भवानी ने सोचा भी ना था कि...
भवानी ने सोचा भी ना था कि...
भवानी की जब शादी तय हुई तब सच में उसके मन में खुशियों के लड्डू फूट रहे थे।
उसने अपने आज तक के 21 वे इस साल तक जितनी भी शादियां देखी थी उन सबकी झलकियां उसके मन में और आंखों के सामने तैरने लगी।
सुबह-सुबह दद्दा अल्मोड़ा से आए थे और उन्होंने भवानी की मां जानकी को बुलाकर कह दिया था परिवार अच्छा है और लड़का तो जैसे श्रवण कुमार है अपने माता-पिता की हर बात मानता है यहां तक कि जब मैंने भवानी की फोटो उसे दिखलाइए तो उसने आंख उठाकर भी नहीं देखा और कहा जो मेरे माता-पिता को पसंद है वह मेरी पसंद है अब तुम ही बताओ भूपेश की मां आज के जमाने में ऐसा लड़का कहां मिलता है जो अपने माता-पिता की सारी बातें आंख मूंदकर मान ले यहां तक की लड़की देखने की भी उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की वह तो मैंने ही कहा कि आप सब जब लड़की देखने आएंगे तब प्रदीप को भी साथ लेकर आइएगा।
दद्दा के लिए पानी और जलपान लाते हुए भवानी ने सिर्फ इतना सुना कि लड़का श्रवण कुमार जैसा है इतना सुनते ही उसका दिमाग ठनका श्रवण कुमार मतलब अपनी मां का भक्त होगा और जो सास के पल्लू से बंधा रहता है वह तो अच्छा पति हो ही नहीं सकता। एक पुरुष के हृदय में 2 स्त्रियां कैसे रह सकती हैं?
वह दादा से उस प्रदीप कुमार उर्फ श्रवण कुमार के बारे में और भी बहुत कुछ पूछना चाहती थी पर उस वक्त जहाज से चुप रह गई बहुत देर तक सुनने की कोशिश करती रही लेकिन पता नहीं क्यों दद्दा ने उस दिन श्रवण कुमार के बारे में कोई ज्यादा बात नहीं की और अम्मा को पता नहीं आज क्या हो गया उन्होंने भी अपने भावी जमाता और बेटी के भावी ससुराल के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की यहां तक कि उन्होंने यह भी नहीं पूछा कि होनेवाली समाधान उनसे कहीं ज्यादा खूबसूरत तो नहीं है या होने वाली संबंध कैसे कपड़े पहनती है गोरी है कि काली है लंबी है कि नाटी है।
अम्मा चुप कैसे है भला...?
अम्मा तो अपने सामने किसी और स्त्री की तारीफ नहीं सुन सकती लेकिन जब दादा ने कहा कि उसकी अम्मा ने बहुत अच्छा खाना बनाया था तो हम चुप कैसे रह गई किसी और स्त्री के खाने की प्रशंसा गद्दा कर रहे थे और अम्मा सुनकर चुप कुछ तो अजीब सा कुछ तो गड़बड़ सा था जो भवानी पकड़ नहीं पा रही थी।
जैसा कि दद्दा ने कहा था अगले इतवार वो लोग आने वाले हैं भवानी ने अपनी तरफ से तैयारी पूरी कर रखी थी और उसे लग रहा था कि यह जो श्रवण कुमार है ना ना ना प्रदीप कुमार है। शायद थोड़ा ओल्ड फैशन होगा इसलिए उसने सलवार कुर्ता ही पहना।
नियत समय पर प्रदीप अपने माता पिता के साथ और छोटी बहन भव्या के साथ जब उसके घर आया और भवानी चाय की चाय लेकर गई तो उसकी नजर जैसे ही प्रदीप पर पड़ी उसे यकीन नहीं आया कि उसने जैसा सोच रखा था प्रदीप तो वैसा बिलकुल नहीं था।
लाइट चॉकलेट कलर के और डार्क ब्राउन पेंट में वह कुछ अलग लग रहा था हाइट भी उसकी बहुत अच्छी थी उस साथ में उसकी मुझे थी भवानी को हमेशा से मूछ वाले लड़के बहुत स्मार्ट और हैंडसम लगते थे वह अपनी सहेलियों से कहा भी करती थी कि यह लड़के जब ब्यूटी पार्लर जाकर चिकनी बनकर आते हैं मुझे कुछ खास अच्छे नहीं लगते मैन शुड बी मैनली।
भवानी उनसे उनको बहुत पसंद आई थी और भवानी को तो प्रदीप इतना अच्छा लगा था उसने चाय नाश्ते के बाद घर के छोटे मंदिर में गौरा से जाकर प्रार्थना भी कर दिया,
"हे गौरा! तुमने जैसे शिव को मांगा था मैं भी आज प्रदीप को मांग रही हूं मेरी झोली भर दो!"
भवानी ने गौरव से प्रदीप को मांगा था गौरव जरूर फ्री होंगी क्योंकि मां पार्वती ने उसकी प्रार्थना सुन ली और गौरी गणपती सी भवानी और डार्क हैंडसम प्रदीप की दुल्हन बन कर उसके घर आ गई।
पाठक समझ रहे होंगे...
लड़के ने लड़की को पसंद किया लड़की ने लड़की को पसंद किया और शादी हो गई
और हैप्पी एवर आफ्टर का बोर्ड लग गया।
पर... असली जिंदगी तो अब शुरू हुई ना...!
भवानी ने तो सोचा भी ना था कि...
यूँ होगा प्यार और तकरार और फिर...
जीवन भर का करार (वादा )
(समाप्त )