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Meera Ramnivas

Inspirational

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Meera Ramnivas

Inspirational

बदलाव

बदलाव

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ममता जी बेटे बहू के साथ रहती हैं। इस घर से उनकी बहुत सी यादें जुड़ी हैं। शादी के बाद उनके पति ने ये घर बनाया था। पहले किराए के मकान में रहा करते थे। उसके पति अपने माता पिता को उनका अपना घर देना चाहते थे। गृह प्रवेश की पूजा में भी सास ससुर ही बैठे थे। उनकी सास बहुत खुश हुई थीं अपना घर पाकर। काम निपटा कर खाली समय में ममता और सास खूब बतियाती। बाप बेटे का झगड़ा भले हो जाये ,सास बहू का झगड़ा कभी न होता। दोनों माँ बेटी की तरह एक दूसरे से चिपकी रहती।     

   ममता के पति को तो माँ और ममता के मधुर संबंध को लेकर कभी कभी ईर्ष्या होने लगती। एक दिन ममता की सास चल बसी। पोते की शादी देखने का ख़्वाब अधूरा छोड़ गई,

     हाल ही में ममता के पति का भी देहांत हो गया। ममता के जीवन में अचानक खालीपन पसर गया। शाम के चार बजे हैं। आदत के मुताबिक ममता चाय बनाने रसोई की तरफ जा रही हैं, उन्होंने बहू को पुकारा, "बहू! मैं चाय बना रही हूँ तुम पीओगी।"   


     अम्मा जी मैं ग्रीन टी पीउंगी, थोड़ी देर बाद। ममता अपनी चाय बनाती है और पीकर बाहर जाने के लिए तैयार होती हैं। बाहर जाते जाते बहू को कहती हैं "बहू आज भजन मंडली है ,जा रही हूँ, सात बजे तक लौट आऊँगी।"

  बहू ममता को कहती है " अम्मा जी ऐसा नहीं लगता आप बाबू जी के गुजर जाने के बाद कुछ ज्यादा ही बाहर घूमने फिरने लगी हैं। सुबह शाम जब भी मन चाहा मंदिर और भजन कीर्तन के बहाने घर से निकल पड़ती हैं।" 

   तुम ठीक कह रही हो बेटी। पहले मैं तुम्हारे बाबू जी की सेवा टहल में लगी रहती थी। दिन न जाने कहाँ निकल जाता था। कब सुबह से शाम हो जाती थी। दोनों बतिया लिया करते थे। समय कट जाता था। किंतु उनके जाने के बाद मेरा समय काटे नहीं कटता। बेटा काम पर चला जाता है। पोता स्कूल चला जाता है। ट्यूशन जाता है, खाकर सो जाता है। तुम अपने कमरे में रहती हो। न साथ खाती हो न साथ बैठती हो। अब तुम ही बताओ। मैं क्या करूँ? 


  मैंने व्यस्त रहने के बहाने ढूंढ लिए हैं, कभी मंदिर चली जाती हूँ, कभी हम उम्र महिलाओं के साथ पार्क में जा बैठती हूँ, मोहल्ले की भजन मंडली में चली जाती हूँ।  

    अम्मा जी की बातों से उसे एक भय सताने लगा। कहीं ऐसा तो नहीं अम्मा जी मोहल्ले की औरतों से उसकी चुगली करती फिरती हैं।

      एक शाम अम्मा जी जैसे ही पार्क जाने के लिए निकली, वो अम्मा जी के पीछे पीछे पार्क पहुँच गई। नजर बचा कर पेड़ के पीछे छुप कर बैठ गई। अम्मा जी हमेशा की तरह अपनी मित्र मंड़ली संग बतियाने लगी। अचानक मिसिज वर्मा ने उनसे पूछा "ममता बहन आपकी बहू कैसी है, कभी आपके मुंह से उसके बारे में कुछ सुना नहीं। हम सब अक्सर बहू की कोई बात बुरी लगी हो तो बतिया लेते हैं किंतु आप ने कभी अपनी बहू के बारे में कुछ नहीं कहा।"

    दरअसल हमारे बीच सास बहू जैसा कुछ है ही नहीं। मैंने उसे बहू कभी माना ही नहीं। उसे सदा बेटी माना। मेरे तो कोई बेटी है नहीं। बेटी से क्या शिकवा क्या शिकायत। वह भी मुझसे माँ जैसा ही प्यार करती है। मेरी बहू बड़ी संस्कारी है, मेरा और घर परिवार का खूब ध्यान रखती है। मुझे कुछ कहने सुनने का मौका ही नहीं देती।

     पेड़ के पीछे छुप कर बहू अम्मा जी की सारी बातें सुन रही थी। अम्मा जी की बातें सुन वह अवाक रह गई। उसे बड़ी आत्मग्लानि हुई। वह चुपचाप घर लौट आई उसी पल से उसने तय कर लिया कि वह अम्मा जी को अपनी माँ जैसा ही प्यार देगी, उन्हें कभी अकेलापन महसूस न होने देगी। बेटी बन कर ज्यादा से ज्यादा समय अम्मा जी के साथ बितायेगी।

  बेटे महेश ने महसूस किया माँ के चेहरे पर रौनक लौटने लगी है। पत्नी को माँ के साथ उठते बैठते, बतियाते देख खुशी हुई। इस सुखद बदलाव से सभी खुश थे।

      


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