Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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बच्चों का प्रिय भारतीय सुपरहीरो-शक्तिमान

बच्चों का प्रिय भारतीय सुपरहीरो-शक्तिमान

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कक्षा में प्रवेश करने के उपरांत सामान्य अभिवादन के बाद अधिकांश था रोज की तरह कक्षा की मॉनिटर जिज्ञासा ने अपनी जिज्ञासा कक्षा में पधारे गौरव सर के सामने संस्कृत के एक श्लोक और उसके बाद अपना प्रश्न के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहा-

"विद्या विवादाय धनम् मदाय , शक्ति: परेषां परपीडनाय।

 खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् , ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।

सर, इस श्लोक में जिस मूल भाव को प्रस्तुत किया गया है उसे स्पष्ट करके हम लोगों का आप ज्ञानवर्धन करेंगे। ऐसा मेरा अपनी और सभी सहपाठियों की ओर से निवेदन और आग्रह है।"


गौरव सर ने कहा-"जिज्ञासा बेटी ! तुम और तुम्हारी पूरी कक्षा बड़े ही मनोयोग के साथ हर विषय को गहराई से समझने का प्रयास करते हो। साहित्य किसी भी रूप में हमें एक आदर्श जीवन पथ पर आगे अग्रसर होने का मार्ग प्रदर्शित करता है। साहित्य हमें जीवन के आदर्शों से परिचित कराता है और जो साहित्य जिस देश क्षेत्र में रचा जाता है। वह उस देश क्षेत्र की भौगोलिक, सांस्कृतिक ,सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप और और उनको समाविष्ट करके ही रचा जाता है और वह उस समाज का दर्पण होता है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति उसका अध्ययन करके उस क्षेत्र के भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक इत्यादि अनेकानेक पक्षों से अवगत होता है। संस्कृत हमारे देश की अधिकांश भाषाओं विशेषतया उत्तर भारत की भाषाओं जननी के रूप में जानी जाती है अर्थात इन भाषाओं का विकास देववाणी अर्थात संस्कृत भाषा से ही हुआ। आज के इस युग में लोगों का झुकाव विदेशी भाषाओं की तरफ हो रहा है जबकि विदेशी भाषाओं को सीखने में बहुत अधिक समय लगने के बाद उनके प्रयोग में वह निपुणता हासिल नहीं हो पाती जो हमें अपनी मातृभाषा को थोड़ा प्रयास करके सीखने में आ जाती है। इसके व्यावहारिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए अगर बात कही जाए तो कितने अधिक बच्चे और उनके माता-पिता या अभिभावक गण इस बात पर बड़ा ही गौरव महसूस करते हैं कि उनकी हिंदी कमजोर है। वास्तविकता होती है कि हिंदी सीखने में वे लापरवाही बरतते हैं इसलिए उसका जो अपेक्षित ज्ञान सहजता से प्राप्त हो सकता था। वे उसे वंचित रह जाते हैं और अंग्रेजी या दूसरी विदेशी भाषाओं को बहुत अधिक परिश्रम के साथ सीखने पर भी भी उसे बहुत अच्छे से सीख नहीं पाते। इस स्थिति में उनकी स्थिति उस कहावत के अनुरूप हो जाती है कि 'धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का'। हिंदी पर वे ध्यान नहीं देते और विदेशी भाषा उनको बहुत अच्छे से आती नहीं क्योंकि अपने घर ,आस-पास ,मित्रों ,रिश्तेदारों से वार्तालाप में तो हिंदी का प्रयोग करते हैं और जब अध्ययन की बात आती है तो वे हिंदी की उपेक्षा करते हैं और अच्छे से सीखने का प्रयत्न नहीं करते। उनका विशेष ध्यान अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं को सीखने पर ही केंद्रित रहता है। इसी तरह देते हैं की विज्ञान या नई तकनीक का ज्ञान तो अंग्रेजी भाषा के माध्यम में ही उपलब्ध है। "


