Moumita Bagchi

Tragedy

1.0  

Moumita Bagchi

Tragedy

बेईमान इश्क

बेईमान इश्क

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मुंबई की कई तंग सड़कों के बीच से गुज़रने के बाद एक पुराने तिमंजिला मकान के सामने आकर आकाश ने टैक्सी रुकवाई। शायना से बोला,

"मेरा वह दोस्त यहीं रहता है। हम कुछ दिन यहीं पर रुकेंगे। तुम थोड़ी देर टैक्सी में आराम से बैठो। मैं उससे बात करके सारा बंदोबस्त करके आता हूँ।"

आँखों में आगामी दिनों के रंगीन सपने सजाए शायना अपनी सुंदर कजरारे नयनों को ऊपर उठाकर उस मकान को निहारने लगी।


ऊपरी मंज़िल में, सड़क की दिशा में, कई सारे बरामदे थे, जिनमें कुछ औरतें कपड़े सूखा रही थी। दूसरी मंज़िल पर खड़ी दो औरतें, आपस में ठिठोली करतीं और जोर-जोर से हँसती हुई भी उसे दिखाई दी।

आकाश के ओझल होते ही पीली टैक्सी का सरदार ड्राइवर शायना के कानों के पास मुँह लाकर फुसफुसाकर बोला,

"भैनजी, आप इस शहर में नई आई लगती हो। आपके साथ यह भाई साहब कौन हैं?"

सरदार जी की इस हरकत पर शायना एकदम से डर गई। उसके गलत इरादों को भांपकर वह थोड़ी दूर जा बैठी।


सरदार जी ने तब हाथ जोड़कर बोला, "भैनजी, मैं कोई बुरा आदमी नहीं हूँ। आपके साथ आया हुआ यह आदमी मुझे कुछ सही नहीं जँचता। इसलिए मैनू सोचा कि आपको बता दूँ । यह इलाका बहुत बदनाम है। इसका नाम कमाथीपूरा हैं। कहीं यह भाईसाहब आपको भी बेचने के इरादे से तो यहाँ नहीं ले आए?"

"भैनजी, डरो मत। अभी भी वक्त है, यदि चाहो तो मैं आपको सुरक्षित स्थान पर ले जा सकता हूँ।"

सरदार की बात सुनकर शायना सिर से पैर तक काँप गई,

"कहता क्या है यह आदमी? इतनी हिम्मत!!

आकाश!! मेरे साथ ऐसा करेगा? असंभव!! आखिर प्यार करता है वह मुझसे। जब घर से भागकर आई थी तो पूरे रास्ते में उसने कितना ख्याल रखा था।"

दोनों शादी करेंगे और अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे। इन्हीं सपनों को दिल में संजोकर तो वह आकाश संग दिल्ली से भागकर यहाँ आई है।

"जरूर, इस सरदारजी के नियत में कोई खोट है। मुझे अकेली देखकर बहला फुसलाकर कहीं और ले जाना चाहता हैं।" शायना ने सोचा।

घबराकर शायना टैक्सी से उतरी और आकाश के जानेवाली दिशा में पाँव पाँव चल पड़ी। तभी पास ही कहीं से आती आकाश की आवाज़ उसके कानों में पड़ी,

"नहीं नहीं, माऊसी, अब आप ऐसा नहीं कह सकती!"

उसी घर के सामने एक पुराना पीपल का पेड़ था।

कौतूहलवश उसके ओट में छुपकर शायना आकाश और माऊसी का कथोपकथन सुनने लगी।

आकाश के हाथों में नोटों का दो बंडल था। वह जोर-जोर से चिल्लाकर कह रहा था,

"आपसे दो लाख की बात हुई थी, माऊसी। एक लाख साठ हजार में क्या होगा? आपको क्या पता कि कितने पापड़ बेलने पड़े थे मुझे!! तब जाकर कुड़ी मुश्किल से शादी के लालच पर यहाँ तक आने को राजी हुई है।"

"रास्ते में दो -दो बार पुलिस से भी पंगा पड़ा है।

और अभी आप पैसे भी पूरे नहीं दे रही हो ! यह तो बेईमानी है।"

"माल ऐसी है कि कहीं और ले जाऊं तो पूरे तीन लाख बैठे- बिठाए मिल जाएंगे। वह तो आप पुरानी ग्राहक हो इसलिए आपके पास आया था---"

शायना इसके आगे और कुछ न सुन पाई। आँखों में उमड़ते हुए तूफान को किसी तरह रोक कर वह सर पर पाँव रखकर वहाँ से भागी।


उसे, इस समय अपनी बेवकूफी पर ज्यादा गुस्सा आ रहा था, अथवा अपनी खैरियत को लेकर वह ज्यादा चिंतित थी, कुछ कहा नहीं जा सकता!

टैक्सी का दरवाज़ा तेजी से खोलते हुए वह ड्राइवर से बोली,

"भैया, मुझे जल्दी यहाँ से ले चलो।"

वहाँ से निकल कर वह थाने जाकर ही रुकी।

कुछ दिन उसी सरदारजी के घर पर रुककर अपने घर पर फोन किया।

खबर पाकर जल्द ही उसके माता-पिता उसे घर लिवाने के लिए आ गए।


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