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Rabindra Mishra

Drama

4  

Rabindra Mishra

Drama

खत- जो खून बन कर बह गया

खत- जो खून बन कर बह गया

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दूर गगन पर चांद मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था। ऐसे मुस्कान के साथ जैसे वो मेरे तकदीर पर मुस्कुरा रहा है , मेरे को संग मर मर सफेद किरण के फूलों की झड़िया बरसा कर बधाई दे रहा है। क्यों ना बरसाए? सबसे अहम,सभी पहुंच से दूर, कितने दिलों के धड़कन "जीनत" मेरे आंगन में खिलने बाली जो है। इस से बड़ा हासिल और क्या हो सकता है।

जीनत, जिस को पाने के लिए सहर के हर नौजवान तड़प रहेथे, जिसकी एक झलक के लिए अनगिनत आह उमड़ रहा था, जो सपने में आकर पागल कर रहाथा, वही हसीन बस चंद दिनों के बाद मेरे, सिर्फ और सिर्फ मेरा होजाएगी। उनकी आने से मेरे मुरझाया घर में रौनक आएगा।

घर- हां, मेरा छोटा सा घर। जिस घर में अकेला ही अकेला हूँ। ना मा, ना बाप, भाई ना बहन। ना कोई सगा, बा कोई मीत। बस अकेला अपने तन्हाई के साथ इन चार दिबारें के अंदर जी रहा हूँ। दिल को सकूँ देने बाला भी जोई नहीं। कभी कभी ये खयाल आ रहाथा की मेरे साज का अबाज मिलेगा या नहीं। कितने सपने, बेस ही अंदर ही अंदर टूट जा रहा था। लेकिन अब सपना टूटेगा नहीं। चंद दिनों में मेरे साज़ को अबाज जो मिलने बाली है। सपना - एक मधुर सपना, जो जीनत के रूप में हकीकत मैं बदलने बाली है।

जीनत झिंज्ञानी-संगीत दुनिया के एक चमकती सितारा।

जिसकी आबाज में उपरवाले ने इतनी मिठास भर दी है कि साकार भी उसकी अबाज की मिठास जे आगे सरम से पानी पानी हो जाएगी। थोड़ा चूक जाएगी तो चींटिया लग जाएंगे। जब बो गाती है तो लगती है -दूर कहीं बंदियों से चमन के फूल संगीत बनकर कानो में घुल जाता है। जान हतेली पे आ जाता है। हवा थम जाती है कुछ पल के लिए, उसकी गानों की रस में समा जाने के लिए। संगत करने बाले भूल जाते हैं साज बजाने का।

मुझे याद है बो दिन। दूरदर्शन मैं उसकी लाईव संगीत का कार्यक्रम था। और रिकॉर्डिंग के दिन सुबह से उसकी संगत टीम के सितार बादक कहाँ गायब हो गयाथा। रिकॉडिंग साम को था फ्लोर में और सीधा प्रसारण होने बल था। उस गाने में सितार का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होना था। तो तुरंत उस आर्टिस्ट के जगहौर एक नया आर्टिस्ट लेने के लिए बो डर भी रहीथी तो दूसरी और सितरिस्ट मिल रहाथा। ऐसे दुबिधा में बो उलझ गए थी कि क्या करे ना करे सोच नहीं पा रहीथी। समय दौड़ रहता। करीबन बारा- साढेबारा के करीब उनकी बांसुरी आर्टिस्ट मेरे को बुला कर उनसे मुलाकात करब दिया और बात दिया कि में एक सितरिस्ट हुन और उनके साथ पांच-छे कार्यक्रम करचुका हूँ। जीनत मेरे को शर से पाओ तक एक फेकती हुई नजर से निहार लिया। फिर दो टूक शब्दों में पूछा- क्या आप एक घंटे के अंदर मेरे इस गाने पे सितार का संगत कर सकते हो। सीधा हाँ या ना में जबाब चाहिए। मुझे लगा मेरे अंदर के कलाकार को यह एक खुला आह्वान है। फिर जैसे अंदर से एक अबाज आया- यह एक सुनहरे अबसर है जहाँ तुम अपना हुनर को दिखा सकते हो और ऊपर भी उठ सजकते हो। जीनत झिंगवानी के साथ काम करनेके लिए आर्टीज़त तरसते हैं। लेकिन तुम्हे बुलाया गया है। सही अबसर ऐसे ही आते हैं। इस सुन्हेरा मौका को यूं मत गवाँ दो।

