Rabindra Mishra

Thriller

2.6  

Rabindra Mishra

Thriller

बीस साल बाद

बीस साल बाद

12 mins
198


१ 

इलाका का फैला हुआ रास्ता धीरे धीरे शुन-शान हो रहथा। फिरभि वो-दीन उस इलाके में तैनात हुआ पुलिस आफिसर अपना डिऊटी बेहद फूर्त्ति और चौकस के साथ करते हुए उस लंबे रास्ते के उपार इधर-उधर हो रहै थे ताकि पुलिस नज़र से कुछ फिसल ना जाए। सच माने तो उनका बो फुर्ती और चौकस किसीको दिखाने के लिए नेहीं दरअसल उनका आदत है जो अपने-आप बस फुट पड़ता है। समय करीब-करीब रात की दश बज रहै थे। लेकिन उस दिन् का मौसम बेहद खराब और गंभीर था। बेर्फ़ीली बारिश की छोटे छोटे बूंद के साथ तेज हबा- ठंडक को इतना बढ़ा दिया था कि लोग ना-चाहते हुए भी समाय से पहले दुकानदारी बन्द करके घर लौटना अनिबार्ज्य हो गया था। शुन-शान और कुछ हद तक सान्नाटा हैतु परिबेश रहस्यमय लग रहा था। आदत से मजबूर बो पुलिस अधिकारी बन्द होगए दुकान और घर के दरवाजे तथा खिड़कियाँ को अपने हात में पकड़े हुए पुलिस छड़ी से सही तरा परख रहै थे ताकि कोई चूक ना हो जाए। उसका गठिला शरीर- तंदरुस्त चेहैरा और फुरत्ती एक सच्चा कानून रखबाले का बिशवास दिला रहा था। पूरे के पूरे ईस ब्यापरिक-इलाके का चंद देर रात के होटल, दर्जी की दुकान और चुरुट के केबिन ही खुले थे जहाँ से प्रकाश और आबाज इस सान्नाटे को जगाने की प्रयाश कर रहै थे। धीरे धीरे बो भी अपने दिन भर के काम खतम करके दुकान बन्द करने को तयार हो रहै थे।

कामगार पुलिस अधिकारी ने फिर एक बार अपना तेज-तरार नज़र इलाके की चारों और दौड़ता हुआ अपना पैर आगे बढ़ाया। शुबाह आफिस मे पुलिस मुखिया का दिया हुआ सूचना और बताया गया बात दिमाग के अंदर घूम रहता।“मुरझाया बदन-बर्गाकार जबड़ा-गहरा काला आँख और दाहिनि आँख के ऊपर एक छोटा सफ़ेद-खरोंच का निशाना”। बो सोचने लगा- इतने सारे सूचना होते हुए भी अभीतक उस कुख्यात अपराधी का ना तो नाम मालूम था ना उसका एक सही तस्बिर। खुद इस धरोहर का एक सक्रिय सदस्य के नाते उसे बेहद शरम और खुद के ऊपर गुस्सा आया। चलते-चलते फिर एकबार लाइट पोस्ट के प्रकाश में आफिस से दियागया उस खूंकार बदमास का स्केच और पाँच डालर का जाली-नोट को और एकबार अच्छी तरह देख लिया। ‘जालिनोट छापना और उसका फैलना बिलकुल धर्त्ब्य अपराध है और उस खूंकार अपराधी को पकड़ना बेहद जरूरी है, लेकिन- चिकागो, हजारों-मिल दूर से बो अपराधी,क्या सचमुच उसे मौका मिलेगा? फिर ऊचे आबाज में खुदकों कहा- “बच्चा, मायूष मत हो, अठरा साल से तूम अपना ड्यूटि बा-खूबी लगन के साथ निभा रहै हो, किस्मत जरूर तुम्हारा उसके ऊपर ये कर्जा को बखूबी लौटाएगा।“ चलिश से ऊपर उम्र का होते हुए भी अकेले में वो खुदकों ‘बच्चा’ कहते हुए खुद बो खुद हर्षित हो रहै थे। लंबा सड़क, लेकिन उसके दिमाग में शायद और कुच्छ था। हात में पहना घड़ी में नज़र डाला। पउने दश, पन्दरा मिनिट पार हो गया है, फिर भी बहुत सारे समय है। 

