हाँ भई हाँ ......

हाँ भई हाँ ......

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हाँ भई परीक्षा ही तो है इसे नजले का संक्रमण क्यों बना रहे हो भाई। अरे यार ! तुम समझते क्यों नहीं, बच्चों की परीक्षा है। हम कहीं नहीं जा सकते। टी.वी., फिल्म पार्टी, भ्रमण सब परीक्षा रूपी दानव की बलिवेदी पर स्वाहा कर रखा है। अच्छा यह बताओ कि परीक्षा किसकी है? बड़ा अजीब सवाल है बच्चों की और किसकी ? इसी बीच फोन की घंटी बज उठी। प्रणाम बाबूजी। जी जी .. यह सब आपकी समझ में नहीं आएगा। आप ऐसा करें परीक्षा के बाद ही आएं तो अच्छा होगा। उसके माथे पर बल पड़ने लगे। बाबूजी आपको तो पता ही है सिब्बू आपके आते ही बिगड़ जाता है। फोन के तारों में से एक बेबस लरजती आवाज लिपट कर रह गई। अच्छा ....। रोहन ने फोन पटका और बड़बड़ाने लगा किसी को परवाह नहीं है, कोई समझता ही नहीं कि आखिर परीक्षा आने वाली हैं। तुम्हारी भौएँ क्यों चढ़ी हुई हैं ? चल न यार! बहुत दिन हुए इस कम्प्यूटर की खटपट से नीरस बोझिल मन कुछ नेचुरल चाहता है। हाँ वो तो ठीक है पर तुम्हें नहीं पता हमने अगले दो -तीन महीनों तक शादी-ब्याह में आना-जाना बंद कर दिया है। तुम भी न ! कमाल करते हो। अरे इसमें आश्यर्य की क्या बात है जब तुम्हारे बच्चे होंगे तब तुम्हें पता चलेगा आटेदाल का भाव। अच्छा .... कहकर हनी ने आँखें बड़ी कर कंधे उचकाए। इतने में रीना गरमा-गरम चाय ले आई। अदरक और इलायची वाली महक ने तनाव को कुछ हल्का किया। हनी ने जल्दी से कप उठाया और कहा भाभी अब आप ही बताइए, होली पर कुछ हुडदंग होनी चाहिए कि नहीं ? जोगीरा सारा रा..रा .. कहते हुए शरारत भरी मुस्कराहट से चेहरा खिल उठा उसका। रीना ने गम्भीर स्वर में कहा कि आप कह सो सही रहे हैं। होली रुखी -सूखी जाय यह तो किसी को नहीं भाता लेकिन क्या करें बच्चों की परीक्षा है। यह परीक्षा है या हव्वा जहाँ देखो यही भूत चढ़ा है। अच्छा भाभी यह बताइए कि परीक्षा आप दोनों लिख रहे हैं या बच्चे ? हनी जी आप क्या जानो परीक्षा की पीड़ा ? मैंने तो सारी किट्टी कैंसिल कर रखी है। हनी अचरज तथा खीज भरे मन से ऊब गया था। परीक्षा पुराण सुनते हुए उसकी आँखे घड़ी की सुई से जा टकराई। अरे छ: बज गए। मुझे जाना है जी। तुसी परीक्षा लिखो कहता हुआ निकल पड़ा।

हनी खाना खाकर सोने का प्रयास करने लगा पर नींद कहीं उड़ गई थी। वह परीक्षा के फंडे में उलझता सा गया। सोचने लगा मैंने भी पढ़ाई की है ,परीक्षाएँ लिखी हैं पर मेरे घर का माहोल तो कभी बोझिल नहीं था। अलबत्ता ज्यादा देर पढ़ाई कर भी ली तो दादा-दादी आसमान सिर पर उठा लेते। हनी अब सो जा आँख फोड़ने से कोई मतलब नहीं। समय पर सोएगा तभी तो सवेरे तरोताज़ा उठेगा। दादी का लाड़ बोल उठता। बैठक से दादाजी बोल पड़ते हनी -ओ हनिया जा पुत्तर थोड़ा खेल आ। यह भी कोई गल हुई कि किताबों में गर्दन झुकाए बैठे रहो ....।