मेरे पास सोचने की और कोई रास्ता नहीं था। बिना कुछ ज्यादा सोचे मेने हा कहा दिया। सच, मौका ऐसे आते हैं। ना कोई सूचना ना इशारा। मेरे तकदीर में सायद कुछ अलग लिखा गया है। ये मेटे सितार बजाने का इम्तिहान है सायद। में आहिस्ता लेकिन खुद के ऊपर बिस्वास रसखते हुए कहा- 'मैडम, एक बार मुझे बो गाना सुना दीजिए। फिर में संगत कर के दिखाऊंगा। अंतिम फैसला आपकी। मानो हिम्मत जुटा कर इतना कह दिया।

वो तुरंत बैठ गई और रिकॉर्डिंग बाला गाना गाने लगी। गाने की बोल कुछ इस प्रकार का था-

"दिल में अरमानो जो जगी थी

सब आँशु बनकर बह गई

तुम मुंहे अकेली करके

साथ हमारा जो छूट गयी'। मुझे लगा जैसे दिल के सारे दर्द इस गाने में उमड़कर उसकी अबाज में सम्मा गयी है। मेरा हात कब और कैसे सीतार पर चल गया, नहीं मालूम। मेरा आंख अपने आप बंद हो गया और उंगलियां सितार के तारों पे धुन छेड़ने लगा। उंगलिया ऐसे चलने लगे कि बी मेरे बास में नही रहे। बस धुन छेड़ते रहें। किशिका मेरे कन्धों को हिला देने से में चोंक कर आंख खोल दिया। देखा सब मेरे तरफ देख रहे हैं। गाना कब बंद हो गयी थी। तब एहसास हुआ कि कोई मेरे उंगलियों को सहला रहा है। उंगलियों में दर्द का एहसास। नज़र डाला तो देखा मेरे लहू निकलती उंगलियों को जीनत झिंगियानी सहला रही है। में फैट से उठ खड़ा हुआ और कहा - I am sorry mam . बिना कुछ सोचे ओर समझे कैसे मेरे उंगलियां सितार के ऊपर चलागया, मालूम नहीं हुआ। मुझे माफ़ कर दीजिए। लेकिन तबतक अबाज के साथ साज समा गई थी। उनकी गला और मेरे उंगलिया, उनकी सुर उर मेरे साज़ जुड़ गए थे।

शाम को लाइव कार्यक्रम। फ्लोर पर सब आर्टिस्ट अपना अपना स्थान ले गए। मुझे कहाँ बैठ ना है। जीनत जी आंखों की इसारे पे उन्ही के पाश बैठने के लिए कहा। दूर दर्शन संचालक के इसारा मिलते ही बो गाना सुरु करदी। उर में सितार छेड़ ने लगा। साज और आबाज का बेहतरीन जुगलबंदी। स्टूडियो के अंदर बुलाये गए मेहमान दिल थाम के बैठ गए। तालियों की गड़गड़ाहट और बाह बाह की आबाज में स्टूडियो मदहोश हो उठा।

