बड़ा लेखक प्रांप्ट १२
बड़ा लेखक प्रांप्ट १२
'भास्कर जी आज आप एक प्रशिद्ध हास्य उपन्यास लेखक है, सभी बड़े साहित्यिक पुरस्कार जीत चुके है। क्या आप बता सकते है कि आपने लेखन कब प्रारम्भ किया?'
'देव जी मुझे साक्षात्कार इत्यादि से थोड़ा असहजता होती है लेकिन आपने पूछा है तो बता देता हूँ कि स्कूल के दिनों से ही मैं स्कूल की मैगज़ीन के लिए लिखने लगा था, बस वहीँ से लेखन की शुरुआत हुई।'
'जो अब तक जारी है.......आप अपने प्रारंभिक लेखन से अपने इस समय के लेखन की तुलना किस प्रकार करते है?'
'देव जी लेखन एक सतत प्रक्रिया है जो समय के साथ परिपक्व होता चला जाता है मेरे लेखन के साथ भी यही हुआ होगा, इसका ज्यादा अच्छा जवाब तो मेरे पाठक ही दे सकते है।'
'हास्य लेखन ही क्यों?'
'मुझे जीवन में कठिन कार्यो से सदैव स्नेह रहा है और मेरे विचार से आज के कठिन समय में किसी पाठक के मुख पर हँसी लाना सबसे कठिन कार्य है........मेरे द्वारा सदैव अपने पाठको को हँसाने का ही प्रयास किया जाता रहा है; मैं कितना सफल हुआ हूँ यह भी मेरे पाठक ही बता सकेंगे।'
'आपके उपन्यास हर तीसरे महीने आ जाते है, इसका राज बता दीजिए क्योकि बहुत से लेखकों की पुस्तके आने में तो कई-कई साल लग जाते है।'
'लेखन मेरे लिए मेरे कार्य की तरह ही है जिस प्रकार मैं रोज अपने कार्य के लिए घर से निकलता हूँ उसी प्रकार मैं रोज कुछ न कुछ लिखता हूँ।'
'अक्सर आप विभिन्न आयोजनों में नजर आते रहते है तब आप अपने कार्यालय और लेखन कार्य को किस प्रकार व्यवस्थित करते है?'
'जूनून है देव जी जो हर चीज को व्यवस्थित कर सकता है, लेखन के प्रति मेरा जूनून सब कुछ व्यवस्थित करा देता है।'
'अच्छा भास्कर जी आपकी इतनी किताबे प्रकाशित होती है जिनसे आपको अच्छा पैसा भी मिलता होगा, फिर भी आप अपनी सरकारी नौकरी का मोह क्यों है, आप पूर्णकालीन लेखक क्यों नहीं बन जाते है?'
'देव जी जब तक सरकारी नौकरी आराम चल रही है तब तक कर लेते है, जब नहीं चलेगी तो नौकरी छोड़ कर पूर्ण कालीन लेखन करने लगेंगे। अच्छा देव जी अब फिर एक आयोजन के लिए निकलना है.......आप अनुमति दे तो निकल जाऊँ?'
'अरे बिलकुल सर, आपने जो समय दिया उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।'
देव को विदा कर मशहूर हिंदी हास्य उपन्यास लेखक ने अपने मैनेजर कालू राम को अपनी स्टडी में बुलाया और गुर्रा कर बोला, 'क्यों बे कालू के बच्चे जब तुझे मना कर रखा है कि मेरे पास किसी पत्रकार को साक्षात्कार देने का समय नहीं है, तब भी उस फटीचर पत्रकार को तूने मेरी स्टडी तक आने दिया, लगता है तेरा नौकरी से मन भर गया है, सुधर जा निकम्मे नहीं तो लात मारकर बाहर निकाल दूँगा। अच्छा मैक, दीपा और मोहन कहाँ है आज?'
'हुजूर कल आपके कहने से ही छुट्टी दी थी उन्हें……….'
'कालू र कालू, तुझे महीनें के पंद्रह हजार इसलिए देता हूँ कि उन तीनों के सिर पर चढ़कर उपन्यास लिखवाता रह, मैं छुट्टी भी दे दूँ तब भी उनसे तीन चार घंटे लेखन कार्य करवा लिया कर। एक बात और समझ ले उन्हें सिर्फ मेरे अंदाज में लिखना है और कभी उनके घोस्ट राइटर होने का किसी को पता लगा तो उन्हें घोस्ट ही बनवा दूँगा। चल जा उन सबको वापिस बुला और काम पर लगा और ये आयोजन करने वालो से एक लाख से कम में बात मत किया कर यार महंगाई ने कमर तौड़ रखी है, और सुलेख पुरस्कार वालो से कह देना इस बार यह पुरस्कार झुन्ना मल को ही दे दे, उसने इनाम के लिए पाँच लाख देना तय कर लिया है, अपना तीन लाख काट कर दो लाख उन्हें पहुँचा देना। एक बात और ध्यान रखा कर आयोजनों की मेरी स्पीच खुद ही लिखा कर पहले पता नहीं किस से लिखवा कर दे दी थी। किसी औरत से लिखवाई थी क्या जो पूरा भाषण स्त्रीलिंग में था और मैं भी पंद्रह मिनट तक बस औरत बनकर भाषण देता रहा, वो तो आयोजकों ने मुझे पानी पिलाने के बहाने बताया कि मैं भाषण में औरत बना हुआ था.....खैर जो हुआ सो हुआ अब आगे से ध्यान रखना।'
'हुजूर गलती हो गई, मैंने वो भाषण दीपा जी से लिखवा लिया था; अब ऐसा कभी नहीं होगा हुजूर।'
'ठीक है चल जाकर काम पर लग जा, ड्राइवर से कह गाड़ी निकाल ले और सीधा डमरू नाट्यशाला चले वहाँ पर जुली रानी से मिलकर ही आयोजन में जाऊँगा।'
'जी हुजूर ऐसा ही होगा।'