Prashant Subhashchandra Salunke

Horror Fantasy Children

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Prashant Subhashchandra Salunke

Horror Fantasy Children

बच गया रे बच गया...

बच गया रे बच गया...

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गाँव में जल्लोष था! सीमा पार के उस कुएं पर हर बरस की तरह इस बरस भी मुर्गों की बली दी जा रही थी। तांत्रिक जोरों शोरों से मंत्र तंत्र पढ़ रहे थे, गाँव का उत्सव संपन्न हुआ और सभी अपने अपने घर लौटने लगे...। रास्ते में छोटे सागर ने अपने पिताजी मनोहर का हाथ थाम पुछा “पिताजी हम हर साल क्यों उस कुएं पर मुर्गों की बली देते है?”

इस पर पिताजी मनोहर ने बड़े गंभीर स्वर में कहा “बेटे ये हमारे गाँव की परंपरा है... बरसो से चली आ रही है...”

सागर जवाब से संतुष्ट न हुआ उसने जिद्द करके पुछा : “पर इस परंपरा का कोई तो कारण होगा न?”

मनोहर ने एक पेड़ की छाव तलाश कर उसके नीचे बैठा और कहा “तू मानेगा नहीं, है न? तो सुन बेटे बहुत पुरानी बात है। मेरे दादाजी गोवर्धन को उनके पिताजी हरीलाल ने बताई थी। एक दिन उनके मित्र मांगीलाल पास के गाँव में अपने कुछ काम से गए थे, वहाँ से लौटने में उन्हें देरी हो गई थी, शाम का वक्त था, अंधेरा छा रहा था... इसलिये मांगीलाल जल्दी जल्दी अपने घर जाना चाहते थे, अचानक मांगीलाल को लगा की उनके पीछे पीछे कोई आ रहा है। वे सावधान हो गए। और रुक गए... तब

 भी रुक गई। थोड़ा आगे जा के उन्होंने देखा उन्हें कुछ दिखाई नहीं दिया! वे पुनः अपने रास्ते चलने लगे... कदमों की आवाज़ फिर से सुनाई दी ... तभी एक पत्थर उनके पीठ पर आकर लगा... उन्होंने पलटकर देखा कुछ दिखाई नहीं दिया! अचानक पास के आम के पेड़ की पत्तियां अचानक हिलने लगी... मांगीलाल डर गया... उसने अपने कदम तेज किये... अब कदमों की आवाज़ आनी बंध हो गई थी, वे थोड़ा सांस लेने रुके तभी फिर से वही आवाज़ आने लगी... मांगीलाल अब बेहद डर गया... वह अपने कदम गांव की और तेजी से बढ़ाने लगा। आखिरकार वो गाँव की सीमा पार के इस कुएं के पास आ पहुँचा। तभी अचानक कुएं से छपाक की आवाज़ आई और उसके बाद एक दिल को कांप देने वाली आवाज़ “बच गया रे...। बच गया.....” मांगीलाल ने देखा वो गाँव की सीमा के पास खड़ा था। डर से वो बुरी तरह काँप रहा था, बिना यहाँ वहाँ देखे वो वहाँ से सिधा गाँव की और भागा। गाँव आकर वह डर के मारे बेहोश हो गया, जब होश में आया तब उसने आसपास इकट्ठा हुए गाँव के लोगों को अपनी कहानी सुनाई। उसकी आपबीती सुन गाँव के एक बूढ़े ने बताया की “मांगीलाल आज तू थोड़े के लिए बच गया, तुम्हें पता है? आज बड़ी अमावस्या है, और जंगल में बुरी आत्मायें भटकती रहती है, पर उनके अपने इलाके होते है, दूसरे इलाकों में वे जा नहीं सकते, मांगीलाल के पीछे जो था वो सीमा पार का भूत होगा। जो मांगीलाल के पीछे पड़ा था... पर मांगीलाल ने जैसे ही अपने गाँव की सीमा में पैर रखा वो उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता था, क्योंकि उस भूत की अपनी सीमा वहाँ खत्म होती होगी, मांगीलाल को फसाने के लिए वो कुएं में गुस्से से कूद गया, ताकी मांगीलाल पलट कर देखे! पर होशियार मांगीलाल ने पलट कर देखा ही नही इसलिये उसने मांगीलाल से कहा की आज तू मेरे हाथ से बच गया रे...। बच गया.....”

