बेघर
बेघर
"कुछ खाने को है तो दे दो, माई 2 दिन से भूखा हूं।
सुनकर रूबी अपने हाथ रसोई से साफ करते हुए निकली और दरवाजे पर जाकर देखा एक व्यक्ति बड़े दयनीय स्थिति में खड़ा था भूखा प्यासा।
रूबी का मन व्याकुल हो उठा उसने उसे भरपेट भोजन दिया कुछ पैसे दिए कुछ कपड़े जी और उससे उसकी दयनीय स्थिति के बारे में पूछने लगी।
उस व्यक्ति ने अपना नाम विनोद बताया उसने बोला मैं और मेरी पत्नी नि संतान थे। " जीवन के सुने पन को भरने के लिए ,, हम लोगों ने एक लड़की गोद ले लिया बड़े प्रेम से उसे पाल पोस कर बड़ा किया उसका ब्याह किया अपनी सारी जिम्मेदारी उसके प्रति पूरी की।
एक समय आया जब हमारी संतान मैं पाली हुई संतान नहीं माना बल्कि क्योंकि उसे मैंने अपना सगा माना था अपने पत्नी के साथ मिलकर पूरे कारोबार जमीन सब उस के नाम कर लिया और उस लड़की ने हमे बेघर कर दिया इसी सदमे में मेरी प्राण प्रिय पत्नी चल बसी और मैं अब बेघर हो गया
रूबी एक लंबी गहरी सांस लेकर सोचने लगी की किस प्रकार लोगों में स्वार्थ, अभिमान, धोखा होता है। रूबी जो कि एक सामाजिक कार्यकर्ता है और कोमल दिल की इंसान है ,उसने उस व्यक्ति की बात सुनकर यही सोचा कि कितने बदनसीब हैं वह लोग जो प्रेम के बदले द्वेष देते है और विश्वास के बदले धोखा देते हैं।
रूबी के दिल में उसके घर व्यक्ति के प्रति संवेदना से और उसकी पाली हुई संतान के प्रति एक घृणा का भाव था। थोड़ी देर बाद वह घर इंसान उसके आंखों से ओझल हो गया।