बेजुबान मुहब्बत

बेजुबान मुहब्बत

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कहते है इंसान से ज्यादा वफादार कुत्ते होते है। जो अपने मालिक के लिए कुछ भी करते है पर कभी उन्हें धोखा नही देते। सबसे वफादार जानवर कुत्ते को माना जाता है। इंसान की फितरत में धोखा देना होता है पर कुत्ते की फितरत में नही। वह अपने मालिक के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होता है। मनुष्य को जितना अच्छा अपनो के साथ महसूस होता है उससे कही ज्यादा वह एक जानवर के साथ महसूस करता है क्योंकि वह चुपचाप उसकी सारी बाते सुनता है और इंसान अपने दिल की सारी बाते उसे बोल पाता है।


सुरेश एक वर्कशॉप पर काम करता था। उसको सुबह जल्दी उठकर जाना पड़ता था, क्योंकि था तो वो वह का कर्मचारी पर अपने मालिक का सबसे भरोसेमंद व्यक्ति भी था। इसलिए उसी के पास वर्कशॉप की चाबियां होती थी और उसे ही वर्कशॉप खोलनी होती थी। वर्कशॉप का लगभग सभी काम उसे ही सम्भालना होता था। वह सुबह समय पर वर्कशॉप खोलता, पूजा करता और दिन की शुरुआत करता था। उसके बाद ही बाकी सभी कर्मचारी आते थे। वर्कशॉप का मालिक उसपर बहुत विश्वास करता था इसलिए सारी जिम्मेदारी उसे ही सौपी हुई थी। अक्सर मालिक छुट्टी पर होते थे और सुरेश ही सारा काम देखता था,सारा हिसाब किताब भी वही करता था।


सुरेश वैसे तो एक आलसी इंसान था।उसे सुबह देर से उठने की आदत थी। कितना भी कहे कोई पर उस पर किसी बात का कोई असर नही होता था। सभी घरवाले उसकी देरी से उठने की आदत से परेशान थे। आलसी होने के साथ ही वह लापरवाह भी बहुत था। उसकी इन्ही आदतों की वजह से उसने अपनी बहुत सी नौकरियां को गवां दिया था। घरवाले बहुत परेशान था उन्होंने सोचा कुछ तो करना होगा जिससे वह थोड़ा जिम्मेदार बने और अपने काम पर भी ध्यान दे। आखिर में उन्होंने इस समस्या एक ऐसा तोड़ निकाला जो कोई सोच भी नही सकता था।


सुरेश को पालतू जानवर रखने का बहुत शौक था। उसकी हमेशा से इच्छा रही कि उसके पास भी एक कुत्ता हो जिसके साथ वो खेले,मस्ती करे। घरवालो ने उसे एक कुत्ता लेकर दिया और उसकी पूरी जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर डाल दी। कुत्तो का स्वभाव ऐसा होता है कि वो समय के बहुत ही पाबन्द होते है। वो अपना हर काम समय पर कराना पसन्द करते है। कुत्तो की आदत होती है सुबह जल्दी उठना,घूमने जाना। अब यही सब काम सुरेश को करने पड़ते थे। सुरेश ने उसका नाम रॉकी रखा। शुरुआत में सुरेश को नया नया शौक था कि वह रॉकी का सारा काम खुद करे। वह अधिक से अधिक समय रॉकी के साथ बिताना चाहता था। वह सुबह जल्दी उठता और रॉकी को सुबह घुमाने ले जाता था। घूमकर आते ही वह उसके लिए खाना बनाता। उसे भी खाना खिलाता और खुद भी खाना खाता था। रॉकी के साथ साथ उसे भी अब जल्दी उठने की आदत हो गयी थी। अब सुरेश की आदतों में धीरे धीरे सुधार आने लगा था। रॉकी को वह अपने बच्चे की तरह पालता था। उसे खुद अपने हाथों से रोजाना खाना खिलाता, नहलाता, घुमाने ले जाता आदि। सुरेश और रॉकी के बीच इतना गहरा रिश्ता बन चुका था कि रॉकी सुरेश की आहट भी पहचानने लगा था। यदि सुरेश को किसी काम से बाहर जाना होता था तो रॉकी उसका इंतजार करता पर खाना नही खाता था। वह सुरेश के अलावा किसी और के हाथों से खाना तक नही खाता था।


सुरेश ने अब एक वर्कशॉप में नौकरी के लिए अप्लाई किया। उसे उम्मीद थी कि वहाँ उसे नौकरी मिल ही जाएगी। सुरेश की बुरी आदतों की वजह से कोई भी उसे काम देने को तैयार नही होता था। परंतु अब सुरेश बदल चुका था। उसने अपने आप को बहुत ही सुलझा हुआ इंसान बना लिया था जो समय की कद्र करता था और अपनी जिम्मेदारियां समझता था।


एक दिन सुरेश घर पर रॉकी के साथ खेल रहा था। तभी अचानक उसके फ़ोन की घण्टी बजी। सुरेश ने देखा किसी अनजान नम्बर से फ़ोन है।उसने फ़ोन उठाया - "हेलो ! कौन..?"