दादी और माँ लो पुत्तर जी पीनिया खालो देसी घी में बणाई हैं। खाएगा नहीं तो दिमाग क्या ख़ाक चलेगा। ऐसी अनगिनत स्मृतियों के झूले में कब निंदिया रानी आई पता ही नहीं चला।

आज फिर शनिवार यानी शहरी सभ्यता में ‘वीक एंड’। सुबह चाय की चुस्की के साथ वह सोच रहा था कि कहाँ जाया जाए ? याद आया गुप्ता के यहाँ चला जाए। शहर में ये दोस्त ही तो हैं जो घर से दूर दराज शहर में परिवार का एहसास कराते हैं नहीं तो कभी का नौकरी छोड़ भाग जाता अपने गाँव। इस ख्याल से वह मुस्कुरा उठा। जल्दी -जल्दी तैयार हो चल पड़ा बंजारा हिल्स की ओर। बंजारा हिल्स यह कैसा नाम है ऐसा लगता है आदिवासी शब्द पर अंग्रेजी का पेंट लगा दिया हो। उसका मन गुनगुनाने लगा ... हम बंजारों की बात मत पूछो जी ...। अचानक दिल ने दस्तक दी सच में यहाँ के बंजारे कहाँ होंगे और तो ओर हिल्स माने पहाड़ पर न यहाँ बंजारे है और ना ही यहाँ पहाड़। सिग्नल ने हरी झंडी दिखाई और हाथ एक्सीलेटर पर एक साथ सडक पर गाड़ियों का सैलाब उमड़ पड़ा।

