भरोसा-जिसे नोच डाला

भरोसा-जिसे नोच डाला

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ए, क्या सोच रही हो ?

नहींकुछ नहीं।

कुछ नहीं कैसे। तब से देख रहा हूँ तुक किसी सोच में डूबे हुए हो।इसीलिए ध्यान तुम्हारे कहीं और हे। कुछ बताओगे तो में मदद कर सकता हूँ।चुप रहोगे तो क्या भगबान हुन जो तुम्हारे अंदर से क्या है पढ़ लूंगा।

जोसेफ के इन अपनापन से लथा मुस्कुरा दी। उसकी दिल पिघलने लगी। उन्हें क्या चाहिएबस ऐसे एक साथी जो अपनापन से उसकी सुख-दुख में ऐसे साथ दे।उसकी जिंदगी की डगर पर एक पहिया बनकर साथ चलें।उसे ना धन ना शान-बान किसीके जरूरी नेहीं। बस एक सच्चा साथी की जो उसे समझे, उसके कदम पर कदम मिलाके चले।

जोसेफ फिर हिला दिया। पूछा-कहाँ खो गयी हो ? हकीकत पे लौट आओ। सचमुच लथा कहीं सपने में खो गयी थी। उन्होंने जोसेफ की तरफ देखी। आँखों पे अंख डालकर जोसेफ की मां की बात को पढ़ने की कोसिस की। परंतुउन्होंने जोसेफ के चौड़े छाती पर अपना शिर थम दिया। उंगलियों पे बाल को सहलाते हुए पूछा-

और कितने दिन ऐसा चलेगा ?

में अकेली औरत, ना कोई अपना ना कोई रिश्तेदार। बचपन से मा-बाप को खो दिया हूँ। ज़िंदगी के साथ लड़ते लड़ते जवानी की दहलीज पर खड़ी होगयी। इस जवानी से अब खुदपे और इस समाज से डरती हहूँ। समाज के इन भूखे भिडिओं से खुदको और कितने दिन बचा पाउंगी। बस सोचती हूँ काश मेरी भी कोई अपना हो, एक छोटा सा घर हो

जोसफ ने उसे अपना बाहों में ले लिया।उसकी होंठ पर उंगली रख कर बोला-

इस क्यों सोचती हो। तुम तो लड़कियों के लिए एक मिसाल हो। सचाई ये है कि में भी तुम्हारा कायल हो गया हूँ। मौका नहीं मिल रहा था। पर आज पूछ ता हूँक्या तुम मुझसे शादी करोगे ?

लथा की कानो में बांसुरी बजने लगी।खुसीओं की घंटी लहराने लगी। मानो बीरान ज़िंदगी में रौनक आ गयी। उसे लगी जैसे फूल ही फूल खुसबू बर्षा रही है। अनजाने में उसकी हाथ जोसफ की बलिष्ठ हात को थाम लिया। दोनों और करीब आ गए। शांसो से शानसे समाने लगी। दिल की धड़कन मानो बढ़ गयी। जोसफ ने उसे और करीब खींच कर अपना होंठ उसकी पतली होंठ पर रख दिया। लथा को लगी कोई दहकता हुआ आग उसकी शरीर पे डाल डी। वो मदहोश हो गयी।भूल गयी सब कुछ, रीति-रिवाज को। मिलान की आग के लपेट में दोनों बहक गए।

तूफान आया और चला गया। लेकिन उतना समय में बहत कुछ अदल बदल हो गए। लथा को उस तूफान ने काली से फूल बना दी। लथा कि आंखों से पानी टपक ने लगी। कहीं उन्होंने गलती तो नहीं कि।वो जोसज़फ़ की तरफ देखी। यह लड़कियों के पास इस आँशुओं के सिबा और हे क्या।खुसी हो या गम, हरपल यही आँशु ही बफादारी से साथ देती है। जोसफ उठ कर चलने के लिए तैयार हुए। फिर लथा की आँशु को पोछते हुए कहा-

मेरे ऊपर भरोसा नहीं

इस भरोसे पर तो मेरी सबकुछ तुम्हारे चरणों पे अर्पण कर दी। समाज को जबाब देने से डर रही हुन

डरो मत। काल सुबह होते ही मंदिर में सभी के सामने तुम्हारे हत थाम कर ले जाऊंगा। बस सुबह का इनतेज़ार करना होगा।

इसकी सिबा मेरे पास और कुछ है नहीं। तुम्हारे भरोसे के सिबा

तो चल, अभी पंडित को नींद से उठाकर शादी करलेंगे।

में उसके लिए तैयार हूं।

लथा थोड़ी सी मुस्कुरा दी। अंदर ही अंदर सोचने लगी बेबजह वो डर रही है। भरोसा रखनी होगी। उन्होंने जोसफ की छाती से शिर लगादी। जोसफ उनकी बालों को सहलाते कहा-

बस सुबह होते ही पंडित को ला कर मंदिर में शादी करके तुम्हे अपना घर ले जाऊंगा।

सुबह होते ही कहने की मुताबिक चार आदमी,सायद उनका दोस्त होंगे, लेकर मंदिर में तैयारियां के साथ उनसे शादी रचा लिया। पंडित की मंत्र, कुछ मंदिर के गिने चुने लोगों के सामने माला पहनाकर शादी की ओर मंगलसूत्र भी दाल दिया।जो कहा था, वही कर जे दिखाया।इसे तो भरोसा कहते हैं। बेस जोसफ के बारे में बो बहुत बुरा भला उनकी कान तक आयी थी, पर बो सब भूल जाना ही अच्छा है। आखिर उनकी पति जो हो गया। पति के ऊपर भरोसा नही रहेगी तो घर केजे चलेगी।

कितने लोग है जो भरोसा देकर उसे निभाते हैं।जोसफ कितना बुरा क्यों ना हो पर उसे पत्नी का दर्जा तो दिया। अपने पत्नी का नाम और मान को वो यूँ झुकाये गा क्या। सच तो ये है कि बो खुद उसे अपने पास आने की मौका दी थी। और आज साथी बन गए। लथा कि आंखों पे खुशियों के आंसू उमड़ आए।

उसे क्या मालूम कि तकदीर उसके साथ कूटने बड़े खिलबाड़ करने जा रहा है। उसकी कलम लथा की कपाल में जो लकीर खिंचे है उसे ना तो वो या और कोई बदल सकता है। समय दौड़ रहा था। दौड़ रहा था वही मंज़िल की और जो लथा कि बिस्वास और भरोसा को कुचलने बाला हो।

जंजीर की खाट खाट से लथा दौड़ कर दरवाजा खोल दिया। सामने जोसफ का ओ चार दोस्त, जो शादी में थे। उसकी आंख जोसफ को ढूंढ रहा था। लेकिन उसे पहले उन चारों ने उसकी मोहन पर हात दबाके अंदर खीच लिए। सराब की बू से लथा घबरा गई। कुछ करे वो चार भिंडियों ने लथा को एक के बाद एक रौंद डाले। फिर जाने से पहले दो नोटों की गाड़ियां जोसफ के हाथ मे थमा दिए जो आराम से दरबाजे पर बैठ कर शराब पी रहा था और लथा कि और देख कर हंस रहा था। लथा की अआँख मानो फैट सी गयी। वो सिर्फ जोसफ की और देख रही थी। आंखों से दो मोटे धार निकल रही थी।


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