Dr.manju sharma

Drama Classics Inspirational

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Dr.manju sharma

Drama Classics Inspirational

बधाई हो

बधाई हो

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ट्रिन ट्रिन ट्रिन .. 

फ़ोन नहीं उठा रही है। क्या हुआ हुआ होगा ? कम से कम बताना तो चाहिए। नहीं किसी काम में उलझी होगी। ठीक है न, फिर करूँगी और सोनू काम में उलझ गई। शीतल ने बस्ता सोफ़े पर रखा और गले में झूल गई। उसके आते ही माँ का मन महकने लगा। माँ ,माँ !आज क्या बनाया है ? पेट में चूहे कूद रहे हैं। अच्छा जी पहले हाथ-मुँह धोलो ,कपड़े बदलो, मैंने गरमागरम आलू पूरी बनाई है और तुम्हारी पसंद का हलवा भी। उसने हाँ माँ कहते हुए बस्ता उठाया और फ्रेश होने चली गई। सोनू ने लोई बनाकर रखी थी। इसे तो अपने पापा की तरह गरम फूली पूरी ही भाती है। सोचते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। सोचने लगी शीतल की उपस्थिति घर में जान डाल देती है। एक जान और हजार काम, धमाचौकड़ी बच्चों सी। सच में भगवान ने बचपन को कितना बिंदास बनाया है। थाली परोस कर ले आई। ले जल्दी पेट पूजा कर। पेटू कहकर हँसने लगी। सुराही से पानी उँड़ेलती हुए ध्यान हाथ पर बंधी घड़ी पर गया। अरे घंटे हो गए हैं कला का फोन नहीं आया। मिस्ड कॉल तो देखा ही होगा ....। व्हाटस्प चैक किया , मैसेज भी नहीं देखा सोनू के माथे पर बल पड़ गए। जरूर तबियत खराब हो गई होगी। आजकल अपने आप में न जाने कहाँ खोई रहती है। बस मुँह पर ताला जड़ लिया है। एक बार फिर से कोशिश करती हूँ। हैलो ! एक उबाऊ सी आवास थानों से टकराई हैलो। क्या हुआ सुबह से चिंता हो रही थी। फ़ोन मैसेज कुछ नहीं। तबियत तो ठीक है न! सोनू ने एक साथ ढेरों प्रश्नों की बौछार लगा दी। हाँ ठीक हूँ। बस यूँ ही सो गयी थी। सीधा सपाट जवाब। अच्छा बच्चे कैसे है ? सब ठीक ही तो है अपनी दुनिया में।

फिर वही रुखा सा जवाब। सोनू को लगा कुछ ठीक नहीं है। कुछ इधर- उधर की बातें जबरन की और दूसरे दिन मिलने का आश्वासन ले हे फ़ोन रख दिया। शीतल खाना खाकर थैंक यू का किस चिपका गई गाल पर। सोनू ने इशारा किया थोड़ा आराम कर लो लेकिन उसने तो मानो पंडित नेहरू की बात गांठ बांध रखी है ‘आराम हराम है’ लगी किताब पढ़ने। इस लड़की का क्या करूँ ? थोड़ी देर में देखती हूँ अदरक वाली चाय ले आई बिटिया रानी। सोनू ने सोचा नाहक ही बेटे का ढोल बजाते रहते हैं लोग। और स्मृति की परतें चाय की घूंट के साथ एक एक करके उधड़ने लगी। शीतल का जन्म। मैं कितनी खुश थी हर पल, हर जगह वह फूल सा चेहरा ही नज़र आता था बस। लेकिन कानों पर कुछ और दस्तक देता रहता था। लड़की हुई हैं। किसी ने कहा बाल तो देखो कितने गहरे हैं। दरिद्रता लाई है, तो किसी ने ने कहा और क्या ? जन्म लेते ही पैसो की ढेरी करवा दी क्योंकि उसका जनम ऑपरेशन से हुआ था। सो पहले डॉक्टरों को चढ़ावा चढ़ा था। यह सब तीर की तरह चुभ रहा था। लेकिन प्रतिरोध करने की न हिम्मत थी,न हालात थे। आखिर उधार लेकर ही तो ऑपरेशन करवाया था। उसकी छोटी सी हथेली ने मेरा गाल छुआ और रोने लगी थी , मानो शिकायत कर रही हो कि देखो ना माँ ! मैंने क्या किया है ? प्यार की जगह तिरस्कार के तरकशों से मेरा स्वागत हो रहा है। मनकों जैसी आँखों में आँसू भर आए। फिर दिन बीतते गए। आज घर है, गाड़ी है, सब कुछ तो है। यह तो लक्ष्मी स्वरूपा है। इनसे बढ़कर संस्कारी सुशील गुणवती मेरी बिटिया रानी है। और क्या चाहिए ?

