भगवान की खोज
भगवान की खोज
कृपा एक गरीब माता पिता का एकलौता सन्तान था I उसके माँ बाप ने कई मन्दिरों में मन्नत मांगने के बाद उनके यहां एक पुत्र ने जन्म लिया जिस कारण अपने पुत्र का नाम कृपा रखा I वे अंतिम समय तक उन देव, देवियों के प्रति अपनी श्रद्धा रख अपने पुत्र को उनके उपर उनकी कृपा का बखान करते हुए कृपा को पूजा पाठ करने की सलाह देते हुए जीवन व्यतीत किया I
अब कृपा की बारी थी अपने माँ बाप के रास्ते पर चलने की, वह भी रोज घर में पूजा करता और समय-समय पर मन्दिरों में जाकर माथा टेकता I पर उसने देव देवी का कभी भी स्पस्ट अनुभव नहीं पाया I उसके मन में सवाल उठता की आखिर उसके पूजा में क्या कमी है कि उसे कोई लाभ नहीं मिल रहा है I जिनके आशिर्वाद से उसका जन्म हुआ उन देवी देवताओं के उपस्थिति को वह क्यों नहीं मान पा रहा है I
इसी उधेड़बुन में कई बार मन्दिरों में अकेला शांत बैठ कर भगवान से प्रार्थना करता की उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करें I
समय बितता गया संयोग से एक बार गाँव में एक साधु अपने शिष्यों के साथ दोपहर में आया वह गांव के बाहर में स्थित मन्दिर में ठहरा उस वक्त कृपा मन्दिर में एकांत बैठकर प्रार्थना कर रहा था I साधुओं को देख कर वह उन्हें प्रणाम कर पास में बैठकर देखता रहा, उनके चेहरे पर एक चमक थी, कुछ देर बाद गुरु विश्राम करने के लिए पास में बने छोटी सी कुटिया जो मन्दिर के उनसे समान्य जानकारी लिया I शिष्यों ने बताया की गुरू बड़े सिद्ध पुरुष हैं वे कई कई दिनों तक योग साधना में लीन रहते हैं I और आज की रात वे इसी मंदिर में रुकेंगे I
कृपा को अपने मन मन में उठ रहे सवालों के जवाब उस साधु से मिलने की उम्मीद जगी I वह उस समय घर वापस लौट गया I
शाम को वह पूजा के समय वह मंदिर में गया साधु महराज पूजा कीर्तन करने के बाद प्रवचन कर उपदेश देते रहे I कृपा सब सुनता रहा जब लोग जो साधु के आने की खबर पाकर पूजा में आये थे वे एक एक कर चले गए तब कृपा साधु से बात करने की इच्छा से वहीं बैठा रहा, उसे देर तक अकेले बैठा देख साधु ने पूछा- "क्यों बेटा तुम्हें घर नहीं जाना है क्या ?"
कृपा साधु के पास आया और साष्टांग प्रणाम कर हाथ जोड़कर कहा -- "बाबा मैं आपसे कुछ पूछने की लालसा लेकर आया हूं ,आप यदि उचित समझें तो मेरे मन की शंका को दूर करने के लिए आप से कुछ पूछूंगा" I
साधु कृपा के विनम्र अनुरोध से प्रसन्न हो बोला-- "पूछो बेटा क्या पूछना है I "
कृपा ने अपने मन के सवाल को बाबा सामने रखते हुए पूछा--- बाबा क्या देवी देवता भगवान होते हैं?
साधु विस्मय से कृपा को उपर से नीचे तक देखा I सच भी था कि एक साधु से जो दर दर भक्ति की उपदेश देते हुए फिर रहा हो उससे ये सवाल कोई करे तो क्या वह देवी देवता नहीं है कहेगा,?कभी नहीं I
फिर धीरे से वे बोले--- भगवान हैं बेटा तुम्हें क्यों लगता है की भगवान नहीं हैं।
कृपा ने कहा--" तो मैं क्यों नहीं देख पाता हूं न ही उनका अनुभव कर पाता हूं "I
साधु ने कहा--- उन्हें देखना इतना आसान नहीं हैं बेटा, पहले अपने आपको इस काबिल बनाओ की तु उन्हें देख सके I
कृपा ने पूछा-- " मुझे क्या करना होगा महराज आप ही बताइए" I
साधु बाबा बोल पड़े-- तुम भगवान को देखना चाहते हो क्या तुमने उनके बनाए चीजों को देखा, उनसे प्रेम किया I इस संसार का हर चीज अलग है अपनी समान देखनेवालों वालों के गुण में भी भिन्नता है I क्या इस दुनिया के दिखने वाले वनस्पति पेड़ पौधों जीव जन्तु को देख कर स्नेह किया I नहीं न,
बेटा फिर वह न दिखने वाले अनादि अनंत भगवान को कैसे देख सकता है फिर न दिखने वाले पर प्रेम का सवाल ही नहीं है I
बेटा हर वस्तु जीव में भगवान का वास है, अतः सब जीवों पर स्नेह कर उनकी सेवा करो, उनमें देवी देवताओं को निहारा करो, उनकी सुन्दरता को देख भगवान की कल्पना करो तुम्हें भगवान जरूर दिखाई देगें।
कृपा निरुत्तर हो सुनता रहा सच ही तो था आज तक वह इस संसार को भी ठीक से जान देख नहीं पाया अपने स्वार्थ के लिए प्रकृत्ति ,जीवों को नष्ट करता रहा, अन्य जीवन को देख कर उनसे स्नेह न किया फिर भगवान की लालसा I
वह साधु के चरणों में गिर पड़ा, रोता रहा ,आंख से आंसू के धार बहनें लगे मानो उन्हें भगवान मिल गए हों।
वह समझ गया कि जो सबमें भगवान देख स्नेह करते हैं उन्हें ही भगवान दिखाई देते हैं।