स्टूडेंट स्कूल का ऑक्सीजन
स्टूडेंट स्कूल का ऑक्सीजन


आज सपने में मैं स्कूल गई लेकिन .... देखा विद्यालय रूपी बगिया सूनी है। तालाबंदी ने बच्चों की मुस्कराहट पर कोरोना का ताला जड़ दिया है। इतनी बड़ी इमारत सूनी, सूखी और संवेदनहीन खड़ी है। फुटबॉल का मुँह फूला है,तो कहीं गेंद उदास पड़ी है।
हँसी -ठिठोली, चटर-पटर,शरारतें, कोलाहल, सब कहीं खो गए हैं।
एक समय था,वक्त घड़ी की सुई से होड़ करता भागता था। किसी को फुर्सत हीं नहीं होती थी। पढ़ने-पढ़ाने से,खेलने-कूदने से, शिकवे, शिकायतों से उफ़ ! ये बच्चे ही तो हैं विद्यालय की नब्ज़, ये बच्चे ही तो हैं स्कूल का स्पंदन,
ये बच्चे ही तो हैं पाठशाला का प्रेम। माना कि यह कुदरत का कहर है लेकिन अब बस भी करो हे भगवान ! मेरे बच्चे उदास हैं। उनकी ख़ुशी लौटा भी दो, कहते हैं गुरु ईश्वर तक अपनी बात पहुँचा सकता है तो अब सुन भी लो मेरी पुकार।