बेचैन दिल को कैसे मैं आराम दूँ
बेचैन दिल को कैसे मैं आराम दूँ
मेरी दोस्त नैना कुछ अलग ही थी, उसकी आँखें कुछ कहती, होंठ कुछ और। जैसे हर वक़्त हड़बड़ी में हो। कभी-कभी ऐसा लगता, मानो कुछ बताना चाहती हो। "आराम से नैना इतनी जल्दी में क्या है?" "है ना! पता नहीं फिर मिलें ना मिलें!" कुछ तो नायाब खोया था उसने जिसका दर्द लबों पर आ गया था। ये समझते देर ना लगी, तब हमने मिलकर इत्मीनान से गप्पें मारने का फैसला लिया।
"कभी-कभी कुछ रिश्ते सवाल क्यों छोड़ जाते हैं?"
"सवाल पर होने वाले बवाल के डर से।"
"क्या बाहर का बवाल ही सबकुछ है? अंदर की हलचल कुछ भी नहीं?" उसकी बातों में काफ़ी वज़न था। मैं भी सोचने लगी कि अगर सबकुछ ऊपर से शान्त है तो इसका मतलब ये तो नहीं कि मन बेचैन ना हो। मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और वह खुलती गई। "प्यार पर बहुत लिखती हो ना?बताओ ना कि हर प्यार मंज़िल क्यों नहीं पाता? कुछ कहानियाँ अधूरी क्यों रह जाती हैं? क्या दिल के रिश्तों में भी अहम आता है?"
"आ सकता है, अगर आपस में कम्युनिकेशन गैप हो। आखिर प्रेमी भी इंसान ही तो होते हैं, देवता नहीं! देखो ना! जो पति-पत्नी प्रेम में हैं, एक दूसरे के पूरक हैं, फिर भी दोनों या किसी एक के परिवार वाले जब आते हैं तो कुछ गलतफहमियां हो जाती हैं। तुम अपना मसला ठीक से बताओ, तो मैं समझ पाऊँ
बचपन से शुरू किया उसने जबसे उसे याद था। पापा का प्यार दीदी पर ज्यादा था और मम्मी का दुलार भाई पर। वह भी छोटी होने के कारण दीदी व भैया को ही महत्व देती। खुद की ख़ुशियों पर कभी गौर नहीं किया, अपने ही घर में तन्हा थी। जब थोड़ी बड़ी हुई, तब लोगों की उसके प्रति चाहतें भी बढ़ती गयीं। पर उस बेचारी को घर के बाहर झांकने तक का अवकाश ना था। घर के अधिकांश काम वही किया करती। कॉलेज आते-जाते जाने कैसे, उसका पीछा करती हुई एक नज़र आख़िर टकरा ही गयी थी। ये नज़रें थी निशांत की, जो दूर से ही उसके मन को छू गयी थीं। निशांत गहरी काली आँखों वाला हैंडसम लड़का और नैना प्यारी सी नेक्स्ट टू डोर लड़की बिल्कुल वैसी ही, जैसी 'मैंने प्यार किया' वाली जोड़ी थी। आगे की कहानी नैना ने कुछ यूं कही:-
"हम दोनों मूक प्रेम में बँधे थे और वो भी पूरी तरह निःस्वार्थ प्रेम। जो अक्सर टीनेज में होता है और पहले प्यार के नाम से जाना जाता है। मैं उन आँखों मे अपनी झलक देख अक्सर होश गवां बैठती, तभी तो नज़रें मिलाने से डरती थी। बड़ी-बड़ी गहरी आँखें और उसके मुस्कुराते होठों से जैसे जन्मों का नाता था। इस तरह दो वर्ष यूँ ही निकल गये, पर संवाद का नामोनिशान तक ना था। कॉलोनी में एक से एक खूबसूरत चेहरे थे, पर जाने क्यों वह मुझ पर ही फिदा था। अब तो सभी इस बात को नोटिस करने लगे थे। कोई भी शादी हो या फ़ंक्शन या फिर कॉलोनी का कोई भी गेट-टूगेदर। निशांत की निगाहें मुझे ढूँढती रहती। बल्कि अब मुझे भी इंतज़ार रहने लगा था कि कब वो मेरे दिल पर अपना इख़्तियार करेगा। उसने तो जैसे खुद को मेरा संरक्षक नियुक्त कर रखा था। बस दूर से चौकसी करता हुआ ही खुश हो जाता। मुझे अपनेआप में खोई देखकर तसल्ली पाता कि मेरे जीवन में और कोई नहीं बल्कि सिर्फ वही है!"
"लवली नैना! फिर क्या हुआ?"
"उसके नैनों के भीगे कोरों को देख द्रवित हो उठी थी। अभी तक गर्ल्स कॉलेज में थी और ऊपर से थोड़ी घरेलू टाइप लड़की, तो कोई ख़ास लड़का इर्द -गिर्द ना भटका था। पर जब हायर स्टडीज़ के लिए गयी, तो कोई ना कोई अक्सर घर तक साथ आ जाता। फ़ील्डवर्क था जिसमें प्रोजेक्ट्स ग्रुप्स में ही करना था, इसलिए मैंने भी उन्हें साथ आने से नहीं रोका। फिर निशांत ने तो कभी बढ़कर अधिकार ना जताया था, तो भला क्यों सबसे दरकिनार करती। शायद उसे भी अपने प्रतिष्ठा की उतनी ही चिंता थी जितनी मुझे थी, लेकिन मेरे बैचमेट्स को देख उसके चेहरे में आने वाले परिवर्तनों से मुझे आत्मिक सन्तुष्टि मिलने लगी थी। जो अब तक ना कहा, शायद अब कह दे। जलन में आकर, गुस्सा ही सही पर कुछ तो करे।"
"फिर क्या हुआ?" मेरी उत्सुकता पराकाष्ठा पर थी।
"लिफ्ट में मिला, आँखें लाल थीं, किसके साथ घूम रही थी?" उसने पूछा
"अनाथाश्रम गयी थी।"
"किस लिए?"