घंटी बजाई। लरजते झूलते हाथों ने सांकल खोली। सलाम साब। सलाम कासिम बी। गुप्ता उठा नहीं क्या ? सूरज सिर पर है और ये महाशय अभी तक नहीं जागे। ये शहरी लोग भी न, छुट्टी को सोने का पर्याय मान लेते हैं। वह एक ही सांस में बोलता हुआ सोफे पर जम गया। नहीं साब। वो दोनों कोसलर के पास गए हैं। क्या ? हनी का प्रश्न लम्बा हो गया ? वो इच बोलते ना कि वह सर खुजलाने लगी। वो राज बाबा को लेकर गए। आप बैठो मैं चाय बनाती हूँ। अरे रहने दो कासिम बी।  गुप्ता को आने दो साथ ही पीते हैं। कासिम बी को इतना हक़ था कि वह अतिथि का स्वागत अपने से कर सकती थी। लो साब चा ओर ये मठरी। हनी ने अखबार से चेहरा हटाया और कहा अरे वाह! कासिम बी। थैंक्यू। थंककू कैको। यह तो हमारा काम इच है। हनी ने कहा राज की तबियत तो ठीक है न ! उनका फोन भी नहीं लग रहा है। राज बाबा बिलकुल ठीक है। वो आजकल की पढाइयां भोत हो गई ना साब। इत्तू सा बच्चा मोटी-मोटी किताबां। अब आप हीच बताओ कित्ता पढ़ता कते ? उसकी बातों पर हनी मुस्कुरा उठा। सोचने लगा बड़े-बड़े डिग्रीधारियों जो समझ नहीं आ रहा वह वह इस अनपढ़ बूढी को आ रहा है। शायद अनुभव की तिजोरी इसी को कहते हैं । अरे मैं भी ये सब कैकू बोलरी। जो खोपड़ी में आता बस बोलती जाती। आप कुछ नको समझो साब कहती हुई रसोई की ओर चल पड़ी। फिर से एक बार ट्राई करता हूँ कहता हुआ उसने फोन लगाया ? हैलो... नमस्ते। कहाँ हो हनी ? आपके घर में। अच्छा- अच्छा तुम वहीं रुको दो बजे तक पहुँचते हैं। साथ में लंच करेंगे। जाना मत। ठीक है मैं सवेरे से यहाँ जमा हुआ हूँ पर यह तो बताओ आखिर हो कहाँ ? अरे यार राज को कौंसलर के पास लाए थे। आजकल चुपचाप रहता है एकदम गुमसुम। इनका बड़ा नाम है ‘गीता सरदाना’ दो महीने पहले टोकन लिया था। फ़ीस भी बहुत मोटी है यार। फोन चमगादड़ की तरह हनी के कान से चिपका हुआ था और वह चुपचाप सुन रहा था। फिर गुप्ता जी की आवाज़ ठीक है। आराम करो हम पहुँचते हैं। कासिम भी फिर गरमागरम दोसे के साथ प्रकट हो गई। लो साब कहते हुए उसने प्लेट आगे बढ़ा दी। कासिम बी तुम भी खालो। हाँ साब कहते हुए पाँव फैलाकर बैठ गई और उसने कमर से एक कपड़े की थैली निकाली। थैली क्या थी उसमें कई दराज जिसमें से कासिम बी की पान पट्टी का सामान निकले लगा। दो मुरझाए पान के टुकड़ों पर चूना मला अब कत्थे की छोटी सी डली रखी फिर चुटकी भर जर्दा। हनी ने कहा यह जर्दा मत खाया करो कासिम बी। हाँ साब लेकिन इसी के सहारे टेम पास हो जाता है। अच्छा यह बताओ आपके घर में कौन-कौन हैं ? हनी ने मानो दुखती रग पर हाथ रख दिया हो। यादों की परतें कुरेदने से हलकी सी टीस उसकी आँखों के कोरों से निकल कर चू पड़ी। सब लोग हैं साब। बेटा, बहू और दो पोते एक पोती कहते हुए लंबी उच्छ्वास छोड़ी उसने। मरद के जाने के बात बेटा बुढ़ापे की लाठी होता है अफ़सोस की वही लाठी बूढों पर कहर बन बरसती है। कहते कहते उसकी तर्जनी छोटी सी डिबिया में अटक कर रह गई। दूसरे हाथ में पान और भी ज्यादा सिकुड़ गया। न जाने मट्टी डालने भी आएगा कि नहीं। अरे ऐसी बात ना कहो कासिम बी। सब ठीक हो जाएगा। वैसे तुम्हें यहाँ आराम तो है ही न। यही तो अल्लाह का शुक्र है साब अनजाने लोग अपने हो गए और अपनों ने बेगाना कर दिया। साहब और मीना बीबी भोत अच्छे हैं। भोत ख्याल रखते हैं , अल्लाह बरकत दे इनको। बेटे ने तो कह ही दिया था कि क्या खाला का घर समझ के दोनों हाथां खाती। बस निवाला हलख से नहीं उतरा उस रोज, गला भर्रा गया। हनी का मन कसैला हो आया यह सब सुनकर। उसने स्थिति सम्भाली और कहा छोड़ो भी कासिम बी। अच्छा चाय बना लो आपके लिए भी और हाँ मुझे भी देना हँस कर हनी माहौल हल्का करने का विफल प्रयास करने लगा। अब्बी लाइ साब। कहते हुए उसने दोनों हाथ धरती से टिकाए हाथ पैरों की चरमराहट से पता चल रहा था कि ये वट उखड़ने वाला है। अच्छा कासिम बी ये आप मुझे साहब साहब क्यों बुलाती हो – बेटा कहो ना। मानो कासिम बी के फटे दिल पर प्रेम और अपनत्व का पैबंद लग गया हो। सूखे तिड़के होठों पर सफेदी की जगह ललाई दौड़ गई। या अल्लाह !तेरे कितने रूप हैं कहते दुआएँ लुटाती सी चल पड़ी अपने साम्राज्य की ओर। रसोईघर पर पूरा शासन था उसका। भाजी तरकारी जरा सी भी सड़ी-बासी निकली तो कुंजड़े की खैर नहीं।

दरवाजे पर दस्तक हुई। राजू राज और मीना ने प्रवेश किया। एसी चलाओ इतनी गर्मी में क्यों बैठे हो भई कहते हुए वह सोफे में धंस गया। कासिम बी कुछ ठंडा पिलाओ की फरमाइश करते हुए अपनी टाई ढीली करने लगा। बोलने भर की देर थी कि केवड़े की ठंडाई हाजिर। अहा ! गला तर हो गया। कासिम बी थैंक्यू। मीना भी चेंज कर आ गई। अच्छा राज कुछ खाकर तुरंत पढ़ने में लग जाओ।

