कल बेहतर होगा ......
कल बेहतर होगा ......
वह देखो ! पूरब दिशा से धीरे –धीरे रात पर से काली कम्बल उघाड़ती हुई लालिमा लिए रवि की सवारी आ रही है। नींद दबे पाँव भागने लगी तो जीवन दौड़ने लगा। मानो सूरज ठेकेदार ने सबको अपना काम समझा दिया हो।
अरे बिट्टू जल्दी करो मुझे देर हो रही है, बीनू ने कहा। माँ हमें ही देर क्यों होती है ? उसके गोलमटोल रुई के से फाये गालों को छूकर मैंने कहा क्योंकि तुम जल्दी तैयार नहीं होती हो। ओह! मम्मी सॉरी, मैं कल जल्दी उठूँगी। हाँ बेटा देखो सूर्य कभी देर नहीं करता , एकदम अपने समय पर। हाँ माँ समझ गई, बीनू बेटी को समय और अनुशासन समझाते – समझाते उसे स्कूल छोड़ आई। अपने पल्लू से माथे पर छलक आए पसीने को पोंछा और सोचने लगी कितना गुस्से में है सूर्य देव।
दिन तो समय के पहिए लगाए अपनी गति से बढ़ने लगा। दफ़्तर के दरवाज़े पर रिश्वत के नजराने शुरू हुए। चपरासी से बॉस तक ओहदे के हिसाब से वजन बढ़ने लगा। सूरज ने अस्पताल से गुजरते खिड़की से झाँका तो ... बीमार डॉक्टर की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठे हैं, लेकिन डॉक्टर बाबू को तो पहले उन्हें देखना है जिसने उनका पर्स गरम किया है। इन्हें क्या है, यहीं पड़े रहेंगे। सूरज का दिल घबराने लगा, उसका चेहरा तमतमाने लगा और वह आकाश के चौराहे पर खड़ा देखने लगा।
कितनी मासूम, जवान और बूढ़ी निगाहें जज साहब की ओर न्याय की फ़रियाद में उठी किन्तु न्याय के तराजू में तो नोटों का चुंबक चिपक चुका था, पलड़ा झुक गया ....।
अब तो सूरज भी थक गया था , अपने पैर घसीटते हुए भागने लगा बेदम, भागते – भागते पैर छिल गए। चेहरे पर खून उतर आया, हताश , निराश सा लटक गया क्षितिज पर और धीरे – धीरे डूबने लगा पश्चिम के पैमाने में। फिर आने की आशा में कि कल आज सा नहीं होगा, आज सा नहीं होगा आज सा .....।