"एक रिसर्च पेपर पर काम चल रहा।"
"रेस्टोरेंट में?"
"चाय पीने लगी थी तो ज़नाब पीछा करते थे। ये सोच कर हँसी आ गयी थी।"
"साथ में कौन था?"
"वही! जिसे साथ होना चाहिए!" उसके सवालों से जलन की बू आ रही थी। मैंने भी मौके पर चौका लगा दिया। अपने सेंस ऑफ ह्यूमर के लिए प्रसिद्ध मैं ये भूल ही गयी कि मेरी इस प्रतिभा से अनजान था वो। उसने मेरे साथ बैठे लड़के को मेरा नज़दीकी समझ खुद को मुझसे दूर कर लिया। इधर मैं बुद्धु खुश थी कि आखिर मेरा फार्मूला काम कर गया था। कम से कम महाशय ने मुँह खोला था।"
इन बातों के एक सप्ताह के अंदर ही उसकी नौकरी लग गई, ऐसा उसकी लैंडलॉर्ड आंटी ने बताया। देखते ही देखते वह मेरी आँखों से और जिंदगी से हमेशा के लिए ओझल हो गया। मेरा मज़ाक मुझपर ही भारी पड़ा था। वह इस ग़लतफहमी का शिकार हो चुका था कि मुझे उसकी कद्र नहीं या फ़िर मज़ाक में कही बात को दिल से लगा बैठा था। ये आजतक मेरे लिए सवाल ही है जिनका मेरे पास कोई जवाब नहीं। मैं अपने ख़ाली-ख़ाली से दिन और उदास आँखों के साथ सदा के लिए अधूरे प्रेम की कसक लिए फिरती रही। पढ़ाई पूरी होते ही जब मेरे एक स्कूल फ्रेंड 'मयंक' का मेरे लिए विवाह प्रस्ताव आया, तो मैंने खुशी से स्वीकार कर लिया, क्योंकि मुझे पता था कि इससे बेहतर रिश्ता मेरे लिए नहीं आने वाला था।"
ये कहती हुई वो हँसी। बच्चों सी निश्छल हँसी थी उसकी, पर आँखें उसका दर्द बयां करती थीं। काश कि निशांत कुछ अपनी कहता, कुछ उसकी सुनता तो शायद आज वह आज खुश होकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ती। यूँ रह-रह कर अपने किये का अफसोस तो ना करती। ये सही है कि जो होना होता है वही होता है। वह रिश्ता उतने ही दिनों का था, पर मलाल इसी बात का रह गया कि पहला प्यार तो एक खूबसूरत अहसास होता है, फिर उसके हिस्से में दर्द क्यों आया?
नैना जब भी अतीत में गुम होती, उसके चेहरे पर वही दर्द दिखता। आज मुझे नैना के बेचैनी की वजह पता लग गयी थी। क्यों उसके होठों व आँखों मे तारतम्य ना था। उसके दिल की बातें उसकी आँखे कहतीं, पर उसने अपने होंठों को हँस कर दर्द भुलाने की ट्रेनिंग दे रखी थी। ये सब देखकर दिल भर आया और उस अधूरे प्यार के लिए मन प्रार्थनाएँ करने लगा।
घड़ी देखा तो शाम के सात बज गए थे। उसे साथ ले जाने के लिए मयंक घर आये और उदास देखकर चिढ़ाते हुए बोले "क्यों जानेमन, फिर से छेड़ दिया ख़ामोश अफ़साना दिल का! माय गॉड! ऐसा वाला प्यार तो कॉलेज के ज़माने में दो-चार दिन में एक बार हो ही जाता था। कहो तो कोई राग हम भी छेड़ें!"
"पिटोगे तुम मयंक" बोल कर नैना हँसने लगी। बिना कहे ही दिल को पढ़ लेने वाली उनकी आपसी समझ देखकर मैं आश्वस्त हो गयी थी। प्यार तो सभी करते हैं। कुछ की गाड़ी चार आने से शुरू होकर आठ आने तक पहुंचती है, तो कुछ बारह आने तक, पर इन दोनों का प्यार सोलह आने यानी 100% शुद्ध प्यार था। मंत्रमुग्ध सी उन्हें देखती हुई सोचने लगी कि दोनों एक दूजे के लिए ही बने हैं।
उसके जाने के बाद, मैंने बहुत सोचा और इस नतीज़े पर पहुंची कि संवादहीन प्रेम अक्सर गलतफमियों का शिकार हो जाता है। काश! उनके बीच ईगो के बजाय बातें होतीं, तो कम से कम आज सैकड़ों सवाल ना होते, उदासियाँ ना होती। प्यार के ज़िक्र पर फुलझड़ियों सी मुस्कान फूटती, दर्द नहीं उभरता!!