एक गाँववाले ने डर से पुछा “मतलब कल वो हमें परेशान कर सकता है?”

बूढ़े ने कहा : “शायद”

सभी गाँववालो ने इसका उपाय पुछा

तब उस समझदार बूढ़े बाबा ने कहा की “हमें उस कुएं में गई अतृप्त आत्मा को तृप्त करना चाहिये... और इसलिये हर अमावस्या बली देनी होगी, मुर्गे की बली ताकी वो आत्मा संतुष्ट रहे और फिर से किसी को परेशान न करे” तब से ये पूजा हर साल गाँव में होती है, और तब से गाँव पर कोई आपत्ति भी नही आती। समझा बेटा?

बेटे सागर ने खुशी से कहा : समझ गया पिताजी, मुर्गे की बली देकर हम उस कुएं वाली आत्मा को शांत रखते है। जिससे वो हमे परेशान न करे। अब में भी हर साल इसकी पूजा करूंगा क्योंकि इसी रास्ते से मुझे स्कूल जाना होता है...।

बच्चा परंपरा समझ गया यह जानकर मनोहर पेड़ की छांव से उठ खड़ा हुआ और उसका हाथ थाम अपने घर लौट गया


बहुत पुरानी बात है, एक गाँव में धनीराम नामक चोर रहता था। चुपचाप रात को वो लोगों के घर लुटता और दिन में शरीफों की तरह अपना गुजर बसर करता... एक दिन उसके कानो पर बात आई की गाँव वालों को उस पर शक गया है और कल उसके घर की गाँव के सरपंच तलाशी लेंगे... वो बेहद डर गया... दिनभर सोचने के बाद उसे एक बढिया विचार आया... वो शाम होने की राह देखने लगा। जैसे थोड़ा अंधेरा हुआ। वह अपने घर में पड़ा सब चोरी का माल एक प्लास्टिक की थेली में डालकर,, चुपचाप गाँव के बाहर जाने लगा... वह बेहद सतर्क था की कोई उसे देख न ले। गाँव के रास्ते उसे अचानक ऐसा लगा की उसके आगे चल रहा इंसान अचानक रुक गया है, और अब वापिस मुड़कर उसके पास ही आ रहा है, उसे कुछ समझ में नहीं आया, वो बेहद डर गया और एक पेड़ की आड़ में छिप गया... कुछ देर के बाद वो आदमी लौट गया। तब उस चोर ने पेड़ पर नजर डाली वो आम का पेड़ था। उसे आम खाने की इच्छा हुई। उसने एक पत्थर उठा के पेड़ पर मारा... पर आम बहुत दूर थे। उसने पेड़ की एक डाली पकड़ के उसे हिला के देखा शायद आम गिरे! पर व्यर्थ अब उसने लालच छोड़ वापिस अपने काम पर ध्यान देना योग्य समझा... आखिरकार वह अपनी मंजिल गाँव के बाहर आये कुएं के पास पहुँच गया। कुएं में उसने वह पोटली डाल दी... उसे किसी ने नहीं देखा था, कल जब सरपंच घर की तलाशी लेगा तो उसे उसके घर कुछ नहीं मिलने वाला था, बाद में मामला शांत होते ही वो कुएं में से थैली निकाल लेगा, उसे अब चोर साबित करना मुश्किल था! इस बात से खुश होकर वो खुशी के मारे जोर से चिल्लाया ‘बच गया रे...। बच गया.....’ और वहाँ से तुरंत लौट गया...।


काश! मांगीलाल ने थोड़ी हिम्मत कर उस वक्त मुड़कर देखा होता तो! कुएं के पास का चोर धनीराम उसे दिखाई दिया होता और बहुत कुछ बच जाता... गांव झूठे अंधविश्वास से बच जाता... और हर साल बली के नाम पर कटने वाले मुर्गे भी! सही है न?


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