भारत माँ
भारत माँ
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परमजीत, सुनहरे लहराते मक्के के खेतों में पंप चला कर बोरिंग के पानी से खेतों को सींच रहा था|गाँव ने भी तरक़्क़ी कर ली है, ’बिजली अब कम जाती है|’खेतों में वह उतनी ही शिद्दत से कार्यकरता था जितनी शिद्दत से देश की सरहद की रक्षा करता था|जब भी छुट्टियों में घर आता सुबह- सुबह उठकर धरती माँ की सेवा करता।
जोत कौर को खेतों में आते देखा तो दौड़ कर परम ने उनके हाथ से डब्बा लेते हुए पूछा आज क्याहै डब्बे में?
जोत कौर ने नक़ली ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा चल मुझसे अब नहीं होता, ”इन बूढ़ी हड्डियों में अबजोर नहीं “इस बार तेरी शादी करके ही भेजूँगी, तेरी भारत माँ के पास...|
परम की अविवाहित रहने की ज़िद थी|जब भी माँ दबाव डालती तो वो कहता “मैंने तो सरहद सेब्याह रचा लिया है|”
बेटा-तुझे तेरे पिता के शहादत की क़सम “तू इस बार घोड़ी चढ़ कर ही जाना सीमा पर “मुझे अपनेपोते को भी फ़ौज की वर्दी में सजते हुए देखना है”|
जोत कौर ने ऐसी क़सम दिला दी, जिसे परमजीत टाल न सका।माँ के जज्बे को देख उसने ‘माँ कोसलामी देते हुए ‘गले से लगा कर हामी भर दी, ’भारत माता की सेवा में, ’अपने लाल का सपना लिए।’