VIKAS KUMAR MISHRA

Inspirational Tragedy

5.0  

VIKAS KUMAR MISHRA

Inspirational Tragedy

बीवी या बाई ?

बीवी या बाई ?

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"अब तो नौकरी भी लग गयी विशाल, शादी क्यों नहीं कर रहे हो ! लड़की देख रहे हो या नहीं ?" शादी के घर के माहौल में जब बहुत दिनों के बाद मेरे ताऊजी के पुत्र की धर्मपत्नी मुझसे मिली तो उन्होंने पूछा !

"देख रहा हूँ भाभी पर कोई ढंग की मिलती ही नहीं !" मैंने जवाब दिया।

"अच्छा कैसी लड़की चाहिए तुम्हें ? बताओ हम ढूंढ देते हैं !" भाभी मुझसे ठिठोली करते हुए बोली।

"आपकी तरह भाभी !" मैं भी तपाक से बोल पड़ा।

भाभी रुक गई, कुछ सेकंड मेरी ओर देखा फिर बोलीं- "मेरी तरह, मतलब ?"

"हाँ भाभी आपको देखो इतना बड़ा घर सम्हालती हो, दो बच्चे, भैया, ताऊजी-ताई जी की इस अवस्था में सेवा ! और सबसे बड़ी बात भाभी इतनी पढ़ी लिखी होकर भी कभी घूंघट सिर से नहीं हटता ! मुझे भी ऐसी पत्नी चाहिए भाभी जो बाहर नौकरी करने को आतुर न हो घर पर रहकर मम्मी-पापा की सेवा करे !'

"अरे तो यूँ कहो न तुम्हे भी पत्नि नहीं बल्कि गुलाम चाहिये !" भाभी के बात करने का तरीका अचानक ही बदल गया।

"मतलब मैं समझा नहीं भाभी ?"

"मतलब ये की ये कैसी सोच है तुम लोगों की ! घर का काम करने वाली बीवी सबको चाहिए लेकिन घर के बाहर नौकरी करने वाली बीवी नहीं चाहिए ! मेरी मानो तो शादी मत करो एक नौकरानी रख लेना ! क्योंकि आखिर में जरूरत तुम्हें उसी की है !" कहकर भाभी अंदर चली गयी और मैं बस उनके कहने के मतलब को समझने की कोशिश करने लगा।


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