लेखक : अलेक्सांद्र पूश्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : अलेक्सांद्र पूश्किन ; अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
छोटे-छोटे नेताओं को, लालबत्तीधारी गाड़ियों का क्रेज बना दिया जाता है। छोटे-छोटे नेताओं को, लालबत्तीधारी गाड़ियों का क्रेज बना दिया जाता है।
उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था की उसके पिता (रामजतन ) अब नहीं रहे. उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था की उसके पिता (रामजतन ) अब नहीं रहे.
कभी कभी मैं सोचती हूं,कि क्या वाकई मरने के बाद भी कोई खाने आता होगा?" कभी कभी मैं सोचती हूं,कि क्या वाकई मरने के बाद भी कोई खाने आता होगा?"
इससे तो अच्छा है बैठक की प्रथा ही बंद कर दी जाये। इससे तो अच्छा है बैठक की प्रथा ही बंद कर दी जाये।
दूसरों का दुख वे कभी नहीं देख सकते थे और आज बेटे उनकी ही आत्मा को मुक्ति नहीं दे रहे, क दूसरों का दुख वे कभी नहीं देख सकते थे और आज बेटे उनकी ही आत्मा को मुक्ति नहीं दे...