Dr.manju sharma

Children

4  

Dr.manju sharma

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टिफ़िन बॉक्स

टिफ़िन बॉक्स

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रीना ने रसोईघर से आवाज़ लगाई चिंटू ओ चिंटू ! उफ़! क्या घोड़े बेचकर सोता है यह बच्चा। स्कूल का समय हो गया है अभी तक जागा ही नहीं। माँ हाथ में करछी लिए ही पहुँच गई चिंटू को स्वप्न लोक से लाने के लिए। देखा कि चिंटू बड़बड़ा रहा था .. मुझे नहीं चाहिए,नहीं चाहिए। माँ के ममतामय सागर में हैरानी का ज्वार उठने लगा झट से उसे चिपका लिया। क्या हुआ बेटू ? क्या बुरा सपना देखा ! उठो ! मुर्गा बोला हुआ सवेरा जगो उठो कहते हुए रीना उसे गुदगुदाने लगी। चिंटू ने कमल की पंखुड़ियों सी आँखें खोली और उसके गुलाबी होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई। चिंटू ने कहा माँ प्रणाम ! माँ ने खुश होकर उसे गले से लगा लिया।

अब जल्दी से नहा धोकर स्कूल के लिए तैयार हो जाओ कहते हुए रीना चौके की ओर चली गई। कुछ ही देर में चिंटू बाबू एकदम तैयार होकर आ गए। अच्छा क्या नहीं चाहिए तुम्हें क्या कह रहे थे ? रीना कुछ मुस्कुराहट और कुछ हैरानी से उसके भोले चेहरे हो निहारने लगी। माँ आपको पता है ? मैडम जी कह रही थीं आज से कोई बच्चा प्लास्टिक का टिफ़िन नहीं लाएगा। ओहो! तो कक्षा की बातें तुम्हारे दिमाग में चकरी बन घूम रही थी, कहते हुए हँसने लगी। चिंटू स्कूल के लिए एकदम तैयार होकर नाश्ता करने बैठ गया। रीना सुंदर सा टिफ़िन बॉक्स और पानी की बोतल ले आई। माँ यह नहीं चाहिए कहते हुए चिंटू ने मुँह बिचकाया और नन्हीं हथेलियों से सरका दिया टिफ़िन बॉक्स को। क्यों क्या हुआ ? चिंटू के इस तरह चिढ़ने पर रीना की भौं टेढ़ी हो गई। प्लास्टिक हमारे खून में जाता है,फिर अंदर जम जाता है और हम बीमार हो जाते हैं।

मुझे यह नहीं चाहिए, एक ही सांस में चिंटू ने फरमान सुना दिया। सुनों बेटा! यह प्लास्टिक अच्छी कंपनी का है, इससे कुछ नहीं होता। रीना ने तर्क दिया। माँ हमारी टीचर जी कहती हैं प्लास्टिक की वस्तुओं में रखी चीजों में धीरे-धीरे प्लास्टिक के कण जमने लगते हैं। उसने बीच में ही टोका,लेकिन तुम खाना किसमें ले जाओगे भला ? अरे ! माँ और कुछ दे दीजिए न ! चिंटू के कलमदल से होट सिकुड़ गए, माथे पर ढेरों शिकन उभर आई। माला फेरती दादी बहुत देर से पोते और बहू की बातचीत सुन रही थी, उन्होंने आवाज़ लगाई अरे ! बहू सुंदर आकर्षक,सस्ती हल्की चीजों का जादू अब चिंटू पर नहीं चढ़ने वाला। वह समझदार हो गया है। उसे तांबे के बर्तन में खाना-पानी दे दो। गरविली मुस्कुराहट झुर्रियों से झलकने लगी। ओहो! माँ जी आप भी न आदम के जमाने की बात करती हैं एक तो यह टस से मस नहीं हो रहा ऊपर से आप ! माँजी ने मुँह बिचकाकर पल्लू आगे सरकाया और उनकी उंगलियों में मनके तेजी से घूमने लगे।

रीना ने समझाना चाहा खाना नहीं खाओगे तो स्वस्थ कैसे रहोगे ? बड़े होकर पैसे कैसे कमाओगे ? चिंटू ने अपनी मनकों जैसी आँखें नचाई। वही तो कह रहा हूँ न मम्मा! स्वस्थ रहने के लिए प्लास्टिक अच्छा नहीं है।

रीना को सुबह-सुबह झंझट नहीं चाहिए था अत: उसने आदेश दिया, तुम्हें इसी में खाना ले जाना होगा समझे। आए बड़े सुधारवादी।

चिंटू जा चुका था। पर शाम को घर लौटा तो उसके होंटों पर सफेद पपड़ी जमी थी,मुँह अलसाया हुआ जैसे कमलदल मुरझा गया हो। क्या हुआ बेटे ? तुम ठीक हो न ! कहते हुए रीना ने उसे गोद में ले लिया और बस्ते से टिफ़िन बॉक्स निकाला। उसमें खाना वैसे ही पड़ा था। रीना की आँखें भर आई। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। जल्दी से रसोई की टाँड़ पर पीतल और तांबे के बर्तन जो बोरे में आउटडेटेड समझकर रख दिए गए थे,उतरने लगे। चिंटू के लिए सुंदर सा टिफ़िन धातु का न कि प्लास्टिक का। चिंटू खुश और माँ भी खुश। दादी सोफ़े पर बैठी रामायण देख रही थी, बुदबुदाई भलो करे टीचर जी थारो।


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