बेहिस
बेहिस
तरन्नुम को बहुत बैचेनी हो रही थी।घर के कामकाज से फ़ारिग़ हो कर दिन में थोड़ी देर टी ۔वी۔ लगाया मगर उसमें भी दिल नहीं लगा।वह बहुत अकेलापन महसूस करतीं हैं।आज संडे है, पर घर में इतनी ख़ामोशी काटने को दौड़ रही है।
बच्चे अपने- अपने कमरों में घुसे पड़े हैं ये मोबाइल क्या आया ? आपस की बातचीत ही ख़त्म हो गई है।सुबह की चाय-नाश्ते पर सब की निगाहें मोबाइल में घुसी और खाना या नाश्ता में ज़ायक़ा है कि नहीं कुछ ख़बर नहीं।
तरन्नुम ने बेटे रईस से कहा , "मुझे "खाला जान"के घर छोड़ देना कई दिन हो गए हैं।उनका ऑपरेशन हुआ था।मै घर की मसरुफ़ियत की वजह से मैं जा ही नहीं पाई।" रईस का जवाब था "अरे अम्मी मेरा दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाने का प्लान है।आप ऐसा करिए ना "सुरैया आपी"के साथ चली जाएं।" तरन्नुम ने...!
" सुरैया" की और उम्मीद की नज़र से देखा तो वो तो पहले "जीन्स और टॉप में स्कूटी की चाबी घूमती हुई सीढ़ी पर से उतर रही थी अम्मी अल्लाह हाफ़िज़ बोल ये जा वो जा ....!
अब बचे "डॉक्टर फैज़ान" तरन्नुम ने उनकी ओर देखा तो वो कुछ बोलते उसके पहले ही तरन्नुम तंज कसती हुई बोली "रहने दे, आप कोई बहाना ढ़ूढ़ने की ज़हमत ना करें।मै आपकी वाइफ हूँ और आपको 30 सालों से जानती हूँ।आपको मेरे ख़ानदान वालों से एलर्जी है...! डॉक्टर फैज़ान...मै तो इन "बेहिस " बच्चों से बाज़ आई।ये छोटे थे तो आपके हास्पिटल में बिज़ी होने पर ये माँ ही गार्डन में घूमाने ले जाना, बच्चों को मूवी दिखाने ले जाना, दोस्तों के बर्थडे है तो छोडने लेने जाना, कोई सब्जेक्ट का होमवर्क नहीं कम्पलिट है तो बैठ कर पूरा करना... और ना जाने क्या- क्या लिस्ट बहुत लम्बी है।
तरन्नुम बहुत गुस्सा हो रही थी "देखिए ना आज मुझे बच्चों के साथ की ज़रूरत है तो किसी के पास टाइम ही नहीं है।"
डॉक्टर फैज़ान थोड़े से मुस्कुराए और कहा "चलिए आज हम अपनी "बेगम साहिबा" को उनकी "ख़ाला जान" से मिलवा लाते हैं।"
तरन्नुम कहती है "चलिए छोड़िये आपको हास्पिटल का ज़रुरी काम था ....... ! "