जी मम्मी कहता हुआ राज अपने कमरे की ओर चला गया। अच्छा बता क्या हुआ वहाँ हनी ने पूछा। अरे डेढ़ घंटे तक काउंसलिंग चलती रही। और एक घंटा हमारी कहते हुए मीना मटर छीलने लगी। हनी को कुछ अटपटा सा लग रहा था, पहले तो यह बता कि आप लोगों के लिए यह गर्व की बात है या फिर ... बात अधूरी छोड़ कर हनी चुप हो गया। फिर उसने ही चुप्पी तोड़ी राज बिलकुल स्वस्थ है ना ! फिर क्यों डाल रहे हो उसे इन चक्करों में। राजू ने मीना की ओर देखते हुए कहा लो इन्हें तुम ही समझाओ कि आज कल के जमाने में काउंसलिंग कितनी जरुरी ही।  जमाना बदल गया है। अब तो बच्चे न जाने कौनसी बातें मन में रख लेते हैं कि अवसाद के शिकार हो जाते हैं। वैसे भी परीक्षा सिर पर है अत: पहले ही हमने दिखा लिया। इसी में समझदारी है। अब मीना ने बताया आजकल तो हर स्कूल में अलग-अलग- कौंसलर होते हैं – बिहेवियर कौंसलर,अकेडमी कौंसलर, और वो क्या है ..राजू ने बात पूरी की कॉलेज कौंसलर। जो बातें बच्चे घर में खुल कर नहीं कहते वे उनसे कहते हैं। राजू ने खुश होकर कहा। इतना ही नहीं एडमिशन के समय अभिभावकों को इन से मुखातिब होना पड़ता है। कूकर की सिटी ने मीना को बुला लिया। आज वह मटर पनीर और पुलाव बना रही है। मीना ने पूछा कासिम बी आपने कुछ खाया ? हनी की आवाज आई ‘चाय’ खाया। सभी हँसने लगे। हनी ने फिर कहा देख यार इन सबकी इतनी जरूरत है ? कि बच्चे को दबाते रहो इन सब झंझटों में ? परीक्षा के समय पूरा ध्यान रखना अच्छे पेरेंट्स के गुण हैं। और बच्चों को समय देना ...? हनी के इस प्रश्न ने राजू को थोड़ा सा हिला दिया था। उसने कहा हाँ पर इतना समय है कहाँ ? हाईटेक होती जिंदगी में घंटों बैठकर बातें करना फिजूल खर्ची जैसा है। हाँ और बच्चों को दो-दो घंटे पूछताछ के कटघरे में रखना किफायत। हनी की आवाज कुछ तीखी हो चली थी। तो तुम कहना क्या चाहते हो काउंसलिंग वाउन्स्लिंग सब ढकोसला है ? नहीं यह मैं नहीं कहता। जिसे सच में जरुरत है यह उनके लिए जरुरी है। ये तो वही बात हुई तारे जमीन पर फिल्म देखने के बाद हर माँ बाप अपने बच्चे को डिस्लेक्सिया कहने में गर्व करने लगा था। जबकि वह एक खूबसूरत संदेश था कि बच्चों की रचनात्मक एवं कल्पनात्मक क्षमता को बढ़ावा देना चाहिए ।

मीना हाथ पोंछते हुए रसोई से आई और कहने लगी चलिए खाना तैयार है। सबने जमकर खाना खाया। हनी ने कहा सच भाभी आपके हाथों में जादू है वह मुस्कुरा दी। मैस का खाने का मीनू रोज बदलता है पर मसाला एक रहता है। अनेकता में एकता कहकर हँस पड़ा उसकी दलील पर एक ठहाका लगा।

