Sanjeev #साहिब

Tragedy

4  

Sanjeev #साहिब

Tragedy

चैन की नींद

चैन की नींद

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"धड़ाम, धम्म", अचानक बाथरूम से बहुत तेज आवाज हुई , देवकी एक झटके से उठी।

"क्या हुआ ?, राजू बेटा राजू ...?? ठीक तो हो , ये आवाज कैसी थी", देवकी ने लंगड़ाते हुए बाथरूम की तरफ आते हुए बोला।

अभी भी उसकी उस लात से खून निकल रहा था , जिस पर उसके बेटे राजू ने उठा कर डंडा मारा था !! 

(3 घंटे पहले)

राजू घर में घुसते ही इधर उधर टटोलना शुरू कर दिया था। 35 साल का राजू बेरूजगार था , और एक नंबर का शराबी भी , शराब की लत उसे अपने बाप से लगी थी, जब भी उसका बाप दारू पी कर आता , तो उसकी बोतल से बची हुई , वो चोरी चुपके से पी लेता । एक दो बार तो कड़वी लगी, मगर फिर कड़वाहट कब मिठास और मिठास एक तलब में बदल गई पता ही नहीं चला।

बाप दारू पीता , और पीकर एक दम गाली देने लगता , गाली कब मार पीट में बदल जाती , और मार पीट कब चिल्लाहटो में बदल जाती। 

हर चीख उसकी मां के बदन पर उभरी पड़ी थी। कभी बेल्ट , कभी डंडा, कभी चप्पल , कभी लात , कभी घूंसे , कभी दीवार से सर मारना, बस इसी तकलीफ और दर्द को देवकी सह कर अपने बेटे को पाल रही थी।

उसे लगा था कि राजू बड़ा होगा , तो शायद उसके कहने में होगा, उसके दर्द , उसकी तकलीफ को कम करेगा , मगर जब पति किसी चौराहे पर मरा मिला, तो राजू की शराब पीने की आदत तलब में बदल गई । अब बाप तो था नहीं शराब मिलती कैसे , तो उसने वो करना शुरू किया जो हर शराबी करता है, चोरी !!!, अब चोरी के लिए घर से अच्छा क्या है, मगर चोरी के लिए घर में कुछ होना भी चाहिए।

राजू की चोरी की आदत ने एक दो बार उसे जेल की भी हवा खिला दी। मां के सपने जो बहुत छोटे से और आम से थे टूटने लगे , तमाम लोगों की तरह।

मुझे लगता है, सपनो का टूटना ही उनकी तकदीर होता है, पूरा होना तो बस एक अपवाद है। शराबी, और चोर , कौन अपनी बेटी देता ऐसे इंसान को, और इस बात की सनक राजू अपनी मां पर निकालता।मगर ये कमबख्त उम्मीद , बहुत गलत चीज है, मरती ही नही। और इंसान इस उम्मीद के सहारे एक धोखा और , एक तकलीफ और सहने के लिए तैयार हो जाता है।

उस रोज भी ऐसा हुआ , राजू को तलब लगी और आकर घर में टटोलने लगा, मगर इस घर में दीवारों के इलावा अब कुछ न बचा था , मगर शराबी को ये बात नहीं समझ आती, उसे तलब लगी हो तो बेटी में भी बोतल नजर आती है। 

" क्या ढूंढ रहा है तू???, मुझे बता । देवकी ने उसके हाथ रोकते हुए कहा।

" तू अपना मुंह बंद रख, मुझे जो चाइए मैं ले लूंगा", राजू ने अपनी मां का हाथ झटके से दूर करते हुए कहा।

कितनी अजीब बात है, बचपन में जिस मां का आंचल पकड़े पकड़े हम घूमते रहते हैं , बाद में उस मां का हाथ लगाना भी हमें अच्छा नहीं लगता। और लोग कहते हैं , " मौसम बदलता है",

" बता तो, देवकी ने फिर से कहा।

" तो सुन मुझे पैसे चाहिए , बोल कहा रखे हैं", राजू ने उसके कंधे पकड़ झंझोडते हुए कहा।

" बेटा , एक रुपया भी नही है, घर में , किधर से लाकर दूं , ?, उसने राजू के आगे गिड़गिड़ाते हुए कहा।

" तो फिर यहां क्या कर रही है, जा मुझे कहीं से भी रुपए लाकर दे , चल निकल", और उसे धक्का मार कर बाहर फेंक दिया।

जो मां कभी , अपने बच्चे की जरा सी चोट को बर्दाश्त नहीं कर पाती थी , उसके जरा से लड़खड़ाने पर गिरने से तुरंत भाग कर उसके पास चली जाती है, आज वही मां अपने बच्चे के हाथों बाहर फेंक दी गई। और लोग कहते हैं मां में भगवान बसता है, क्या सच में??