साईं इतना दीजिए जा में कुटुंब समाए ... कबीर जी को नमन किया। बिखरे बालों को समेटते हुए ढीला सा जुड़ा बनाया। 

कला को मैं ऐसे घुटते नहीं देख सकती। जरूर कोई दिमक उसे चाट रही है,खोखला कर रही है। सोचते हुए तुरंत मैसेज किया। 

सोनू - कल मेरे घर आ रही है तू बस। 

कला – कल तो नहीं, फिर कभी। 

सोनू – कल ही। मुश्किल से कोरोना के बाद मिलने का मौका मिला है। तुम हो कि लॉकडाउन के मजे ले रही हो। 

कला – नहीं ,ऐसी बात नहीं है। 

सोनू – ओ मैडम! ये सब बात छोड़ो। जरा बको भी। वैसे भी तुम्हारी बकबक सुनने का बहुत मन कर रहा है। 

कला – ओके। आती हूँ। 

सोनी – लंच के पहले ही आ जाना। साथ में खाना खाएंगे। 

कला – मुस्कुराहट के साथ अंगूठा दिखा दिया बस। 

सोनू का मन बेचैनी और खुशी के द्वन्द्व में उलझा हुआ था। 

दो साल बाद अपनी पक्कम पक्का सहेली से मिलने की खुशी तो दूसरी ओर उसकी उदासी। बढ़िया लंच की तैयारी की सोनू ने। वह ढेरों बातें करना चाहती थी, इसलिए सारा काम कला के आने से पहले ही निबट जाए यही योजना थी। कान चमगादड़ बनी घंटी पर चिपके थे। बेल बजी , लपककर दरवाजा खोला – दूधवाला था। तीन बजे कला ने कदम रखा। यह क्या उसके चेहरे पर अमावस पसरी पड़ी थी। बाल दुख पेशानी के गवाह बने रबड़बैड में कैद । हाथ में एक बैग। फलों से भरा। यह उसका संस्कार था,जब भी कहीं जाओ खाली हाथ न जाओ। यह क्या हाल बना रखा है ? यह तो पूरा कंकाल, ताज्जुब है चल कर आया है। आँखें धँसी हुई,गालों की हड्डियाँ उभर कर दिले हालात का हिसाब दे रही थी। सोनू हतप्रद। अरे अंदर भी आने देगी ? फीकी मुस्कान के साथ कला ने कहा। ओह! सोनू झेंप गई , जुबान तालु से चिपक गई ,हाँ आ, आओ न ! बैठो और रुलाई फूट पड़ी। गले मिलकर दोनों का मन हल्का हुआ। पहले शहतूत का शरबत,फिर अपनी अदरक वाली चाय। कला ने सिर हिला कर हामी भरी। सोनू के पैरों तले की जमीन खिसक गई क्या कला बोलना भूल गई है ? 

