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Vimla Jain

Tragedy Action Children

3  

Vimla Jain

Tragedy Action Children

बहराश से शोर की ओर

बहराश से शोर की ओर

3 mins
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बच्चों की टोली बहुत मस्ती कर रही थी। दूसरे मोहल्ले के बच्चों को यह बर्दाश्त नहीं था ।

उनमें से एक लड़का आया और उसने मस्ती करते हुए बच्चों की टोली के एक बच्चे के ऊपर पीछे से मुक्का मारा धक्का दिया और भाग गया।

और उस बच्चे ने पीछे मुड़कर देखा और उसके पीछे उसको मैं खड़ा दिखा फिर क्या हुआ कभी-कभी छोटी सी गलतफहमी और छोटी सी घटना भी जिंदगी में बड़ा रूप ले लेती है ,और बहुत भारी नुकसान कर देती है ।

और जिसके साथ में वह घटना होती है उसे वह काफी भुगतना पड़ता है। इसी को दर्शाते हुए उस घटना को मैं मेरे शब्दों में कहानी मुख्य पात्र रूप में लिख रही हूं।

 कहानी का मुख्य पात्र वह बच्चा है जिस को चोट लगी और जिसने यह त्रासदी झेली

60साल पहले की घटना है

सब बच्चे शोर मचा रहे थे।

 होली के जलाने के लिए सब बच्चों की टोली इकट्ठे होकर बहुत मस्ती करते थे ।

मैं भी अपने दोस्तों के साथ में वह बहुत मस्ती कर रहा था ।

मगर पड़ोस वाले मोहल्ले के बच्चे में आकर हमारे में से एक बच्चे को धक्का दे दिया, उसने पीछे मुड़कर देखा वह तो धक्का देकर मुक्का मार कर भाग गया।

मगर को मैं पीछे खड़ा दिखा और उसने गुस्से में एक पत्थर उठाया जो नुकीला था और मेरे ऊपर जोर से मारा।

और वह पत्थर मेरे कान के पीछे हड्डी में जाकर लगा।

बहुत जोर से खून निकलने लगा सब बहुत घबरा गए थे।

उसी समय सामने से मेरी माता जी को बुलाया गया वे आई और मुझको गोदी में लेकर पास में उनका ही घर था जिसने मेरे को मारा था उनके घर ले गई और उनसे बोला मेरे को हल्दी दे दो पड़ोस वाली आंटी ने हल्दी का डिब्बा लाकर दिया। माताजी ने हल्दी बहुत सारी उस घाव में दबाई खून बंद हो गया यह बच्चे को पकड़कर मारने लगी तो माताजी ने रोक दिया कि बच्चों में लड़ाई झगड़े तो होते ही रहते हैं और गलतफहमी हो गई है ।

फिर हॉस्पिटल ले गए कान के पीछे टांके लगे।

मगर उस कान ने आवाज में धोखा दे दिया।

उस कान से सुनाई देना बंद हो गया बहुत हल्का हल्का सुनाई देता था। समय बीतता गया मैं बड़ा हो गया। लोग तरह-तरह की तानों से मुझे बुलाते।

कोई कहता बहरा, कोई कैसा बोला घर वालों को भी बहुत बुरा लगता मगर क्या कर सकते थे। उस समय इतनी आधुनिक पद्धति के ऑपरेशन भी नहीं थे।

उसी समय में जब मैंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया।

तब एक दिन मेरे बड़े भैया ने मुझे बोला तू हिम्मत कर और पता लगा कोई अच्छे डॉक्टर हो तो ।

उस जमाने में सरकारी हॉस्पिटल में ही डॉक्टर बहुत फेमस होते थे, तो हॉस्पिटल में एक नए डॉक्टर आए थे उनका यह पहला ही ऑपरेशन था। उन्होंने बोला मुझे कि केस अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी हो सकता है।

तुम्हारी इच्छा हो तो आ जाओ पहला ऑपरेशन तुम्हारा ही है।

मैंने मेरे मन को कड़ा कर माताजी पिताजी को राजी कर हॉस्पिटल में दाखिल हुआ।

पूरे कान को खोल कर उसका ऑपरेशन किया गया 2 घंटे लगे।

और ऑपरेशन में जैसे ही वह बढ़ी हुई हड्डी की आवाज काटने की आवाज आई,

और कान में तो जोर से शोर मचने लगा।

मैं बेहोशी की हालत में अर्ध बेहोशी में था और बोलने लगा इतना शोर क्यों मचा रखा है।

डॉक्टर बहुत खुश हो गए कि ऑपरेशन तो सफल हो गया है। 

10 दिन में मेरा कान ठीक हो गया शुरुआत में हल्की आवाज भी शोर सुनाई देती थी।

मगर धीरे-धीरे सब एकदम नॉर्मल हो गया ।

यह थी मेरे बहरेपन से जोर से शोर सुनने की कहानी ।

जो मेरी जिंदगी में घटित हुई।


सत्य कहानी


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