लिव इन रिलेशनशिप
लिव इन रिलेशनशिप
रीमा मैडम कॉलेज के बरामदे में बैठी कुछ सोच रही थी।
“नमस्ते मैडम जी”
“अरे ख़ुशी नमस्ते- नमस्ते! आओ कहो कैसी हो ?”
“मैं ठीक हूँ लेकिन कुछ उलझन में भी। आप ही बताइए न! क्या लिव इन रिलेशनशिप कोई बुरी बात है?”
“नहीं ख़ुशी पर प्रेम का एक ही रूप मिलेगा। फूलवारी तो होगी पर फूल नहीं। अपने तो होंगे अपनापन नहीं। अधिकार तो होगा कर्तव्य नहीं। यूं मान लो सब कुछ होते हुए भी सब खाली। हम आपके हैं कौन पूछने पर भी कोई जवाब नहीं आएगा”
“बताइए न!”
“ख़ुशी, यह तो अपना नजरिया होता है” कहते कहते अतीत के पन्ने एक-एक करके उड़ने लगे।
फोन की घंटी, ट्रिन ट्रिन, “अरे देख तो रामू किसका फोन है?” कहते कहते खुद ही लपककर उठाया फोन
“हैलो ओ मेरी लाडली बेटी, अच्छा- अच्छा, सुनते हो, अजी सुनते हो”
“अरे हाँ भाई हाँ सुनता ही तो रहता हूँ बोलो भी”
“रीमा आ रही है”
“सारा घर खुशियों से भर गया। सच, जब से विदेश पढने गई है घर सूना हो गया है”
दादी ने माला फेरते-फेरते कहा “अब तो लड़का ढूँढना शुरू करो किशोरीलाल”
“हाँ-हाँ अम्मा अब तो शहनाई बजेगी इस घर में। आखिर इकलौती बेटी है। जी भरके खुशियाँ मनाऊंगा”
“रामू जल्दी बीबीजी का कमरा ठीक करो। तुम्हें तो पता ही है न! उसे सब अपनी जगह चाहिए। हे भगवान! सारा कम पड़ा है”
रामू मन ही मन कह रहा है, “देखो अम्माजी को बिटिया के आने की ख़ुशी में सब कुछ खुद ही बोली जाती है रामू ई करलो रामू वो करलो औ फिर खुद ही...”
माँ ने रीमा की पसंद का खाना बनाया खासकर मोतीचूर के लड्डू। रीमा आंधी की तरह आई , आते ही सारा घर सर पर उठा लिया।
“ओ दादी मेरी अच्छी दादी “
“अरे बिटवा कुछ खावे हो कि नाहिं, सींक सी हुई जा रही है”
“अरे दादी यह डायटिंग का जमाना है। तुम नहीं समझोगी”
“ई डाटिंग-वाटिंग का होत है ...”
“रीमा! ओ रीमा जल्दी आ बेटा खाना ठंडा हो रहा है। देख तेरे लिए मैंने क्या-क्या बनाया है कैंटीन का खाते-खाते उकता गई होगी ना”
“अरे माँ! घर में दावत है क्या? और ये लड्डू .. माँ मेरी पसंद बदल गई है। पिज्जा-बर्गर बनाती तो बात कुछ और थी। खैर” माँ की ममता का आगोश इस बदलाव में ठंडा पड़ने लगा। कुछ कहते नहीं बना।
“रीमा!”
“हाँ माँ”
“बेटी! तेरे लिए अच्छे रिश्ते आ रहें हैं”
“रिश्ते किसलिए?”
“अरे बुद्धू तेरी शादी के लिए” माँ ने चिकौटी काटते हुए कहा। रीमा सीधी होकर बैठ गई।
“नहीं माँ मैं शादी में विश्वास नहीं करती”
“रहने दे, रहने दे सब लडकियां पहले ऐसे ही कहती हैं”
“नहीं माँ प्लीज ट्राई टू अंडरस्टैंड मी”
“तो क्या तू” माँ का गला सूखा जा रहा था कि न जाने बेटी कौन सा धमाका करने जा रही है।
रीमा ने गंभीर होकर कहा “ मैं लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फैसला किया है। जहाँ कोई बंधन नहीं, कोई रोक टोक नहीं बस खुला आसमान मै और मेरा पार्टनर”
“पार्टनर क्या शादी एक व्यापार है?”
“ओफ्फो! माँ तिल का ताड़ मत बनाओ। शादी के बंधन में रहने के बावजूद समर्पण भाव नहीं बस ढोते रहो एक दूसरे का बोझा”
“ऐसा नहीं है बेटा शादी से परिवार बनता है। परिवार समाज का आधार है। परिवार में आत्मीयता होती है। ख़ुशी और गम में एक दूसरे का साथ रहता है इसलिए तो ख़ुशी दुगनी हो जाती है और गम कम”
“बस- बस माँ यह हमारा नजरिया है। आज की सोच है और फिर यह कोई अपराध तो नहीं”
“लेकिन रीमा, शादी एक बंधन है प्यार का, जिम्मेदारी का”
“यही तो मैं नहीं चाहती। किसी बंधन में बंधना और हाँ मैंने रौनी के साथ रहने का फैसला कर लिया है। हमने कॉन्ट्रेक्ट पर साइन भी कर लिए हैं। मैं कल जा रही हूँ”
“क्या...” माँ के पैरों तले ज़मीन नहीं। यह कैसी विडंबना है लिव इन रिलेशनशि के लिए रिलेशन को लीव कर रही है।