बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
अच्छी नौकरी तनख्वाह भी ठीक-ठाक मिलती थी। ऑफिस में कुछ दिनों से घपले चल रहे थे, सुधीर बहुत ही ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था। उसे इस तरह का माहौल पसंद नहीं था। यहाँ का वातावरण उसे रास नहीं आया।
उसने सोचा की वह नौकरी छोड़कर दूसरी जगह ढूंढ लेगा और उसने इस्तीफा दे डाला। आज छः-सात महीने हो चुके है उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिली। अब यार दोस्त उसकी खबर लेने नहीं आते। सगे -संबंधियों ने भी दूरी बनानी शुरू कर दी है।
वक़्त और परिस्तिथियाँ कब कैसे बदल गई ?
जहाँ अक्सर दोस्तों और रिश्तेदारों का जमघट लगा रहता था। अब तो वह सब आने से भी कतराने लगे। ठीक ही तो है जहाँ गुड़ होगा वहीं तो मक्खियाँ बैठेंगी। आज फिर इन्हीं ख्यालों में नौकरी की तलाश में चल पड़ा। चंद ही दिनों में उसे एक अलग ही तस्वीर नजर आई बदलते रिश्तों की।
