anil garg

Thriller

4.5  

anil garg

Thriller

बदमाश कंपनी-1

बदमाश कंपनी-1

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मोहल्ले का ये चौराहा ही हमारी बदमाश कंपनी का हैड क्वार्टर था। इस चौराहे के मुहाने पर बना मकान पर हमारी चांडाल चौकड़ी का ही कब्जा था। इस मकान का मालिक गजोधर पांडेय का कोई दस साल पहले इसी मकान में किसी ने मर्डर कर दिया था। अब गजोधर था रंडवा भंडवा आदमी..साले के न कोई आगे था न कोई पीछे...जब मरा था तो पुलिस को ही लावारिश लाश की तरह से उसका अंतिम संस्कार करना पड़ा था। उसके मरने के कोई छह महीने बाद ही इलाके के दो प्रॉपर्टी डीलर में मकान पर कब्जा करने की जंग छिड़ चुकी थी। दोनो ही डीलर फर्जी कागजात के जरिये मकान को कब्जाना चाह रहे थे। दोनो और के लोगो मे खूब लाठियां भांजी गई..लेकिन उन लोगों के अरमानों पर पानी तब फिरा...जब हम इस केस में नमूदार हुए।हम कौन!हम मस्तराम उर्फ मस्ती...जो मोहल्ले की गलियों से भले ही इतना परिचित न हो लेकिन शहर की सेंट्रल जेल में कैदियों के लिए कितनी कोठरी बनी हुई है वो भली भांति जानता है...जेल से बाहर की आबोहवा वैसे तो अपन को ज्यादा सूट नहीं करती...क्योकि साला जो मजा जेल की अधजली रोटिया और तेज मिर्ची की सब्जी खाने का है वो तो साला इस मुहल्ले के चौधरी के ढाबे के खाने का भी नहीं है। हिंदी में बताए दे रहे है भैया की इस मस्ती के साल के छः महीने जेल में कटते है और छह महीने इस गजोधर के मकान में।

लेकिन मैंने शुरू में ही बताया था न कि हमारी चांडाल चौकड़ी का इस मकान पर कब्जा है...तो चौकड़ी तो बनती है चार लोगों से और चौकड़ी का जो दूसरा पट्ठा था....वो था गोगी....लेकिन इस महारथी के नाम के साथ जो एक शब्द जुड़ा हुआ था वो इसके नाम से भी ज्यादा प्रसिद्ध था...वो शब्द था बेवड़ा। ये बेवड़ा शब्द ऐसे ही इसके नाम से नहीं जुड़ा था बल्कि इस नाम को ये पूरा सार्थक भी करता था। मतलब हर वक़्त ये साला बेवड़ा नशे में ही रहता था। इसका सुबह का कुल्ला ही देशी दारू के ठर्रे से होता था। कसम उड़ानछल्ले की इसकी दारू की खाली बाटली बेचकर ही मोहल्ले का कबाड़ी दुमंजिला मकान ठोक चुका था। लेकिन ये बेवड़ा कितने भी नशे में हो इसके चाकू का निशाना कभी नहीं चूकता था..अपने ही नहीं आसपास के 36 मोहल्लों में उसके चाकू की दहशत थी।

अपन का तीसरा साथी है चिलगोजा उर्फ चरसी...चरसी शब्द ने ही इस बन्दे की पहचान आपको पता चल गई होगी। इस पर जब भी नजर डालो या तो ये भरी हुई सिगरेट के सुट्टे लगा रहा होता है या फिर साला सिगरेट को भरने के काम मे लगा हुआ नजर आता है।लेकिन इस हरामी के पास एक कट्टा है..जो पता नहीं ये कहां से मारकर लाया है....लेकिन इसके कट्टे की इस मकान के आसपास रहने वाले सभी लोगो मे पूरी दहशत रहती है।