थोड़ी देर बाद कासिम बी चाय ले आई। कासिम बी कुछ सुस्ताती भी हो कि नहीं। साब बुढापे में रात को नींद आ जाए वही बहुत है। फिर साब ... अच्छा बेटा। सब हँसने लगे कासिम बी मानो दूधो नहाओ पूतो फलो वाली दुआ से सराबोर।

अब बहुत देर हो गई आज की सुबह दोपहर तुम्हारे नाम हुई। अब चलता हूँ यार गुप्ता। पूरे हफ्ते के काम निबटाने हैं। चलता हूँ। बाय राज। बाय अंकल की एक मासूम आवाज ने विदा दी। 

रात को फिर वही सवाल उसके दिमाक को झकझोरने लगे। स्वयं से ही मुठभेड़ होने लगी।। ये परीक्षा का भूत बनाकर बच्चों को भय के साए में जीने पर मजबूर करना है। यदि इन बच्चों के साथ परिवार की हर बात ख़ुशी-गमी नफा-नुक्सान अच्छा -बुरा, बदलती जीवन शैली , भाषा, सहित्य और दो पल बड़ों के साथ रहने का सुख मिल जाए तो आज यह नौबत नहीं आती। फिर एक  प्रश्न हनी तुम क्या जानों आजकल की प्रतिस्पर्धा हमारे बच्चे पीछे रह गए तो ..?

आज मनुष्य मशीनों में जुत गया है। मशीनीकरण ने सम्वेदनाओं को सोख लिया है। कौंसिल, परीक्षा का सही अर्थ ही भूला दिया गया है। ट्रेड बन गया है बस। हनी बड़बड़ाने लगा बाबूजी आना चाहते हैं तो एक कहता ही शिब्बू बिगड़ जाता है, आपके रहने से पढ़ता नहीं है। दूसरा कहता है बच्चे दूसरों को मन की बात बताते हैं। कोई इनसे पूछे कि कभी पूछा है बच्चे से , खुलकर बात की है ? घर को कचहरी बना रखा है। यह करो वह करो ....  फिर वह चेत में आया। उसका सिर भारी हो रहा था। उसने जूते उतारे,और सुराही से ठंडा पानी पीया। अब हनी का गुस्सा थोड़ा स्थिर हुआ। फिर चारपाई पर लेटते ही स्मृति की शैया पर सवार होकर अपने गाँव पहुँच गया। उसका घर दादी, बुआ, जीजी ताई, चाची ताया,चाचा पिताजी भाई भतीजों से घर भरा था। शायद ‘घर’ की परिभाषा भी यही है। किसी ने डांटा तो किसी ने पुचकारा भाई की भडास दादी के पल्लू में निकाल की। मुझे ऐसे कहा वैसे कहा .. किसने अरे किसकी मजाल कि तुझे लताड़े ..। बस हो जाते हलके, निकाल जाता गुबार। ऐसा आभास होता कि मैं दिनों टेल सुरक्षित ,सब मेरे रक्षक। गुस्सा,रोना-धोना सब का विरेचन। बच जाता हँसाना खाना और खेलना। शायद इसलिए काउंसलिंग की जरुरत नहीं पड़ती थी हमें। सहसा पड़ोस के गोलू का ख्याल आयाउसे। छुट्टी वाले दिन तो सहमत आ जाती है बिचारे की। घर में डबल डोर का फ़्रिज भरी है। चिप्स,पिज्ज़ा,बर्गर कम्प्यूटर ,इंटरनेट,सबके ठाठ है गोलू के पास। फिर भी उसकी आँखे खिड़की से चलते फिरते लोगों पर टिकी रहती है। पीछे बस्ती से बच्चों के खेलने के शोर से विचलित हो जाता है। उसका मन मैदान में उअर शरीर बंद कमरे में।

उफ़! निकला बस हनी के मुँह से। कैसा माहोल पनप रहा है? फिर बुदबुदाने लगा कि संस्कार विहीन शिक्षा बनाम दिखावा संस्कृति। यही कारण है कि ‘पब’ किशोरों से ही चलते हैं आजकल। बोया पेड़ बुल का तो आम कहाँ से पाय।

कहते हुए मुँह फेर कर सोने क प्रयास करने लगा वह।


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