ओए मैडम जी! ये अजनबियों का सा व्यवहार न करो। पहले के रोल में चटर पटर करो भई ! सोनू ने वातावरण को सहज करने की कोशिश करनी चाही। कला ने कहा ऐसा कुछ नहीं है मैं आराम से हूँ। देख कला जो भी तकलीफ हो मुझसे कहो। इतना भी पराया न कर यार ! और उसका हाथ अपने हाथ में ले आश्वासन दिया , दिल खुलवाना चाहा। आखिर उस हँसते हुए चेहरे पर अवसाद के बादल इतने गहरे क्यों हो गए हैं? माना कि कोरोना ने उदासी और एकेलेपन की सौगात दी है। लेकिन मैसेज तो हमेशा अच्छे ही आते थे , गुडमॉर्निंग के, आशा भरे मैसेज, चुटकुले तो क्या यह सब नकली था केवल आभासी ? जो हकीकत की जमीन पर अपनी छाप छोड़ने से पहले ही डिलीट हो जाता है। 

सोनू ने फिर बात छेड़ी और बता घर में सब कैसे हैं? 

वहहटस्प होता तो अंगूठे की इमोजी टिक देती। आँखें कभी झूठ नहीं बोलती। उसके जवाब में छटपटाहट थी। दुख आँखों की पुतलियों पर हिलोरे लेकर पछाड़ खाने लगा। आँखों के ढक्कन पानी के उबाल में ऊपर उठने लगे। देख कला सच सच बता । तबीयत ठीक नहीं है ,हम अच्छे डॉक्टर के पास चलेंगे। नहीं मैं ठीक हूँ बस यूं ही। कोई तकलीफ नहीं है। सोनू ने झल्लाकर कहा अंधा भी बात देगा कि तू ठीक है या बीमार। कला ने प्रतिकार किया हाँ मेरा मन बीमार है,घायल है। और उसकी कोई दावा नहीं है। क्या बक रही हो कला? पति, बच्चे घर सभी के रहते ऐसी बातें ? 

हाँ सब है न लेकिन घर नहीं मकान है। जिसमें चार अनजान लोग रहते हैं। कला ऐसे क्यों कहती हो तुम्हारे परिवार की तो मिसाल देते थे लोग। हाँ देते थे पर अब नहीं। 

इसी बीच शीतल आ गई नमस्ते आंटी। कैसी हैं आप ? यथार्थ और कल्पना कैसे हैं ? कला का मुरझाया चेहरा शीतल को देखकर खिलने लगा जैसे प्यासी बेल पर थोड़ा सा पानी जीवन बन जाता है। सब ठीक है। आंटी आपने चाय पी ? मैं अपने हाथों से स्पेशल चाय मलाई मार के बनाकर लाती हूँ। आपकी थकान रफ़फू चक्कर। चाय वाला चाय कहते हुए रसोई घर की ओर मुड़ी और जोर से बोली आंटी चाय बनाने में प्रधानमंत्री जी कि सी फिलिंग आती है, सभी उसकी बात पर हँस पड़े। कला भी मुस्कुराई। हाँ कर्म अच्छे हों तो सब अच्छा। तुम्हारी माँ ने पुण्य किए थे जो तुम जैसी चहकती चिड़िया मिली। हाँ लेकिन अपुन उड़ने वाली नहीं हैं। 

खाना चाय सब हुआ। सोनू कला के कष्ट की तह तक नहीं जा सकी। देर हो रही है ,अब मैं चलती हूँ। सोनू ने भी रोकने की कोशिश नहीं की। अच्छा ! तुम भी आओ न घर। आज मुझे अच्छा लगा। सोनू ने हाँ भरी और अपने ड्राइवर को हिदायत दी कि हिफाजत से पहुँचा कर आना। उसके जाने के बाद सोनू फिर कला की फिक्र में डूबने लगी। 

आज शनिवार है शीतल तुम्हारी छुट्टी है न। मैं कला आंटी के घर हो आती हूँ। अच्छा मम्मू। यह लड़की भी न पता नहीं क्या क्या लाड़ करती है। उलटा है बेटी माँ के लाड़ करे। 

