बगावत
बगावत
नन्हीं फुलवा हाथ में पतली बबूल की छड़ी लिए डटकर खड़ी थी कारण उसने गाँव के गणमान्य लोगों को पिटा था। उम्र थी महज़ सात साल। वैसे फुलवा शुरू से ही तेज थी गलत बात सहन करना सीखा ही नहीं था उसने।चार साल से गाँव बाले उसकी हरकतों से परेशान थे, और अब पानी सर से ऊपर हो चला था विधवा माँ का रो- रोकर बुरा हाल था न जाने पंचायत क्या फैसला दे।
लेकिन जिसपर यह अभियोग था वह तो इक्कट-दुक्कट खेल रही थी।पंँच आये गाँव के लोग जमा हुए।पँचों ने फुलवा से पूछा 'तुमने गाँव के इतने बड़े लोगों को क्यों मारा? फुलवा ने तनकर कहा यही लोग बतायें न मैंने क्यों मारा। पँचों ने इस बार डपट कर पूछा तब फुलवा ने कहा -ये दोनों बूढ़े अपनी बहू को दबाये हुए थे एक पैर पर बैठे थे और दूसरे पेट पर,और इनका मरद छाती पर बैठकर गला दबा रहा था और थप्पड़ भी मार रहा था । कहते थे बाँझ हो तो मर जाओ फिर हम लड़के की दूसरी शादी अच्छा दहेज़ लेकर करेंगे। बहू बहुत तड़प रही थी इसलिए मैंने इसी छड़ी से इन्हें मारा ठीक किया।ये जब मुझे मारने दौड़े तब बहू मौका पाकर भाग निकली और वह मरने से बच गई।
पँचायत और गाँव बाले अवाक थे। नन्हीं फुलवा साहस की प्रतिक थी और वो गणमान्य लोग मुँह छुपा रहे थे कलई जो खूल गई थी उनकी।
पँचों ने फैसला दिया ,फुलवा को पँचायत उँच्ची शिक्षा दिलवायेगी और जिन्होंने यह ग़लत हरकत किया है वो हर साल दस मन चावल पँचायत में देंगे।और जिनके घरों में ये ओछी हरकतें होती हैं पकड़े जाने पर उन सब के लिए भी यही दंड है।
और फुलवा पूरे गाँव में किसी के भी घर बिना रोक-टोक के जायेगी।
फुलवा की माँ फिर से रो उठी लेकिन यह खुशी के आँसू थे।फुलवा की बगावत ने एक नेक काम किया था।
और फुलवा मगन थी इक्कट-दुक्कट खेलने में।