अब चौथे बन्दे के बारे में भी जान ही लो...क्योकि इसके बिना अपनी चांडाल चौकड़ी पूरी नहीं होती। नाम है नाटा...चिन्दी चोर है..सिर्फ गांजा पीने की लत के चलते साला मोहल्ले के गटर के ढक्कन तक उखाड़ कर बेच डालता था। इस कोशिश में पता नहीं कितनी बार ये रात को गश्त करते हुए पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है..अब तो पुलिस भी इस बन्दे से इतना पक चुकी है कि अब इसे गिरफ्तार करने की बजाय बस वार्निंग देकर भगा देती है।

अब आप पूछेगे की मेरे अंदर ऐसे कौन से विशेष गुण है जिनकी बदौलत अपन का एक पैर जेल के अंदर रहता है और एक पांव जेल के बाहर रहता है। इन सारे नशेडियों से खतरनाक नशा अपन ही करता है..न...न..न मै कोई स्मेकिया नहीं हूँ और न ही किसी अंग्रेजी नशे का आदि हूँ..अपन पर तो प्यार का नशा चढ़ा था। इलाके की मानसिंह हलवाई की बेटी से अपनी आंखें लड़ी थी...जो पता चलने पर मानसिंह का पारा आकाश पर चढ़ गया था।अब कहाँ अपन साले फुटपाथिया और कहाँ वो मानसिंह हलवाई...जिसके समोसे और जलेबी के नाश्ते से ही पूरे मोहल्ले की नींद खुलती थी। साले ने एक दिन हमे भरे बाजार में अपनी दुकान के कारीगरों के साथ घेर लिया और उस दिन हमारे पिछवाड़े पर साले ने जो अपनी दुकान के कड़छी और पलटे बरसाए...कसम उसकी बेटी चिकनी चमेली की उसी पिछवाड़े से सारी आशिकी हवा हो गई थी। अपन की आशिकी भले ही हवा हो गई हो..लेकिन एक नई सनक अपने दिमाग मे घुस चुकी थी और वो सनक थी भरे बाजार में हुई अपनी पिटाई और अपने अपमान का बदला लेने की....अपन ने बदला लिया और भरें बाजार में ही लिया..भरे बाजार में ही अपन मानसिंह हलवाई का खोपड़ा खोल दिया था। नतीजे में मानसिंह छह महीने के लिए अस्पताल में एडमिट हो गया और अपन छह महीने के लिये अंदर हो गए।अब अपनी मोहब्बत की कहानी का तो दी एंड तो उसी दिन हो गया था..अपनी ही माशूका की नजर में अब आशिक से गुंडे बन गए थे। उस चिकनी चमेली ने भी अपन से मुंह मोड़ लिया और अपन की जिंदगी ने भी एक अलग ही मोड़ ले लिया। जेल से बाहर आते ही पता चला कि जेल जाना कितनी इज्जत की बात होती है। जो साले कल तक राम राम का जवाब नहीं देते थे..और फुकरा समझ कर मुंह मोड़ लेते थे...वो साले अब सामने से आकर हमारे सजदे में सिर को झुकाने लगें थे। इस मस्तराम उर्फ मस्ती का नाम अब मोहल्ले के जरायम पेशा लोगो मे समान और इज्जत से लिया जाने लगा। लेकिन अपनी जिंदगी पर एक बंदिश लग गई थी...वो थी हर शुक्रवार को मोहल्ले के थाने में जाकर अपनी हाजिरी लगाने की बंदिश...अगर कभी हाजिरी लगाने में चूक जाओ तो साले पुलिसिये अगले दिन ही अपन की हवेली में आ धमकते थे। उस मानसिंह हलवाई ने अपनी पहुंच के चलते मुझे मोहल्ले का बी सी घोषित करवा दिया था..बी सी मने बैड करेक्टर..मने हिंदी में बोले तो बुरा चरित्र का आदमी। लेकिन जैसे किसी कंपनी का सी ई ओ बनने के लिए बड़े बड़े कोर्स के सर्टिफिकेट मांगे जाते है...उसी तरह से जरायम की दुनिया में दाखिला पाने के लिये ये बीसी वाले सर्टिफिकेट सोने पे सुहागा वाला काम करते है।