ट्रीन ट्रीन .. आओ आओ सोनू। धूप से झुलसी दूब जैसे चेहरे पर मानो ऑस की बूंदे छलक आई हों। आलीशान घर। आधुनिकतम भौतिकता पसरी पड़ी थी , महँगा साज समान। कुछ ही देर में सोनू को अटपटा लगने लगा। जैसे वह घर नहीं संग्रहालय हो। जहां कीमती चीजों की प्रदर्शनी हो। इस बीच कला चाय ले आई। बिकानेरी भुजिया तुझे पसंद है न खकते हुए उसने प्लेट आगे बढ़ाई। बच्चे दिखाई नहीं दे रहे आज तो छुट्टी है न ! अपने अपने कमरों में हैन। बुलाती हूँ। कला ने दरवाजे पर दस्तक दी। डोंट डिस्टर्ब मौम। प्लीज गो। अब कल्पना को आवाज लगाई। उफ़! माँ कभी तो अपनी प्राइवेसी में रहने दिया करो। मुझे भूख नहीं है। वैसे मैंने ऑर्डर कर लिया है खाना। कला का हाथ दरवाजे पर चिपका ही रहा। उसने भ्रकस प्रयास किया। बच्चे रातभर पढ़ते हैन न थक जाते हैन। सो रहे हैं। सोनू ने नब्ज पकड़ ली बीमारी की डायगनोस हो चुकी थी बीमारी .. सिसकियों,रोष चुप्पी के तिराहे से निकल कर सब इकट्ठा होने लगे। आत्मीयता,आदर प्रेम सब सिवाल की तहर फिसलने लगे। कुछ भी तो हाथ नहीं आ रहा था। रोबोट स जीवन मुझे नहीं चाहिए कहकर कला चुप हो गई। सोनू ने सोचा संयुक्त परिवार का वो आँगन जहां बच्चों की चिलपौ चाची टाई और माँ के झगड़े दादी का प्यार और फटकार रेवड़ियाँ बाँटती बुआ। चाचा जी की बावन कड़ियों की कहानियाँ। रात को दर लगे तो तब भूत पिचास निकट नहीं आवे।। के साथ नींद की गोदी में सो जाना। अहा ! कला सच कहा गया है दौलत भूख प्यास नहीं जगा सकती , नींद खरीदी जा सकती है। देख कला कुछ तो तकनीकी का दुरुपयोग है कुछ आज की पीढ़ी। थोड़ी देर में यथार्थ बाहर आया। भीमकाय ,आँखों के नीचे काले घेरे सिर पर चिड़िया का घोंसला ,हाथ में मोबाइल गले पर काली परतें। हाय आंटी। नमस्ते खुश रहो! माँ पे करदो हजार रुपए। पिज़्ज़ा बर्गर और कोक के लिए। कहना बना हुआ है बेटा ओ ई वानट्स दिसँ सो ई ऑर्डर। कला को जैसे इस तरह के व्यवहार की आदि हो गई थी। क्या सोच रही है कला। बच्चे बुरे नहीं आदतें बुरी हो गई हैं। हाँ जानती हूँ कला ने ठंडी सांस ली। जबसे पढ़ाई,खरीददारी सब कुछ ऑनलाइन हुआ हैं तबसे ये सब लाइन पर रहे ही नहीं। हाँ वक्त का तकाजा था इसलिए बच्चों को मोबाइल के हवाले करना पड़ा। लेकिन बहुत जरूरी है हमारी भी मौनीटरिंग। सोनू मुझे रातडीन इनकी सेहत की चिंता रहती है। ये असामाजिक हुए जा रहे हैं। भावनाओं को तो कुचल दिया है वेबसीरिज ने। ये गेम्स आक्रामक बना रहे हैं बच्चों को। माँ की बातें आउट डेटेड और बोरिंग लगने लगी है। तुम्हें पता है किसी के सामने बोलना तक नहीं आता निशाचर हो गए हैं। सोनू ने भी सिर हिला दिया। आज की पीढ़ी के पैर लड़खड़ा रहे हैं। किंतु कला संतुलन और सामंजस्य बैठाए तो तकनीकी अभिशाप नहीं बनेगी। सोनू तू ही बता पति छ: छ: महीने काम से बाहर रहते हैं, बच्चे वैसे बात नहीं करते हैं, मैं चाहती हूँ कि इनके लिए खूब खान बनाऊँ , इन्हें खिलाऊँ ,ये मुझसे लड़ें ,शिकायत करें ,प्यार करें। यहाँ तो कोई कुछ बोलत ही नहीं। खाने की टेबल पर भी मोबाइल हावी रहता है। फिर कुछ देर चुप्पी ने देर डाल दिया। सारे जातं कर लिए पर गैजेस्टस की लत नहीं छुड़ा सकी। हूँ कहते हुए सोनू समझने का प्रयास करने लगी। एक काम कर गाँव से माँ बाबूजी को बुला ले। दादा-दादी का प्यार की छाँव तले तुम्हारा परिवार फिर से खुशहाल हो जाएगा। मैं उनका जीवन भी एक एकाकीपान की वेदी पर बलि नहीं होने दे सकती। बुजुर्गों को तो अपनत्व , आपस में बात करने वाले ही तो चाहिए , वे रूखी- सूखी खाकर अपनी चौपाल में खुश रहते हैं। इस सोने की लंका में दम घुट गया उनका। 