"जी मैं अशोक..आपने नोकरी के लिए अप्लाई किया था" सामने से जवाब आया।

सुरेश - "हाँ सर मैं सुरेश मैने आपके यहाँ नोकरी के लिए अप्लाई किया था।"

अशोक - "सर हमने आपको यह बताने के लिए कॉल किया है कि आपको यह नौकरी दी जाती है तो आप कल से काम पर आ सकते है"


सुरेश बहुत खुश हुआ क्योकि बहुत जगह अप्लाई करने के बाद उसे कही जाकर एक ये नौकरी मिली थी। सुरेश अगली सुबह एक नई मुस्कान के साथ उठा और रॉकी के साथ घूमने निकल पड़ा। घर वापस आकर उसने नहा धोकर नास्ता किआ और वर्कशॉप जाने के लिए तैयार हो गया। जैसे ही वह जाने लगा रॉकी ने उसका बैग अपने मुह में ले लिया मानो वह उसे रोकने का प्रयास कर रहा हो। सुरेश के समझाने पर उसने बैग छोड़ दिया और वह काम पर चला गया। सुरेश का यह पहला दिन था तो वह बहुत उत्साहित भी था। जब वह ऑफिस पहुचा तो उसने देखा केबिन में उसके बॉस बैठे हुए थे। सुरेश उनके पास गया और गुडमार्निंग सर् बोला। सुरेश के बॉस बहुत नेक इंसान थे और अपने कर्मचारियों को अपने परिवार की तरह रखते थे। सुरेश पहले उनसे थोड़ा झिझकता था पर अब उनके साथ उसका कोई संकोच नही रह गया था।


धीरे धीरे उसने अपने काम से अपने बॉस का दिल जीत लिया था और वह उनका भरोसे का पात्र बन चुका था। अब तो जैसे वर्कशॉप का मालिक ही सुरेश था। सुरेश ही सारा काम सम्भलता था। उसके बॉस कभी आते तो कभी नही आते थे। सुरेश ही बाकी कर्मचारियों को आदेश देने लगा था। सभी कर्मचारी भी उसकी बहुत इज्जत करते थे और उसकी सभी बाते भी मानते थे। सुरेश वर्कशॉप से वापस आकर रॉकी को खाना खिलाता और उसके साथ बहुत सारी मस्ती करता था। अब सुरेश की यही दिनचर्या बन चुकी थी।


एक दिन वर्कशॉप पर कुछ जरूरी काम था इसलिए सुरेश घर से बहुत ही हड़बड़ी में निकला। उस दिन वह बहुत जल्दी में था इसलिए उसने नास्ता भी नही किया और बस वर्कशॉप की चाबियां ली और घर से निकल पड़ा। सुरेश को वर्कशॉप पहुँचने की बहुत जल्दी थी इसलिए वो बहुत तेजी से गाड़ी चला रहा था। जैसे ही वो हाई वे पर पहुचा उसने गाड़ी की गति को और भी बढ़ा दिया था। अचानक से उसके सामने एक ट्रक आता दिखाई दिया। उसने गाड़ी की स्पीड कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की पर स्पीड इतनी तेज थी कि वह ब्रेक नही लगा पाया और सामने आ रहे ट्रक से उसकी गाड़ी टकरा गई। दोनो गाड़िया आपस मे इतनी तेजी से टकराई की गाड़ी में बैठा सुरेश बहुत बुरी तरह से जख्मी हुआ और उसकी दुर्घटना स्थल पर ही मौत हो गयी। ट्रक चालक ट्रक से निकल कर भाग चुका था।


देखते ही देखते वहां लोगो की भीड़ इकठ्टा हो गयी। वहां खड़े लोगो मे से किसी ने पुलिस के पास फ़ोन करके उन्हें दुर्घटना के विषय मे बताया। पुलिस वहां पहुची और उन्होंने सुरेश की लाश को हॉस्पिटल पहुँचाया। पुलिस ने सुरेश के घर पर फ़ोन करके उन्हें सुरेश की मौत के बारे में बताया। सभी घर वाले हॉस्पिटल में पहुचे और सुरेश की लाश को हॉस्पिटल से घर ले आये। जैसे ही रॉकी ने सुरेश को देखा वह उसके पास बैठकर रोने लगा। जब सुरेश की लाश को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने लगे रॉकी ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की। वह सुरेश की लाश को लेकर नही जाने दे रहा था। सभी घर वाले सुरेश की मौत से सदमे में थे। उन्हें कुछ समझ नही आता क्या करे क्या नही।


रॉकी जो हमेशा सुरेश के साथ रहता था, उसी के हाथों से खाना खाता, उसके पास सोता था अब वह किसी के हाथ से खाना नही खाता था। सभी उसे अलग अलग तरह से खाना खिलाने के प्रयास करते थे पर वो खाना नही खाता था। खाना न खाने की वजह से उसकी तबीयत खराब हो गयी। उसके इलाज के लिए डॉक्टर को भी बुलाया । डॉक्टर ने उसे दवाई दी इंजेक्शन लगाए और उसे ठीक करने का हर सम्भव प्रयास किया। पर किसी भी दवाई का उस पर कोई असर नहीं होता था। उसकी तबीयत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। वह बस सुरेश को याद करके रोता रहता था। बोलना नही जानता था पर उसकी मन की बातें साफ समझ आती थी कि वह सुरेश को कितना याद करता है। सुरेश के जाने के बाद उसने खाना पीना सोना सब छोड़ दिया। यही कारण था कि वह बहुत बीमार हो गया। पांच से छः दिनों के भीतर ही रॉकी का भी निधन हो गया। सुरेश के साथ साथ रॉकी ने भी अपनी जान दे दी।


कहते है न कि प्यार की कोई भाषा नही होती। प्यार के लिए शब्दो की नही भावनाओ की अहमियत होती है। सुरेश और रॉकी का प्यार भी कुछ ऐसा ही था जहाँ प्यार की कोई जुबान नही पर बस सच्चा प्यार था।


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