भूत वाली कहानी
भूत वाली कहानी


एक दम सच वाली 1 तो हुआ यूँ के हम जब कालिज मैं पढ़ते थे, तो हमें इश्क़ हो गया था अभी भी हे अभी कोण सा हम बूढ़े हो गए हैं। और जिस से इश्क़ हुआ, वो ही आज कल हमारे लिए परांठे बनाती है कपडे धोती है।
मतलब हम से शादी कर लीस है उसने।
चलो बात हो रही थी कॉलिज के दिनों की, तो हमे चस्का लगा था रात मैं वो फोन पर बतियाने का। और हमें बतिआयते देखते, तो पिता जी को चस्का था हमे गरियाने का। तो हम अकेले ही छत पर अपनी दास्निया ( चटाई ) लेकर सो रहते थे। और उनसे सारी रात बतियाते रहते।हमारे कई मित्र तो हमे आज भी कहते हैं के भाई तूने जितना पैसा बेलेन्स मैं उड़ाया उतना अगर जमा किया होता तो आज एक आधा फ्लैट ले ले लेता। लेकिन खेर छोड़ो इन बातों को, मुद्दे की बात करते हैं तो हुआ ये के हम अपनी जनेबहार अपनी गुलबदन से बातें कर के सो गए थे। उस रात थोड़ा हम ज्यादा नींदिया रहे थे तो जब हम सोये तो, करीब रात तीन बजे हमे आवाज सुनाई दी,,, छन्न छन्न छन्न। बिलकुल हमारी दास्निया के पास।
यूँ लग रहा था के कोई हमारे आस पास घूम रहा
है।
एक तो अंधियारी रात, ऊपर से खलिहानों मैं हमारा अकेला मकान, ऊपर से हमारे घर से १००, २०० गज की दुरी पर था श्मसान घाट। हम आंखें मिलमिलाते हुए जगे, तो देखा एक बहुत खूबसूरत साड़ी मैं एक औरत खड़ी हमारे तरफ मुस्करा रही थी। अगर दिन की बात होती तो शायद हम ख़ुशी से चौचक हो जाते। मगर इत्त्ती रात को तो हमारी फट के फ्लावर हो गयी थी। वो एक टक हमारे तरफ देख मुस्करा रही थी। धीरे धीरे हमारे तरफ बाहें फैला कर बुलाने का इशारा करती हुई पीछे पीछे बढ़ने लगी।हमने देखा के उसके पाओं जमीं पर नहीं थे।और वो पीछे पीछे कदम बढ़ाती जा रही थी।
कसम से अक्टूबर की हलकी ठण्ड मैं भी छल्ल से पसीना आ गया था। हमें और फिर वो छत लाँघ गई।और हवा मैं पीछे पीछे बढ़ती गयी।कसम काल भैरव की, एक बार तो हम भी कसमसा के रह गए। और फिर वो रस्ते मैं गायब हो गई और हम चुप चाप अपना बोरिया बिस्तर बांध कर नीचे आ गए और चिपक कर सो गए अपनी मम्मी के साथ।माँ तो खेर माँ हे उसके पास कभी डर नहीं लगता।
मगर सुबह जब माँ-पिता जी को जब सब बताया फिर से उन्होंने छत पर नहीं सोने दिया और जो गलियां मिली सो अलग।