थोड़ा सा रुक कर गौरव सर बोले-"अब हम तुम्हारे श्लोक और उसके उसकी सरल व्याख्या के बारे में तुम सब बच्चों को बताते हैं। तुम सब इसे ध्यानपूर्वक सुनना और अच्छे से समझ कर आत्मसात करना। हमारा ज्ञान कोरा सिद्धांत न होकर व्यावहारिक होना चाहिए। हम सब जीवन में जो भी सीखते हैं उसे हम सब अपने जीवन में व्यावहारिक रूप में भी लागू करें। सभी विषयों के साथ यही होना चाहिए कि उस विषय का अनुप्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में भी कर सकें। श्लोक को हम सरल रूप में कह सकते हैं कि 'हमें यत्नपूर्वक विद्या ग्रहण करने के समय अधिकाधिक ज्ञानार्जन करना चाहिए। हम जो धन अर्जित करते हैं उसके अर्जन में हम पूरी तरह ईमानदार रहें। हमारा धन हमारी आवश्यकता को पूरा करने वाला होना चाहिए। हम सभी को अपना शारीरिक, मानसिक ,बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास पूरे यत्न के साथ करते हुए शक्तिशाली और सामर्थ्यवान बनना चाहिए। विद्या ,धन और शक्ति का दुष्ट लोग क्रमश: विवाद करने, मद अर्थात अहंकार प्रदर्शन और शक्ति दूसरों को कष्ट देने में प्रयोग करते हैं। जबकि सज्जन लोगों की विद्या ज्ञान के प्रसार और जन सामान्य के की सुख सुविधा अर्थात लोक कल्याण के लिए और समाज के सभी लोगों के जीवन के उत्थान के लिए, उनके द्वारा अर्जित धन सदैव दूसरे जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए और शक्ति का प्रयोग निर्बल लोगों की रक्षा के लिए किया जाता है।' "


बोलने से पूर्व अनुमति प्राप्त करने के लिए अपना दायाँ हाथ उठाना कक्षा का निर्धारित संकेत है कि हाथ उठाने वाला अच्छा पूरी कक्षा के सामने अपने मन की कोई बात कहना चाहता है। 


इस संकेत के माध्यम से अनुमति प्राप्त करने के बाद गौरव सर से बोलने की अनुमति मिलने के बाद कामना बोली-"सर, कामना की कामना है कि आप विभिन्न कथाओं दंत कथाओं के नायकों की सकारात्मक प्रभाव वाली चर्चाएं करते हैं। इन कथाओं को सुनते हुए मन में काल्पनिक से भाव आते हैं। आज के समय हम सब टीवी पर बहुत सारे कार्यक्रम देखते हैं। मनोरंजन के लिए बहुत सारे कार्टून देखते हैं। कुछ कार्टून करैक्टर हमें बहुत ही रुचिकर लगते हैं। इसी प्रकार कुछ ऐसे धारावाहिकों और वृत्तचित्रों अर्थात डॉक्यूमेंट्रीज भी देखने को मिलती। है जिनमें कुछ सुपर हीरो है जैसे सुपरमैन, बैट्समैन, स्पाइडरमैन और हमारे टी वी की दुनिया के भारतीय सुपर हीरो की अगर बात कही जाए तो आर्यमान, शक्तिमान जैसे चरित्र भी हमें बहुत ही प्रिय लगते हैं। इन कार्टून करैक्टर सुपर हीरो के कैरेक्टर हम सबकी सोच पर असर डालते हैं। इनको देखकर उन सबसे जो शिक्षा मिलती है उस के माध्यम से कुछ लोग सही रास्ते पर अनुगमन करते हैं जबकि उन सुपर हीरो के द्वारा दिखाए जाने वाले कुछ स्टंट जो बड़े लुभावने लगते हैं । बहुत से लोग विशेष रूप से बचपने वाली सोच के बिना सोचे समझे उनका अनुकरण करने का प्रयास करते हैं और इस प्रयास में कई बार उन्हें शारीरिक और मानसिक समस्याओं या परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है। कक्षा में हम सब का मार्गदर्शन करते हुए हमें अपने हमारे भारतीय सुपर हीरो शक्तिमान के बारे में कुछ विशेष जानकारी देने का करबद्ध निवेदन और आग्रह करते हैं।"