लेकिन इस वक़्त अपन के पांव जेल से बाहर थे...और गजोधर के मकान की छत पर इस वक़्त एक टूटी हुई चारपाई पर लेट कर धूप सेक रहे थे। बेवड़ा आज सुबह से ही अपने नित्य कर्म को करने में मशगूल था और चरसी इस वक़्त छत की मुंडेर पर बैठकर अपनी चारमीनार की सिगरेट को भरने में मस्त था और अपना चिंदीचोर गंजेडी नाटा इस वक़्त छत पर पड़ोसी की दीवार से सिर टिकाए बैठें हुए ही सो गया था। तभी उस मकान की सीढ़ियों पर अपन ने कल्लन को चढ़ते हुए देखा। ये साला कल्लन का अलग ही स्वेग था। ये असामियों की तलाश करता था..की कौन बन्दा कितना माल लेकर किस समय कहां से निकलने वाला है और उसकी आसामी की सुपारी हम जैसे इन धंधो के महारथियों को दे देता था। जिसके बदले में लूट के माल में से बीस प्रतिशत हिस्सेदारी इस हलकट को देनी पड़ती थी। कल्लन सीधा चारपाई पर ही आकर मेरे पास बैठ गया था। उसकी नजर आते ही गंजेडी पर पड़ चुकी थी।उसको गहरी नींद में देखते ही कल्लन के उस चेचक के दाग से भरें चेहरे पर एक विभत्स सी मुस्कान तैर गईं।

"ये दिन में ही लुढ़क गया"उसने व्यंग्य भरी आंखों और व्यंग्य भरी आवाज में बोला।

"इनका तो ये रोज का है..तू बता तू किस लिए यहाँ आया है"मैं इस सयाने को ज्यादा मुंह नहीं लगाता था...साला अगर थोड़ा सा काम का बन्दा न होता तो अभी तक इसका भी मानसिंह हलवाई की तरह खोपड़ी खोल चुका होता। साला अपने घर मे ही अपने घर की औरतो पर बुरी नजर रखता था। जिसकी जानकारी खुद मुझे इसकी भाभी ने दी थी।

"एक काम है तुम लोगो के वास्ते...लेकिन इन नशेड़ियों के साथ कैसे कर पाओगे मस्ती"कल्लन ने फिर से उन सभी के ऊपर एक उड़ती सी नजर डाली।

"काम के वक़्त ये सब चेतन रहते है..इनकी चिंता मत कर ये नशे के खुमार में भी अपना काम करना जानते है...तुम काम बोलो"मैंने मुद्दे की बात पर आते हुए बोला।

"काम तो बता दूँगा मस्ती...लेकिन इस आसामी के बारे में जानकारी जुटाने में मेरी महीने भर की मेहनत लगी हुई है...काम मे कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए..पूरे बीस लाख का मामला है"इतनी बड़ी रकम के बारे में सुनते ही मेरी आँखें भट्टा सी खुल चुकी थी।

"बीस लाख....इस फुकरो के मोहल्ले में इतनी बड़ी आसामी कहां से मिल गई तुम्हे"मेरे मुंह से ये शब्द निकलने स्वभाविक थे।

"इधर की आसामी नहीं है...जेल रोड की आसामी है और काम को अंजाम भी वही देना है"कल्लन इस बार इतनी धीमी आवाज में बोला कि उस चरसी के कानों तक भी नहीं पहुँच सकती थी।

"मतलब साले काम हुआ नहीं...तू जेल का नाम पहले घुसा दे"मैंने मुस्करा कर बोला।

"मस्ती तू कब से जेल जाने से डरने लगा...असली समाजवाद तो जेल में ही दिखता है...साला कितना ही बड़ा आदमी हो मिलना सभी को एक ही कम्बल है...साला फ्री का खाना..फ्री का रहना...कसम से मजा तू ही ले रहा है जिंदगी का"कल्लन की बात सुनकर अपन की सुलग चुकी थी।

"चल फिर..इस बार तू भी अपन के साथ अंदर चल ले...थोड़े दिन तू भी इस असली समाजवाद के मजे ले लें"मेरी बात सुनते ही कल्लन के उन भद्दे होठो पर एक खिसियाई सी हँसी तैरने लगी थी।