इस बीमारी का का कुछ इलाज तो करना पड़ेगा। माहौल बदल दो। माहौल बदल दूँ क्या कह रही हो ?

कुछ गरीब अनाथ बच्चों को पढ़ा लिखा। नए कौशल सिखा। तुम तो एक्सपर्ट हो कला। अपनी कला को पहचानो। एन जी ओ से जुड़कर जरूरत मंदों के इए हाथ बढ़ाओ। पैसों की कमी तो है नहीं तुम्हें। 

कला को तो रास्ता दिख गया। उसका चेहरा आत्मविश्वास की आभा से दमकने लगा। मैं कुछ अलग कर सकती हूँ। 

कुछ दिनों बाद बच्चे स्कूल स्कूल चले जाते हैं ....। 

कला अपना समय अनाथ बच्चों को देने लगी गौरी,बबलू और बिट्टू कि प्रतिभा देखकर वह दंग रह गई। एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए उन्हें तैयार करवाया। ‘इंटनेट और हम’ बच्चों ने प्रथम पुरस्कार जीता। उनकी फ़ोटो अखबार में छपी। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा। 

इस बीच कला ने महसूस किया कि उसके बच्चे कल्पना और यथार्थ भी अब घर और परिवार के निकट आने लगे हैं। 

आज यथार्थ पाँच बजे उठ गया। माँ मोहिनी को संगीत सिखा रही थी। वह भी चुपचाप आँखे बंद करके बैठ गया। कला की साधन सफल होने लगी। कल्पना भी चाय की प्याली ले आई। लो माँ। यह कहते कलपना का गला रुँध आया और कला ने उसे गले से लगा लिया। कला की आँखों से गरमाई दो बूँद कलपना के गालों पर लुड़क आई। इस बीच यथार्थ भी माँ से चिपट गया। जैसे तीनों अलग भटके राही मिल गए हों। 

रविवार को तीनों सोनू के घर गए। सबने साथ में लंच किया। हँसी ठहाकों से घर गूँज उठा। इसी बीच कला ने मैसेज देखा कि सूरज बाबू अमेरिका छोड़ कर अपने घर आ रहे हैं। कला के गालों पर लालिमा दौड़ गई। सोनों की आँखें ताड़ गई उसने कहा बधाई हो !


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