देवकी बेचारी किधर जाती , पड़ी रही, रोती रही, किस्मत पर , खुद पर , भगवान पर।

"अभी तक गई नहीं चल जा , जा जाकर पैसे लेकर आ ", राजू ने चीखते हुए कहा।

" मुझे बेच दे , देख अगर कोई कुछ दाम दे दे मेरा",। देवकी ने उसकी आंखों में देख उसे धिक्कारते हुए बोला।

" मुझ से जुबान लड़ाती है , रुक और उसने अपनी मां के बाल खींच कर घर के अंदर घसीट लिया, देवकी सुन्न हो गई उसकी ये हरकत देख कर , उसे समझ नही आ रहा था, कि उसका बदन ज्यादा दुख रहा है या दिल, और राजू ने इधर उधर देखा एक लोहे का डंडा पड़ा था, और उसे उठाकर बांह ऊपर उठाई, देवकी ने आंखे बन्द कर ली , वो सह सकती थी मगर शायद देख नही सकती थी और " तडाक ", होंठ भींच गए देवकी के , दर्द की लहर तैर गई , मगर शायद दिल के दर्द से बढ़कर नही थी। फिर एक और , एक और , एक और तीन चोट लगी देवकी को, मगर उसके मुंह से चीख नही निकली, मगर हां लहू जरूर निकल आया। और जितना लहू उसके अंदर बह गया उसका तो कोई हिसाब नही। मां को मार राजू बाहर निकल गया, और देवकी लेटी रही , खून से सराबोर , दर्द से भरी।

थोड़ी देर बाद राजू लौट आया शराब से भरा हुआ , देवकी उठकर दरवाजा बन्द किया और अपने भूखे बेटे के लिए खाना गरम करने लगी । मां है ना , बेटा केसा भी हो चलेगा मगर भूखा नही।दर्द से कराहती देवकी खाना गर्म कर रही थी उसका बहता लहू कभी रोटी में गिरता कभी सब्जी में। लोग गलत नही कहते के मां बाप हमें अपने लहू से पालते हैं।

तभी एक दम बाथरूम से जोर से आवाज हुई , देवकी चौंक कर बाथरूम के पास गई देखा दरवाजा खुला था , और ... और ... खून ,,, राजू के सर से खून निकल रहा था , शायद नशे में उसका सर दीवार से टकरा गया था, और दर्द में वो मां मां . कराह रहा था। अब ऐसे में कौन मां अपने बच्चे से दूर होगी , कैसे उसका दिल मानेगा ।

"क्या हुआ , बेटा क्या हुआ राजू, मेरे बच्चे , ", देवकी अपने जिस्म से बहते लहू से नहीं घबराई मगर बेटे का. उसकी तो जैसे जान ही निकल गई ।

तुरंत कपड़ा उठाया और अपने बच्चे के सिर को पोंछा , "अभी ठीक हो जायेगा मेरे बच्चे, चिंता मत कर", मां है ना", और उसका सर अपनी गोद में रख लिया , अपनी जांघो पर , जिन्हे अभी राजू लहूलुहान करके गया था।

" बेटा , तू क्यों ऐसा करता है, शराब अच्छी चीज नही है, तेरा बाप भी मुझे इसी के कारण छोड़ कर चला गया, अब तुझे ये ले डूबेगी", मेरे बच्चे छोड़ दे इसे, और जब तू इसे छोड़ देगा तो तुझे नोकरी भी मिल जायेगी, और नोकरी देख कर तेरी शादी भी हो जायेगी, तेरी प्यारी सी दुल्हनिया लाऊंगी, वो राम भरोसे की बहु भी खूबसूरत, फिर तेरे बच्चे , हाय मेरे पोते पोतियां होंगे, कितना अच्छा रहेगा,मगर तुझे इस सब के लिए पहले ये शराब छोड़नी होगी, बोल छोड़ेगा न। , मेरा बच्चा।"।

और सारी रात देवकी उसकी मरहमपट्टी करती रही। कुछ देर तक तो वो करहाता रहा फिर उसकी आंखे बंद होने लगी ,। देवकी को लगा उसका दर्द कम हो गया है । वो सारी रात उसका सर अपनी गोद में लेकर बैठी रही।आज देवकी को सकूं की नींद आई थी, अपने बच्चे को गोद में लेकर। वो उसे जगाना नहीं चाहती थी।

तभी दरवाजे पर आहट पाकर वो धीरे से उठी।और दरवाजा खोला । एक आदमी अंदर आया और राजू के बारे में पूछा। देवकी ने बताया वो सो रहा है, आदमी अंदर चला गया , तो देवकी ने कहा वो बाथरूम में गिर गया था, मैने उसे वहीं सुला दिया । जब आदमी बाथरूम की तरफ भागा और ये देख के चौंक गया की राजू अब सदा के लिए सो गया था।



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