"मुझे वहां का पानी नहीं जमेगा मस्ती...तू ही तो बोलता है कि वो तेरा दूसरा घर है...मैं तो इसलिए बोला"कल्लन खिसियाये स्वर में बोला।

"चल अब बकलोली बन्द कर...और उस बन्दे के बारे में बता जो हमारा शिकार बनने वाला है"मैंने फिर से मुद्दे की बात को उठाया।

"आसामी तेरे दुश्मन मानसिंह हलवाई का होने वाला दामाद है..जब तू जेल में था...तब मानसिंह ने उसकी शादी उस बन्दे के साथ तय मर दी थी..जो हमारा टारगेट है" कल्लन ने तो कहानी में ट्विस्ट ला दिया था। पुराने जख्म फिर से उभर आये थे और उस चिकनी चमेली का चेहरा फिर से मेरी आंखों में तैर गया था।

चिकनी चमेली उसे सिर्फ मैं ही प्यार से पुकारता था। वैसे उसका नाम बिल्लोरी था..क्योकि उसके गौरे मुखड़े पर उसकी नीली आंखे एक अलग ही कयामत ढाती थी और उसने ही मुझे बताया था कि उसकी नीली आंखे देखकर ही उसकी दादी ने उसका नाम बिल्लोरी रख दिया था।

"साले तुझे पूरे शहर में कोई और आसामी नहीं मिली...मिली तो मिली इस काम के लिए तुझे बन्दा भी मैं ही मिला"मैंने अजीब से स्वर में उसे बोला था।

"मस्ती यही मौका है..इस लूट के करते ही तेरी आइटम का होने वाला खसम रोड पर आ जाएगा और तू पैसो के मामले में बादशाह बन जायेगा..फिर तू शान से बिल्लोरी का हाथ मांगने मानसिंह के पास जाना"कल्लन की बात ने मेरे दिमाग पर हथोड़े सा वार किया था।

"साले आज बड़ा दिमाग दौड़ रहा हैं...इतना कुत्ता दिमाग तेरे पास कैसे आया"तभी चरसी ने अपनी सिगरेट में एक कश लगाते हुए बोला।

"चिलगौजे...तेरी तरह बस चरस नहीं फूंकता दिन रात ..इसलिए अपना दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है"अभी उसकी बात पूरी ही हुई थी कि एक सनसनाता हुआ चाकू बिल्कुल उसके कान के करीब से साय साय करता गुजरा और जाकर उसी चारपाई में पीछे की ओर गड गया।

"साले बेवड़े पागल है क्या तू...अगर मेरी गर्दन थोड़ी सी भी उधर होती तो ये चाकू मेरी गर्दन में गड़ा होता"कल्लन बदहवासी से बोला।

"तो साले छप्पन टिकली अपने काम से काम क्यो नहीं रखता..अपन के यार की चरस को लेकर क्यो बकलोली कर रहा है तू" बेवड़े ने अपनी बहकी हुई आवाज में बोला।

"शुक्र कर अपुन के कट्टे में गोली नहीं है अभी...वरना अपन नींद में भी अपने दुश्मन को उड़ा सकता हूँ"इस बार वो हरामी चरसी भी गरज उठा था।

"मैं तुम लोगों के वास्ते काम लाता हूँ ढूंढकर और मुझे ही अपना दुश्मन मानते हो"कल्लन ने रुआँसे स्वर में बोला।

"अबे अपुन को अगर लूट के ही खाना है तो किसी को भी लूट लेगा...अपनी दाल रोटी के लायक पैसा तो हर किसी की जेब मे मिल जाएगा"चरसी ही नहीं इस वक़्त उसकी आवाज भी झूम रही थी।

"तुम लोगो का काम चलता होगा दाल रोटी में..लेकिन अपन को ये लूट करनी है...साला मेरी चिकनी चमेली से शादी करने चला है...साले को एक ही दिन में भिखारी नहीं बना दिया तो मेरा नाम मस्ती नहीं"मेरे चेहरे से ही नहीं मेरे शरीर के हर हावभाव से इस वक़्त कोई भी मेरे इरादों की भनक पा सकता था।

क्रमशः


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