा नहान सो भोज ला लिजायकर राजा मुंज की आज्ञा को बारा मा सांगीस. 

बालक भोज नं बड़ो हिंमत लका काका मुंज की आज्ञा आयकीस अना वत्सराज ला कहीस, "तुमी निडर होयकर राजा को आज्ञा को पालन करो. पर मी तुमला एक पत्र देसु. वु तुमी मोरो काका राजा मुंज वरी पोहचाय देव." 


सैनिक वत्सराज तयार भय गयेव. भोज नं बड़ को पाना तोड़स्यान ओको दोना बनाईस. सुरी लका आपलो मांडी ला चिरकर खून लका दोना भरीस. गवत को दांडी लका बड़ को दुसरो पाना पर एक श्लोक लिखीस अना वत्सराज को हात मा देयकर मरन साती तयार भय गयेव. पत्र देखस्यान वत्सराज को हिरदा पिघल गयेव अना डोरा मा लका पानी निकलन बसेव. ओनं राजकुमार भोज ला माफी मांगीस अना मारन को बिचार सोड़कर भोज ला रथ पर बसायकन आपलो घरं लिजायस्यान लुपाय देईस. बाकी सैनिक इनन बी ओला साथ देईन. 


एक मुर्तिकार जवर लका भोज की हुबेहुब मुंडकी तयार करस्यान रात को इंधारो मा राजा मुंज जवर आनस्यान ठेय देईन. सैनिक इनन कईन, "महाराज आमीनं बालक भोज ला मार देया. पर मरन को बेरा ओनं तुमरो साती एक पत्र देईस" वाक्यपति मुंज दूर लकाच मुंडकी निहारन बसेव. खुश होयकर वत्सराज ला खबर लेईस, "मरन को बेरा भोज नं अनखी काही कहीस का?" वत्सराज नं चुपचाप भोज को लिखेव पत्र राजा को हात मा देईस. रानी नं दिवो पेटायकर राजा जवर आनीस. दिवो को उजारो मा मुंज पत्र बाचन बसेव…..


पत्र मा श्लोक असो लिखेव होतो….


मान्धाता स महीपति: कृतयुगालंकार भूतो गत:

सेतुर्येन महोदधौ विरचित: क्वासौ दशस्यांतक: |

अन्ये चापि युधिष्ठिर प्रभृतिभि: याता दिवम् भूपते

नैकेनापि समम् गता वसुमती नूनम् त्वया यास्यति ||


अर्थात - हे राजा, सतयुग को राजा मान्धाता भी चली  गयेव,  त्रेता युग मा, समुद्र पर पुल बांधकर रावण ला मारने वालो राम बी नही रहेव, द्वापरयुग मा युधिष्ठिर बी स्वर्ग लोक चली गयेव. पर धरती कोनी संग नही गयी, पर होय सिक से, की कलयुग मा, तुमी येनं धरती ला संगमाच लिजाय लेवो.


येनं श्लोक ला बाचकर वाक्यपति मुंज ला बहुत पश्चाताप होसे. "हाय! यव मिनं का कर टाकेव, मिनं येतरो होनहार बालक ला मारकर धरती अना राष्ट्र को संग येतरो मोठो अन्याय कर देयेव , मोला आता जीतो रव्हन को काहीच अधिकार नाहाय." असो कयकर आपली खुद की मुंडकी काटन ला मुंज नं तलवार उचलीस, तब सैनिक वत्सराज नं मुंज ला पश्चाताप भयेव देख ओला रोककर कव्हन बसेव, "असो अनर्थ नोको करो महाराज, बालक भोज आब बी जीतो से ! आमीनं ओनं महिमामयी बालक की महिमा लका मोहित होयकर ओला लुपाय देया होता."


"ओला जल्दी मोरो डोरा को सामने धरकर आनो." मुंज भोज ला मिलन साती येतरो तड़पत होतो का, जसो पानी बिना मसरी. जब सैनिक भोज ला धरकर आया, तं मुंज नं आपलो पुतन्या ला कसकर गरो ला लगाय लेईस, अना ओनच बेरा घोषणा कर देईस, की भोजच मालवा को पुढ़ चलस्यान राजा बने. 


मुंज को मृत्यू को बाद बीस साल को उमर माच इ.स. १००० मा बालक भोज राज सिंहासन पर बससे अना आपलो राजपाट सम्हाल लेसे. तब मालवाकी च्यारही दिशा दुश्मनलका घिरी होती. दक्षिण पश्चिममा चालुक्य, उत्तरमा तुर्क अना राजपूत, पुर्वमा युवराज कलचुरी असा दुश्मन होता. माय गडकालीकाको आशीर्वादलक राजा भोज नं सबला हाराईस. तपस्या अना साधनालका सरस्वती माताकी बी उनला विशेष कृपा होती. उनला चौसट प्रकारकी सिध्दी प्राप्त होती. भोजशाला को निर्माण करीन अना वहान सरस्वती माता सारखीच वाग्देवी माताकी मुर्ती बनाईन.


अना यहा लका शुरुवात भयी भारत को एक असो राजा की, जेव वीरता,  ज्ञान अना विज्ञान की नवीन सीमा रेसा तय करे, जहां वरी शायद मंग को हजार साल मा कोनी नही पहुंच पाया रहेत.


संदर्भ सुची :-

१) "राजा भोज" लेखक- सन्तराम वत्स

२) बल्लाल कवि विरचित "भोज प्रबंध" व्याख्याकार - डाॅ. देवर्षिसनाढ्य शास्त्री

३) "राजा भोज" लेखक - श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ

४) "परमार भोज" विकिपीडिया

५) "वाक्पति मुंज" विकिपीडिया

६) "परमार/पंवार राजवंश" फेसबुक पेज

७) "हिंदी साहित्य का इतिहास" लेखक - रामचंद्र शुक्ल


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