बस, उस बक्त दूर एक लोहै की दुकान के सामने एक आदमी का साया नज़र आया। दो लाइट-खंबे की बीच बाले धुंदला सा प्रकाश में आदमी का साया कुछ रहस्यमय लगरहा था। पुलिस अधिकारी ने त्वरित पैर उस्तरफ़ किया। करीब होते ही उन्होने साया नेहीं एक आदमी को वहाँ खड़े हुए देखा। पुलिस ने उसको आबाज देने जा रहता ,लेकिन तुरंत अपना फैसला बदलकर उस अपरिचित आदमी को मुखातिब होने की मौका दिया। दुसरेऔर बो अपररिचित आदमी बिलकुल कम-प्रकाश में एक और आदमी को अपने करीब देखकर भाम्पलिया की इस हालात और इस शुन-शान जगह एसे खड़ा देख कर कोई भी डाउट[संदेह]करेगा। उस अपरिचित आदमी ने थोड़ा करीब होते हुए उन्हैं देखने की कोशिस की। कम प्रकाश हैतु बदन नज़र नेहीं आई, लेकिन हुलिया और पोषाक से “पुलिस” पहचानते हुए खुदकों साधारण और पुलिस का संदेह दूर करने के लिए कहा- “आफिसर, में यहाँ अपना एक पुराना-करीब दोस्त का इंतज़ार कर रहा हूँ। बीस साल पहले हम दोनों के बीच यह ताया हुआ था .........कुछ अजीब और मज़ाक सा सुनाई दे रहा है ......है ना। ठीक, में पूरि बात बताते हुए आप का संधह दूरकरता हूँ। थोड़ा रुकते हुए उनहोंने कहा- बीस साल पहले इस्स जगह एक रेस्तोंरॉ था...” ब्राडी रेस्तोंरॉ “....। पाँचसाल से बंद हो गया है कहते हुए पुलिस अधिकारी ने उस आदमी का हात पकड़ने जा रहै थे लेकिन रोक लिया। क्योंकि उस आदमी ने पाकेट से माचिस निकाल कर जलाते हुए अपना सिगार लगाया और पुलिस अधिकारी ने माचिस की बो हल्का सा प्रकाश में आगंतुक का महूँ देखने की अबसर पाया। 

 २ 

सिगार का एक लंबा खिच लेकर अजनबी आदमी बोल- बीस साल पहले आज ही के दिन और समाय पे में और “जीम्मी” यहाँ ब्राडी रेस्टोरां में रात का खाना खा रहै थे। “जीम्मी”॰ अजनबी ने बिलकुल अपनापन और भाबाबेग में नाम लेते हुए बता रहै थे – मेरे सबसे करीबी-खास और अच्छा दोस्त , और मेरे लिए इस्स धरती पर सबसे बहतरीन इंसान। हामदोनों इस न्यूयार्क सहर में पैदा और एकसाथ बड़े हुए हैं- बिलकुल सगेभाई की तरहा। उस वक़्त में अथरा और वो बीस साल की था। उसरात का खाना एकसाथ हामदोनों की आखरी खाना था, क्योंकि कलसुबह अपना तकदीर आज़माने के लिए मुझे पश्चिम-की-और निकल ना था। थोड़ा सांश लेकर वही अपनापन के साथ बोले- जीम्मी बिलकुल गृहातुर- घर से इतना लगाब की उसे न्यूयार्क सहर से सायद कोई बाहर खींच सके। उसके लिए न्यूयार्क सहर ही सबकुछ है। इसीलिए जीम्मी के लिए यहाँ से बाहर जाने का सबल ही पैदा नेही होता। फिर वही खाने की टेबल पर हामदोनों के बीच तय हुआ की बीससाल बाद हाम जहां भी और जिस हालत में होंगे, आज ही के दिन और समाय पर जरूर इकठा होंगे। दो-दशक के अंदर जरूर हमे जीने की रुख और गति मिलगाया होगा। हासिल और कामयाबी जरूर कदम चूमता होगा- इस पंक्ति को कहते वक़्त उसका आबाज में सफलता और हासिल का आनंद टपक रहा था। 

- दो-दशक के बाद यह मिलन काफी दिलचस्प लगरहा है। पुलिस अधिकारी ने कहा। अच्छा, इस लंबी अंतराल के बीच आप दोनों सम्बंध मे नेही थे क्या? 

