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Gita Parihar

Classics

3  

Gita Parihar

Classics

भारत विविधातों का देश

भारत विविधातों का देश

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"नानी, आपको तो बहुत कहानियां आती हैं,कहां से सीखी ये सब कहानियां?"अर्णव नानी के गले में झूलते हुए बोला।

"अर्णव, हमारा भारत विविधताओं से भरा देश है।यहां  हर प्रांत ,हर क्षेत्र में अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं।हर पर्व,हर रस्म के पीछे एक कहानी होती है।मुझे यह सब पढ़ना बहुत अच्छा लगता था,बस तबसे पढ़ी हुई कहानियां ही तुम्हें सुनाती हूं।"

"आज की क्या कहानी है, नानिमां ?"अर्णव चहक कर बोला। 

"आज की कहानी एक किंवदंती है।"

"किंवदंती..ये क्या है?"अर्णव ने गर्दन घुमाते हुए पूछा।

"इसका अर्थ है ,एक ने कही दूजे ने सुनी ,उसने आगे तीसरे को सुनाई...जो कहीं लिखी नहीं गई बस ऐसे आगे बढ़ती गई। हां,आज की कहानी है.....

 इलोजी की। यह राजस्थान की बहुत प्रचलित लोककथा है।"नानी ने समझाया।

"अब ये लोककथा क्या होती है, नानी ?"

"अर्णव,लोककथा वह है जो आम लोगों में प्रचलित होती है।अब ध्यान से सुनो ,एक राजा था जिसका नाम था,हिरण्यकश्यप ,उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु और अन्य देवताओं की आराधना पर रोक लगा दी थी।" नानी ने कहा।

"भगवान की तो पूजा करनी चाहिए,फिर उस राजा ने उल्टा काम क्यों किया?"अर्णव ने आंखें फैलाते हुए अचरज से पूछा।

 "हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में ये घोषणा करा दी कि विष्णु की पूजा करने वाले या फिर उनका नाम लेने वाले को कठोर दंड दिया जाएगा, क्योंकि भगवान् विष्णु ने वराह अवतार लेकर 

 हिरण्कयश्यप के बड़े भाई हिरण्याक्ष का वध कर दिया था।"नानी ने जवाब दिया।

"हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, प्रहलाद,वह भगवान् विष्णु का भक्त था। उसने पिता की आज्ञा नहीं मानी।वह विष्णु की भक्ति भाव से पूजा - अर्चना करता रहा।"

अर्णव ने पूछा,"क्या उसके पिता,यानी कि उस राजा ने उसे कोई दंड नहीं दिया,राजा तो बात - बात में दण्ड देने की घोषणा करते हैं?"

" जब हिरण्यकश्यप को इस बारे में पता चला तो उसने प्रहलाद को समझाने की बहुत कोशिश की,जब नहीं माना तो अनेक दंड भी दिए, परन्तु प्रहलाद नहीं माना।"नानी ने कहा।

"राजा ने हार मान ली क्या?"अर्णव की चिंता उसकी आवाज़ से झलक रही थी।"भला राजा और हार मान ले ! प्रह्लाद से परेशान होकर हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका के पास मदद के लिए गया।होलिका अग्नि की भक्त थी और उसे अग्नि देव से वर प्राप्त था की उसे अग्नि से कोई हानि नहीं पहुंचेगी|"

नानी को बीच में रोक कर अर्णव बोला," वर यानी वरदान ?जैसा टी वी पर देखा था,बोल,बच्चा,क्या वरदान चाहता है?"

नानी ने कहा," अब चुपचाप सुनो,तुम बहुत सवाल करते हो।

 हिरण्यकश्यप ने होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर जलती हुई चिता में बैठ जाए,ताकि प्रहलाद अग्नि में जलकर भस्म हो जाए।"

नन्हा अर्णव सिहर उठा।नानी ने जारी रखा,"उस समय होलिका के विवाह की तैयारियां चल रही थीं। पूर्णिमा के दिन 'ईलोजी' से होलिका का विवाह होने वाला होता था। होलिका ने अनुरोध किया कि वह अपने विवाह के बाद प्रह्लाद को लेकर अग्नि स्नान कर लेगी,लेकिनहिरण्यकश्यप

नहीं माना।

होलिका ने हिरण्यकश्यप की ज़िद आगे हार मान ली।"

नानी की कहानी में फिर ब्रेक लगा,"जिद्द करना तो बुरी बात है ,है न,नानी ?"

"हां,बिल्कुल ,और जिद्द का खामियाजा बेचारी होलिका को भुगतना पड़ा।"


उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी।शाम के समय होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि पर बैठ गई। उस समय वरदान स्वरुप मिली ओढ़नी होलिका से हट कर प्रह्लाद पर आ गई और प्रह्लाद पर अग्नि का कोई असर नहीं हुआ। वहीं ओढ़नी के बिना होलिका जल कर राख हो गई।"नानी ने दुख से गहरी निश्वास छोड़ी।

"फिर क्या हुआ,नानी?"अर्णव भी रूआंसा ही चुका था।

"इलोजी इस घटनाक्रम से अनजान घोड़ी पर सवार हो बारात लेकर पहुंचे।जब उन्हें ज्ञात हुआ कि होलिका की मृत्यु हो चुकी है, उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। उन्हें इस बात से सदमा लग गया और उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। वे वहां की गलियों में मस्ताने की भांति यहां- वहां घूमने लगे। इलोजी की इस दशा पर बहुत-से लोग दुखी हुए,कुछ उनका उपहास उड़ाने लगे।कोई इलोजी पर पानी डालने लगे तो कोई रंग, गुलाल। "नानी मानो इलोजी के प्रति लोगों की निष्ठूर्ता से आहत थीं।


"माना जाता है कि फागुन पूर्णिमा के दिन इलोजी की याद में लोग मस्तानों सा व्यवहार और हुड़दंग करते हैं। एक-दूसरे पर पानी और रंग डालते है। होलिका के विवाह के रीति रिवाज दस दिन पूर्व से शुरू हो गए थे इसलिए होली से दस दिन पूर्व तक कोई शुभ काम भी नहीं होता।"नानी ने कहानी को समाप्त करते हुए कहा।

 "मगर कुछ स्थानों पर इलोजी को विवाह के देवता के रूप में भी पूजा जाता है।


 


  



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