Padma Agrawal

Tragedy Inspirational

5.0  

Padma Agrawal

Tragedy Inspirational

बदनाम गली का घर

बदनाम गली का घर

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"हेलो मिहिर, मैं आपसे नाराज़ हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि आपका किसी दूसरे के साथ चक्कर चल रहा है। जब आपको मुझे अकेले ही छोड़ना था तो शादी ही किस लिए की थी। "वह जोर जोर से सुबकने लगी थी।

"मानी डियर, तुम मेरी मजबूरी क्यों नहीं समझ रही हो। मैं मकान ढूंढ रहा हूँ। मुंबई जैसे शहर में घर लेना बहुत मंहगा है।"

"फिर आप ही गाँव लौट कर आ जाइये। मैं अब अकेले नहीं रह सकती। यदि ऐसे ही रहना है तो मैं हमेशा के लिए अपने मायके चली जाऊंगी।"

मिहिर पत्नी की सिसकियों और मायके जाने की धमकी से परेशान हो उठा।

उसकी आँखों के सामने अपनी प्यारी सी पत्नी मानी का चेहरा घूम रहा था।

उसने तुरंत एजेंट से एक मकान दिलाने के लिए कहा। चूंकि शनिवार का दिन था इसलिए उसने उसी दिन 5-6 मकान देख डाले थे और फिर परेशान होकर एजेंट की बातों पर विश्वास करके एक गली के मकान का साल भर का एडवांस किसी तरह जुगाड़ करके दे दिया था।

वह खुश खुश अगली सुबह मानी को लिवाने गाँव पहुंच गया।

मानी का रंग दूध सा गोरा था, तीखे नैन नक्श, गदबदाया भरा बदन के साथ साथ गाँव की अल्हड़ खिलखिलाहट से भरपूर थी।

उसकी माँ ने उसे समझाते हुए कहा था कि,"मेरी बहू बहुत भोली है, शहर में इसका ख्याल रखना।"

रास्ते में उसकी बस खराब हो गई थी, इसलिए उसे घर तक पहुंचते पहुंचते रात के 10 बज गए थे।

जब वह सामान के साथ लदा फंदा गली में पहुंचा तो वहां का दृश्य देखकर उसके होश उड़ गए।

वह पूरी तरह से एजेंट के बुने जाल में फँस चुका था।

पूरी गली मेंं सस्ते क्रीम पाउडर और होठों पर गहरी लाल लिपस्टिक से सजी धजी लड़कियाँ खड़ी होकर हर आने जाने वाले लोगों को देखकर भद्दे भद्दे इशारे कर रहींं थीं।

चारों ओर से हारमोनियम और तबले की आवाज़ के साथ बेसुरा संगीत सुनाई पड़ रहा था।

मिहिर को देखते ही एक लड़की उसकी तरफ भाग कर आई और उसके गालों को नोच लिया था। वह तेजी से पीछे की ओर हटा था और गिरते से बचा था।

मानी को भी सब कुछ अटपटा सा लग रहा था लेकिन इसके बावजूद अपने प्रियतम का साथ और मुंबई जैसे

बड़े शहर में आकर खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी।

तभी नशे में झूमता हुआ एक शख्स मानी की तरफ बढ़ा तो उसने तेजी से मानी को घर के अंदर धकेल दिया था और उस आदमी को घुड़कते हुए दूर हटा दिया।

तभी उसके कानों में उसका कमेंट सुनाई पड़ा था।

भद्दी सी गाली देकर बोला था, माल जोरदार लाया है साला.....

सुबह तो उसे ड्यूटी पर जाना ही था। मानी को खूब सारी हिदायतें देने के बाद वह अपने काम पर गया था।

समय बेसमय शराबी उसके घर की घंटी बजा देते लेकिन डरी सहमी मानी की होल से झांक कर देख लेती। लोग उल्टे सीधे कमेंट करते, गंदी गंदी गालियां बकते और फिर चले जाते।

मानी अपने ही घर मेंं डरी डरी कैदी की तरह बंद होकर रहा करती थी। लेकिन इसके बावजूद वह अपने प्रियतम को छोड़कर गाँव जाने को तैयार नहीं थी।

अब वह यहां के हालात की आदी हो गई थी। उसको यहाँ पर रहते रहते छः महीने हो रहे थे।

वह अपनी खिड़की से छिप छिप कर वहां पर सब तरह के लोगों को आते जाते देखा करती थी।

रात के अंधेरे में नेता, अफसर, पैसे वाले और गरीब सभी अपने तन की भूख मिटाने के लिए आया करते थे। अब तक वह वहां लोगों की गाली गलौज, पुलिस की आवाजाही का शोर शराबा और उनको वसूली करते भी देखा करती। दलालों की भागदौड़ और ग्राहकों के लिए आपस में मारपीट करते हुए भी देखती।

कभी उसका मन घृणा से भर उठता तो कभी उनकी बेचारगी सोच कर दया से द्रवित हो उठती थी।

सर्दी के दिन थे, कुहासे भरी शाम के झुटपुटे में एक लगभग 10-11 साल की डरी सहमी लड़की ने धीरे धीरे उसके दरवाज़े को खटखटाया था।

मिहिर के आने का समय था इसलिए उसने बेखटके दरवाजे को खोल दिया लेकिन मासूम लड़की को देखते ही उसने हिम्मत करके उसे अंदर कर लिया था।

परंतु उसका अंतर्मन और शरीर थरथर कांप रहा था।

वह प्यारी सी बच्ची डर कर उससे चिपक गई थी, मानो कोई नन्हा सा हिरण शावक शिकारी के जाल से निकल भागा हो।

दलाल शक के कारण उनके घर की निगरानी कई दिनों तक करते रहे थे। प्यारी सी निशि को वह अपने घर में छिपाकर रखी रही थी।

मिहिर उस नाजुक लड़की को पुलिस के लफड़े से बचा कर रखना चाहते थे और निशि को सुरक्षित उसके पैरेंट्स के पास पहुंचाना चाहते थे।

वह बच्ची जब अपने स्कूल से लौट रही थी तो गाँव के कुछ दबंग गुण्डों ने उसके मुंह पर रुमाल सुंघा कर उसको उठा लिया था। पहले उसे दलालों के हाथ बेचा फिर उन्होंने उसे इस अड्डे पर पहुंचा दिया था।

वह गाँव के उन गुण्डों को अच्छी तरह पहचानती थी।

छिपते छिपाते किसी तरह उस प्यारी बच्ची को उसके पैरेंट्स को सौंप कर उन्हें आत्मिक खुशी और संतुष्टि मिली थी।

उसकी निशान देही और उसके पापा की हिम्मत के कारण लड़कियों को चुरा कर बेचने वाला कुख्यात गैंग पकड़ा गया था। वह समाज के संपन्न सफेदपोश थे जो शिक्षा और धर्म की आड़ में अबोध लड़कियों का सौदा किया करते थे।

निशि आज एक पुलिस आफिसर बन कर ऐसे अपराधियों को उनकी जगह जेल में पहुंचाने का काम करती है।

आज भी वह मिहिर को अपना भाई मान कर हर रक्षाबंधन पर राखी बांधने जरूर आया करती है।

वह मिहिर और मानी को अपना जीवनदाता और भगवान मानती है।



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