पैकअप के पश्चात में आर्टिस्ट रम पे लौट आया। बाकी कलाकार लोग कैंटीन चले गयेथे। में खुद को सोफे के ऊपर डाल दिया और आंख मूंद लिया। कितने समय तक शो गया था, मालूम नहीं। लेकिन अपने बदन के ऊपर गरम शंस कि छूने से आंख खुल गया। देखा जीनत झिंगियानी मेरे ऊपर झुक कर मुझे देख रही है। ऐसी नजर जैसे बो मेरे में समा जाएगी। हमारे बीच फैसले घट रहाथा। उसके गरम संश मुझे जला रहाथा। में दुबिधा में पड़ गया। कुछ सोचु, इस से पहले उन्होंने अपनी गरम होंठो से मेरे होंठ के ऊपर ऐसे समायी की में बस देख ता ही रहगया। मेरे शरीर मानो बेकाबू हो गया। लगा कि उसको आगोश में लेकर चुम लूं। संभल गया। धीरे से उसे अलग करके सीधा बेथ गया। जीनत मेरे को अपलक निहार रहीथी। जैसे उनकी आंख कह रहिती- मियां, आबाज की साज बन ने अएथे, पर "दिल की साज़" बन गए। कभी ये साज को आबाज से अलग मत करना।

सब इतना जल्द जल्द हुआ कि अपना सोच से बाहर था। महसूस हुआ के हुम् दोनों सायद दोनों के लिए इस धरती पर आए हुए हैं। जीनत की घरबालों ने शादी के तरीख पक्के करने के लिए संदेश भेजा। लेकिन मेरा है कौन जो जबाब देंगे। में खुद जबाब उनके ऊपर छोड़ दिया। कह दिया आप जो सही सांझेते हैं, वही कीजिये। जबाब में जीनत से एक खत मिला। लिखी थी-

और सहन नहीं हो रहा है। हो सके तो अभी अभी यहां से ले चलिए। आप की प्यार पाने के लिए तड़प रही हूं। ये दूरी सहन नहीं होती। मेरे साज़, बस कमसे कम दो लफ्ज़ लिख कर मेरी तड़पती शरीर पे मरहम तो लगा दीजिये।

उनकी चिठी पढ़ते ही मेरा मन आसमान छूने लगा। उनकी लिखी लफ़्ज़े झरना की झर झारहट की तरह कानो में पिघलने लगी। तुरंत एक कागज और कलम लेके बैठ गया। लेकिन क्या लिखूं, कैसे लिखूं कुछ सोच नहीं पाया। मैन में जो आया लिख डाला, लेकिन सब को फाड़ डाले। कागज़ की एक पहाड़ बना दिया। फिर एक कागज पे लिखा-

जीनत, तुम क्या हो

यह मुझे नहीं पता, लेकिन

जिधर देख त हुन, बस तुम्हारा नज़र

दिल और दिमाग में तुम ही तुम हो।

शादी हो या ना हो, तुम्हे अभी उठाकर ले आऊंगा

नहीतो साज़ अबाज के बिना अधूरा रह जायेगा। "

सच पे खत को चूम कर छाती बाले पैकेट में डाल दिया। फिर घर से निकल पड़ा। में कहां जा रहाथा, क्यों जा रहा था भूल गया। भुलगाया की बीच रास्ते पे में दौड़ रहा हूँ। मुझे बस जीनत के सिबा और कुछ दिखाई नही दे रहा था। उनकी खुसबू मुझे पतंग की तरह खीच रहा था। मेरे को लगा में एक हवा की झोंका हुन। यूँ उड़कर जीनत में समा जाऊंगा। एक उज्जल आलोक से आंख मेरे चुंधिया गयी। खुद को संभाल पाऊं, पीछे से एक जबरदस्त धक्के से रास्ते की पथर में चिपक गयी। चिल्लाहट, बहुत सारे लोग, खून से लतपत मेरे शरीर। लेकिन में तो आसमान पे उड़ रहाथा। सब देख रहा था। जीनत रो रहिती। मैंने कहा- रो मत पगली, तेरे लिए खत जो लाया हूँ। पाकिट से ले कर एक बार तो पढ़ लेते।

चिट्ठी कहाँ थी। खून उसे दही दिया था।


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