 वेल, कुछ दीनोतक खत का जरिया हम-दोनों के बीच संपर्क का सेतु बबनगाय था। लेकिन साल-दो साल के बाद बो भी बिलकुल ठप् होगाई, खास कर के मेरे लिए। “चिकागो”-मेरा मुख्य कार्यालय होते हहुए भी काम के वास्ते मुझे हर समय बाहर जाना और ठहरना पड़ रहा है। काम की जरूरत और उलझन मे फंशा में ही दोनों के बीच खत का जरिया को बंद कारदिया। ....फिर थोड़ा रुके दृप्त और बिश्वास के साथ कहा- पूरे निश्चित के साथ में कहता हूँ की अगर जिम्मी इस धरती पर जिंदा है तो बो जरूर मुझे मिलने यहाँ आएगा। क्यों की मेरे लिए इस धरती रीपर सिर्फ बो अकेला ही एक सच्चाई निभानेवाला उचित और भरोशेमंन्द आदमी है। इसीलिए बिससाल पहले हुआ हम-दोनों के बीच वो समझोता को कभी नेही भूलेगा या आबंग्या करेगा।....फिर थोड़ा सांश लेकर उम्मीद के साथ कहा- में हजारमिल दूर यात्रा करके आज इस जगह खड़ा हूँ। प्रिय मित्र का आना और सही समयमें पहुँचना मेरे लिए सबशे अहम और खुसी का मौका होगा। उन्हों ने कोर्ट का बाजू थोड़ा उपरकरके हात में पहना हुआ घड़ी देखा। घड़ी की डाएल में लगे हुए छोटे –छोटे हीरे की टुकड़ो से जगह प्रकाशित हो गया। .....दश बजकर पाचीस मिनिट। हम उसदिन ठीक साढ़े-दश बजे अपना किस्मत आजमाने के लिए रेस्टोरां की दरवाजे से अलग हुएथे। 

- पश्चिम में जाकर आप बहुत धन और पैसा कमाये हो...है ना? पुलिस अधिकारी धीरे से पूछा। 

बिलकुल, आश के मुताबिक अच्छा-खासा कमाई हो रहा है, अपरिचित आगंतुक ने कहा। फिर थोड़ा हस्ते हुए दिलगी भरी आबाज में बोले – लेकिन जिम्मी इसका आधा कमाई की होगी,मुझे यकीन नेही हो रहा है। इंसान के नाते उसे आछा मेरे लिए और कोई नेहिं, लेकिन दिमागी तोरे पर वो थोड़ा कमजोर और लापरबह है। आराम का जिंदेगी बिताने के लिए पैसो का सख्त जरुरत , यह समझने के लिए ना तो बो तयार है ना उतना होशियारी और शक्ति उसमे है। में आज जिस मुकाम पर हूँ उस जगह पहुँचने के लिए हर बक्त और स्थिति मे पश्चिम के बहुत सारे तेज दिमाग और चालाकी का टक्कर मीने की है। अब भी हर एक डलार के लिए बोहि संघर्ष और चतुर का सामना कर रहा हूँ। यहाँ न्यूयार्क में जीबन का कोई रंग ही नेहिं, हर कोई बही घिसापिटा जिंदेगी जी रहा है। पर पश्चिम में हर कदम जंग ही जंग जो जीने के रह मुझे सिखाया है। 

पुलिस अधिकारी दो-कदम करीब उस के पास आकार बोले-‘में सोच रहाहूँ की आप की दोस्त सही समय में आकार पहुँच जाएंग, फिरभि अगर सही वक़्त चूक गए तो....क्या आप इंतज़ार करोगे या चले जाओगे?पुलिस आफिसर ने पूछा।

तय समय के बाद और तीस मिनिट उसके लिए में इंतज़ार करूंगा।पर में दाबे के साथ कहूँगा की बो अगर जिंदा है तो वक़्त पर जरूर आयेगा। 

“शुभरात्रि जनाब”- आपका इतना बड़ा बिशवास और समझ को आदर करते हुए बो जरूर आ रहै होगे। इतना कहते हुए पुलिस आफिसर उनका पुलिस-अंदाज़ में बंद खिड़कियाँ और दरवाजे को निरीखयान करते हुए दूर अंधेरा में खो गए। 