गौरव सर ने बच्चों को बताना शुरू किया-"शक्तिमान एक भारतीय टेलीविजन के मूल रूप से बने हिंदी भाषा के धारावाहिक का सुपर हीरो है। टेलीविजन के डीडी नेशनल चैनल पर 13 सितंबर 1997 से 27 मई 2005 तक इसे टेलीकास्ट किया गया था। इसका निर्माण मुकेश खन्ना ने किया था और मुकेश खन्ना ने ही इसमें शक्तिमान की भूमिका निभाई थी। इसका निर्देशन दिनकर जानी ने किया था और बृजमोहन पांडे ने इसको लिखा था। इसके 450 एपिसोड दिखाए गए थे। समाज के एक बड़े वर्ग का यह एक प्रिय सुपर हीरो था विशेष तौर पर बच्चों का।इसमें अभी हमारी कक्षा में जिज्ञासा की जिज्ञासा शांत करने के लिए सरल व्याख्या के रूप में बताएं गए श्लोक की मूल भावना को प्रदर्शित करते हुए सकारात्मक प्रेरणा देने वाला सुपर हीरो शक्तिमान सज्जनता के गुणों से समाज में सकारात्मक विचारों को प्रसारित करने का माध्यम बन रहा था। शक्तिमान के विभिन्न एपिसोड्स में शक्तिमान को अपनी शक्ति का प्रयोग दुष्टों को सबक सिखाने और अपनी शक्ति का प्रयोग लोगों की रक्षा करने में करते हुए दिखाया गया था। यह सचमुच एक सराहनीय प्रयास था।इस धारावाहिक के माध्यम से बच्चों में बुराई समाप्त करने और उनके मन में सच्चाई और नैतिकता का बीजारोपण उनके मन में करने का सफल प्रयास गया था। बाद के एपिसोड्स में ' कुछ छोटी -छोटी मगर मोटी बातें ' धारावाहिक की कड़ी समाप्त होने से ठीक पहले बताई जाती थी जो जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी थी।"


अपने मन की बात कहने के लिए जब आकांक्षा ने अपना दायां हाथ खड़ा किया तो गौरव सर मुस्कुराते हुए बोले -"जिज्ञासा की जिज्ञासा ,कामना की कामना के बाद देखते हैं आकांक्षा बेटी के मन में क्या आकांक्षा है ? हां ,बेटी ! आकांक्षा बोलिए।


"सर, एपिसोड्स में यह देखा गया की शक्तिमान आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए ध्यान करता है जिससे उसकी कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। ऐसा संदेश भी देने का प्रयास किया गया था कि इसी शक्ति के माध्यम से शक्तिमान अपने अनेकानेक कार्य करता है जो हम सबको प्रेरित करते हैं। जब यह कार्यक्रम आ रहा था तो कुछ दुर्घटनाओं की भी खबरें आई थी क्योंकि कुछ बच्चे नासमझी का शिकार होकर छत पर खड़े होकर गोल- गोल घूमने का प्रयास करने के कारण गिरकर दुर्घटना के भी शिकार हो गए जबकि कार्यक्रम में इस तरीके के स्टंट्स का अनुकरण न करने की सलाह दी जाती रही। मैं विशेष रूप से जानना चाहती थी कि शक्तिमान की कहानी की शुरुआत कहां से हुई अर्थात शक्तिमान कौन था?"


गौरव सर बोले-"ज्यादातर टीवी पर प्रसारित किए जाने वाले धारावाहिक काल्पनिक होते हैं कार्यक्रम प्रारंभ होने के पहले ही इस बारे में एक सूचना देते हैं कि यह काल्पनिक है और किसी के साथ में इसकी समानता होना महज एक संयोग होता है शक्तिमान कार्यक्रम में शक्तिमान को श्री सत्य का पुनर्जन्म दिखाया गया श्री सत्य सूर्यवंशी यों के प्रथम गुरु थे उनके पास एक शक्तिपुंज था यह शक्तिपुंज दो हिस्सों में टूट गया जिसका एक हिस्सा अच्छाई के पास चला गया और दूसरा हिस्सा बुराई के पास चला गया। शक्तिमान अच्छाई का पोषक था जबकि बुराई वाले हिस्से में जिस चरित्र को दिखाया गया है वह शक्तिमान का मुख्य दुश्मन होता है जिसे तमराज किलविश का नाम दिया गया और इन टीवी सीरियल में वह एक डायलॉग बोलता हुआ सुनाई देता है 'अंधेरा कायम रहे और यह डायलॉग बहुत ही मशहूर हुआ'।


इतने में पीरियड बदलने के लिए घंटी बजी और अगली कक्षा में ऐसी ही चर्चा के साथ फिर आने का वादा करके गौरव सर ने सभी बच्चों को आशीर्वाद और शुभकामनाएं देते हुए दूसरी कक्षा का रुख किया।


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