भूत का पत्थर
भूत का पत्थर


हम बच्चों का स्कूल जमटा में था। हमारे गांव से ढाई किलोमीटर दूर। पैदल रास्ता, उबड़ खाबड़ , चौड़ा लगभग सात आठ फीट , मोटे मोटे पत्थर पूरे रास्ते में बिछे हुए । रास्ते के दोनों तरफ चीड़ के हरे भरे पेड़ , करोंदे की झाड़ियों ,और आछयों के कंटीले बूंटों का मुकाबला । बरसात के बाद रास्ता बिल्कुल बेकार हो जाता। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट कभी कभार रास्ते को बना देता। हम लोगो का गांव ऊंचाई पर , छुट्टी के बाद घर वापिस आना ज़्यादा कठिन लगता। चढ़ाई खत्म होते ही आधा किलोमीटर का सीधा रास्ता फिर हल्की हल्की चढ़ाई। उस सीधे रास्ते के लगभग बीच में , एक बहुत बड़ा काला पत्थर था। लोग उसे भूत का पत्थर कहते थे। क्यों पता नहीं। उस पत्थर के पास से हम सभी तेज़ी से निकलते थे ।
1982 के एशियन गेम्स का उद्धघाटन देखने हम चार /पांच बच्चे हेड मिस्ट्रेस के घर पर रुक गए । बाकी लड़कों ने बदमाशी में मुझे टीवी देखता छोड़ दिया , और सब एक एक करके गायब हो गए। जब नौ बज गए , देखा कोई भी नहीं। मैं तेज़ी से स्कूल की तरफ़ भागा , सब गायब। आस पास इस आस से देखा शायद गांव का कोई आदमी मिल जाए। जब कोई दिखाई नहीं दिया , तो हिम्मत करके चल दिया अकेला।
सांय सांय करता जंगल जो दिन में खूबसूरत लगता, डरावना लग रहा था। चढ़ाई तेज़ी से पार कर जब सीधे रास्ते पर आया, तो भूत का पत्थर याद आते ही प्राण हलक में आ गए। हनुमान चालीसा पढ़ता किसी तरह से वो रास्ता पार किया। पसीने से नहाए हुए।
बाद में किसी ने उस पत्थर को तोड़ डाला , इस कोशिश में कि उस से घर बनाने के लिए पत्थर मिल जाएंगे। पर पूरे पत्थर को तोड़ने पर भी एक छोटा सा पत्थर भी घर में लगाने लायक नहीं मिला। सही में भूत था क्या?
पर एशियन गेम्स के उद्धघाटन वाले दिन के बाद मुझे भूत के पत्थर से उतना डर नहीं लगा।
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