३ 

हवा में बेडोल की ठंडक,रूईयों की तरहा गिरता हुआ बारि-की-बुँदे भी अब बड़े हो रहै थे। बचे-कूचे जो कुछ आदमी इधर-उधर हो रहै थे,बो भी इस बोझिल मौसम से बचने के लिए अपना-अपना कोर्ट के कालर ऊपर कानतक खिंचते हात को पाकिट के अंदर डाल कर तेज-पेर गंतब्य की और लौट ना सुरू करदीए थे। पर अजनबी ने इस सब से बेखबर बही लोहै-की-दुकान सामने बेसे ही इंतज़ार में थे। तेज़ ठंडक और बोझिल मौसम पे काबुपाने के लिए सिगार का चुसकिया लेते हुए अपना सुरुयात-जबानी की प्रियबंधु की दर्शन के बारे में सोचतेहुए रोमान्चीत होरहै थे। पर यह इंतज़ार सायद उसे थोड़ा-बहुत परेशान भी कर्-रहा था। इसीलिए सिगार-का-कश थोड़ा ज्यादा ले रहै थे। लगभग बीस-मिनिट लंबा इंतज़ार-उदास और बोरियत का अंत करते हुए सड़क की दूसरा-छोर से एक लंबा-तगड़ा आदमी ओभेरकोर्ट पहनते तेज़-कदम अजनबी के पास आए। ठंडक और खराब-मौसम हैतु बो अपना ओभेरपोर्ट का कलर कान से ऊपर यूं खड़े किएथे जिसके तहत उसका चेहैरा कलर नीचे कहीं छिप गए थे। करीब होते ही उस लंबा आदमी ने आजनबी से पूछा- ‘ अगर में गलत नेहिं हूँ, तो क्या में “बाब” से मुलाक़ात कर रहा हूँ? 

 उस आबाज और सवाल का उम्मीद में खड़े हुए अजनबी का मानो जेसे इंतज़ार की घड़ी खतम हो गयी। हजारोमिल दूरी यात्रा का तकलीफ, फ़ीर इंतज़ार, अबिश्वास सबकुछ कहीं छुप गए। खुसी और उल्लास जेसे उसके जुबान पर टपक पड़े। लोहै-की-दुकान से ही मारेखुसी और आनंद से बो चिल्लाकर कहा- किम आश्चर्य! क्या में प्रिय जिम्मी वेल्स को भेट कर रहा हूण , धन्य हो उपरबाले। आबेश में आकार बाहों में दोनों खुद को काश कर जकड़ लिए। 

सड़क का दूसरी छोर से आया बो लम्बा-आदमी अजनबी का दोनों हात को ज़ोरसे हिल्लाते हुए कहा- “बाब” मेरा अटल बिशवास था की अगर तुम ज़िन्दा और सुस्थ हो तो मेरा मुलाक़ात यहाँ तुम्हारा साथ निश्चित होगा। वेल, बिस-साल का अंतराल बहुत लंबा है,फिर बो पुराना ब्राडी रेस्तोंरॉ भी नेहिं है। अगर होता तो फिर आज वहाँ रात का खाना खाते हुए हम हमारा पुराने सुनहैरे पल की याद को फिर से उजागर करते होंगे। पर...छोड़ो ये बताओ पश्चिम तुम्हैं केसा सलूक किया है ओल्डम्यान ?

-सिकायत की कोई मौका ही नेही छोड़ा-अजनबी ने कहा। जब-जो चाहा, बेधड़क बो हासिल की। हर मोड और स्थिति मे पश्चिम मेरा जबर्दस्त साथ निभाया। फिर लंम्बा आदमी को संबोधित करते पूछा- अंतिम मुलाक़ात समय की उच्चता से आठ-दश इंच लम्बा हो गए हो जिम्मि। यह लंबाई कह रहाहै की तुम न्यूयार्क में बिलकुल पेर जमलिए हो। 

-हाँ –चलेगा। लम्बा आदमी ने उत्तर दिया। बाकी जरूरतों के साथ अच्छा तनखा में एक डिपार्टमेंटल स्टोर में सहकारी म्यानेजर की पद पर बहाल हूँ। मेरा उम्मीद और जरूरतें मिलरहा पैसों से आराम से पूरा हो जाता है। फिर बातचीत की रुख बदलते हुए कहा- वेल बाब, चलो मुझे मालूम एक अच्छा जगह को चलते हैं जहां इस ठंडक और बारिश की छीटें से बचकर आराम से बैठे हमारे वो खूबसूरत बीते हुए लम्हों को फिरसे ताज़ा करंगे। 

 फिर दोनों ने हात में हात डाले रास्ते के ऊपर पैर आगे बढ़ाए। पश्चिम से आया हुआ बो अजनबी जिसे लम्बाआदमी ने “बाब” कहकर संबोधित कर रहा था, अपना कामयाबी, हासिल, खास-खास दोस्त और चिकागो में इक्क्ठा किया अपनी धन और सोसाइटी के बारे में बिना सांशरुके बता जा रहैथे। वो सब बताते वक़्त उसकी आवाज में एक जोश, हशील का गर्ब और खुसी टपक रहा था। दूसरेऔर साथ चलता हुआ बो लम्बा आदमी दिल और दिमाग से ध्यान लगाकर सब सुन रहै थे। अभीतक चहरे देखने की मौका दोनों को नेही मिला था। तब एक ‘दबाई-दुकान’ को पार करते वक़्त, दुकान की फैली हुई प्रकाश में तुरंत दोनों अपनअपने तरफ घूमकर आपस के चेहैरा को पाश से झाँकने लगे। कुछख्यण अपलक झाँकने के बाद पश्चिम से आया अजनबी ने लम्बा आदमी का हात एसे छोड़ दिया मानो जैसे बीछू काटलिया। एक कदम पीछे हट्ते हुए टूटे हुए आवाज मे कहा- ‘में निश्चित, की तुम जीम्मी वेल्स नेहीन हो। बिससाल जरूर एक लम्बा ब्यबाधान पर इतना लम्बा नेहीं जो एक आदमी का तलवार जैसा लम्बा और तीखा सुंदर-नाक को समेट और मरोड़ कर चिपक देगा !

-बिलकुल शांत पर गहरे आबाज में लम्बा-आदमी ने उत्तर दिया-‘ हाँ, पर उतना लंम्बा जरूर जो अपना बहते हुए धार से एक अछा आदमी को ‘सतरी-अपराधी’ में बदल सकता है। कुल दश मिनिट से बात-चित प्रक्रिया में तुम मेरे गेरफ्त में हो मिस्टर बाब या जो भी तुम्हारा नाम है और साथ-साथ अपने बारे में तुम मेरे सामने सबकुछ उगल चुके हो। चिकागो पुलिस कमिशनर यहाँ का पुलिस मुखिया को तुम्हारा हुलिया और आपराधिक-काम के बारे में सूचित करने के साथ पाँच-डलर जाली-नोट का एक बंडल भेजे हैं जो तुम छाप कर पूरे पश्चिम में फेलाते हो। उस आधार पे में तुम्हैं गिरफ्तार करता हूँ मि॰बाब या..........., ज्यादा होशियारी या कोई पेंच ना करके चुपचाप मेरे साथ पुलिस-स्टेशन चलो। 

 हजार मिल दुरसे आया हुआ ‘बाब’ के लिए और ना कुछ कहना या करना बाकी था। कुछ पल के लिए अबिश्वास भरा नजरों से उस लंम्बा आदमिकों देखने के बाद उसके साथ चुप-चाप जाने के लिए तयार होगए। जाने से पहले उस लंम्बा आदमी पाकेट से एक छोटा सा मुड़े हुए कागज थमाते हुए कहा- थाने की और जाने से पहले आप के लिए यह खत- जो देने के लिए सहायक पुलिस इनिसपेक्टर जिम्मी वेल्स मुझे दिये थे। मेशिन की तरहा कागज को लेते हुए बही प्रकाश में पश्चिम से आया हुआ बो अजनबी पढ़ने लगे। सुरू करते वक़्त बो बिलकुल शांत और दृढ़ थे, लेकिन पढ़ाई खतम करते वक़्त उसका हात और पूरा शरीर कांप रहाथा। आचम्बित खुले आँखों से दो-धार पानी गाल के ऊपर होते हुए टपक रहा था।

 उस छोटा सा चिठी में एसा ही कुछ लिखागया था- “ बाब, हम-दोनों के बीच समझोते के मुताबिक तय समय और जगह- में पहुँच गया था। तुम सिगार लगाने के लिए माचिस की तिल जलाने वक़्त उसी हल्का सा प्रकाश में तुम्हारा चेहैरा देख कर में दंग रह गया, क्यों की चिकागो पुलिस द्यारा जारी चित्र के मुताबिक वही कुख्यात अपराधी और कोई नेहीं तुम ही थे। सगा-भाई जेसा मेरे प्रिय मित्र को इस रूप से देख कर में क्या करूँ या ना करूँ समाझ नेहींपाया। इसीलिए बहीं पकड़ने का साहस जूटा नेहीं पाया। संपर्क का डोर मुझे मझधार में यूं खड़ा कर दी। परंतु मेरे अंदर का पुलिस जो तेनात के वक़्त कर्तब्य-निस्ठा की कसम खाई है,बो भारी पड़ा। दोस्ती को पीछे धकेल कर पुलिस का बर्दि आगे आ गया। लेकिन खुद ना करके हमारे ही डिपार्टमेण्ट का एक सादा-पोषाक पुलिस को भेज कर यह काम करने को उचित माना “।


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