Prashant Subhashchandra Salunke

Fantasy Inspirational Children

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Prashant Subhashchandra Salunke

Fantasy Inspirational Children

समझदारी का फायदा

समझदारी का फायदा

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 बहुत पुरानी बात है, सुलतानपुर नामक राज्य में विजयसिंह नामक एक राजा था। उसके समर और अमर नामक दो क्रूर पुत्र और एक दिव्या नामक सुंदर पर नकचढ़ी बेटी थी। रानी पद्मावती काफी शौक़ीन थी। राजा भी बहुत विलासी और आलसी था। भोग विलास में पूरा जीवन व्यतीत करता रहा उसके राज्य में जनता बहुत परेशान थी। राजा सारा दिन महलों में ऐशोआराम में अपने परिवार के साथ पड़ा रहता इसलिए उसे प्रजा की तकलीफ का कोई अंदाजा नहीं था। जनता बड़ी लाचार थी। कुछ आगेवान मंत्री के पास गए और अपनी आपबीती कही कहा " मंत्रीजी दो साल से देश में अकाल पड़ा है खाने को रोटी तक नसीब नहीं होती। राजा को कहो कुछ करे वरना हम भूख प्यास से मर जाएंगे।“

मंत्री ने जनता की मांग को आवाज देने का तय किया क्योंकि वह मंत्री प्रजा की तकलीफ समझ सकता था पर वह बिचारा भी क्या करता? वह राजा के पास गया। राजा उस समय अपनी रानी के साथ ताश खेल रहा था। उसकी तीनों संतति खेल का आनंद ले रही थी। मंत्री ने कहा "महाराज देश में अकाल पड़ा है। प्रजा के पास खाने को रोटी भी नहीं है। कुछ करे"

यह बात सुन रानी हंस पड़ी और बोली " ऐसी छोटी छोटी बातें लेकर हमारे राजा को परेशान मत करो। उन पे वैसे भी काम का बोज रहता है। जनता के पास रोटी नहीं है तो उन्हें कहो को ब्रेड खाए!

मंत्रीने बौखला कर कहा "पर महारानी वे गरीब रोज ब्रेड कहा से लाएंगे?

महारानी पद्मावती ने कहा " बेकरी से.... हर चौराहे पर वो होती है कल तो वो मेरी सेविका चंपावती भी मेरे लिए लेकर आई थी। तो प्रजा को क्या तकलीफ है?”

मंत्री ने कहा "पर महारानी.....”

महारानी पद्मावती : “बस मंत्री.... बात पूरी हुई आप जा सकते है।“

बिचारा मंत्री क्या करता? बाहर खड़ी जनता को रानी ने दिया जवाब तो सुना नहीं सकता था! उसने बाहर आकर प्रजा को कहा की "हमारे राजा जल्द ही कुछ करेंगे

जमा हुए नागरिक बेहद खुश हुए "महाराज की जय" का नारा लगाते हुए वहाँ से बिखर गए

काफी दिनों के पश्चात भी कुछ नतीजा नहीं मिलने पर बौखलाई प्रजा फिर मंत्री से मिली और कहा "मंत्री जी अब तो हद हो गई। अब तो पीने को पानी भी नहीं मिलता। कई दिनों से हमने स्नान तक नहीं किया। तालाब और कुएं सूखे है। हम भूख और प्यास से मर रहे है।“

उनकी वेदना देख मंत्री फिर राजा से मिला और बोला " महाराज जनता ने चार दिनों से कुछ खाया नहीं है।“

इस पर वहाँ मौजूद राजा की बेटी दिव्या बोली "तो मंत्री जी उन्हें कहे की कुछ खा ले ऐसे भूखे रहना ठीक नहीं।“

मंत्री ने कहा "पर कैसे खाए नदी कुएं सूखे है। देश में अकाल पड़ा है। पीने तक को पानी नहीं।“

इस पर समर बोला " ऐसे कैसे हो सकता है। हमारे महल में देखो पानी की कोई कमी नहीं। वैसे उन्होंने भी तो इंतजाम कर रखना चाहिए.”

मंत्री ने कहा "ये काम राजा का है.....”

इसपर राजा चिढ़कर बोला "तो तुम क्या चाहते हो? हम उन भूखे नंगो के घर घर जाकर पानी भरे?”

मंत्री : “नहीं महाराज मेरे कहने का मतलब है की...”

रानी ने कहा : "तुम्हारे कहने का मतलब हम अच्छी तरह से जानते है। तुम्हारी नजर राजा के इस कुर्सी पर है। और वैसे भी उन लोगों को कुछ देकर उनकी आदत बिगाड़ने की क्या जरूरत है? आज पानी मांगेंगे कल को खाना... घर सब हम देंगे तो वे क्या करेंगे?”

मंत्री ने राजा को सलाम कर वहाँ से निकल गया। बाहर आकर उसने प्रजा को कहा "कल मेरे घर आना सब को कुछ न कुछ मिलेगा”

लोग खुश हुए "महाराज की जय” बोल वहाँ से निकल गए।

मंत्री बड़े दयालु थे प्रजा के दुख को समझते थे। उसने घर आकर अपनी पत्नी से बात की प्रजा का दुख कहा, उसकी पत्नी भी दयालु थी उसने अपने सारे जेवर उतारकर मंत्री को दिए। मंत्री ने उसके जेवर और घर का सभी कीमती सामान दूसरे देश जाकर बेच दिया और उससे अनाज खरीदा बेचे गए गहनों से खरीदा अनाज ज्यादा नहीं था पर एक हफ्ते तक सभी के लिए सभी के लिए पर्याप्त था। मंत्री ने खुशी खुशी घर की और कदम बढ़ाये।

दूसरे दिन मंत्री के घर के सामने काफी भीड़ इकट्ठा हुई थी। मंत्री ने थैली भर भर कर सबको अनाज देना शुरू किया। जनता को अनाज मिला पर वो उम्मीद से कम था। वहाँ खड़ी भीड़ ने खुसर पुसर करना शुरू किया "राजा ने ज्यादा अनाज दिया होगा पर ये मंत्री हमें थोड़ा देकर मूर्ख बना रहा है बाकी का अनाज ये खुद हड़प कर लेगा”

गुस्से हुई आवाम ने मंत्री से कहा "ए मंत्री, हमें हमारा पूरा अनाज दो। ये क्या बचा खुचा दे रहे हो!"

मंत्री ने कहा "सच मानो मैंने आपकी तकलीफ दूर करने ये तत्कालीन व्यवस्था की है। जल्द ही आप सबकी तकलीफ भी दूर होगी। मैं दूसरे देशों की नदियों को अपने देश की नदियों से जोड़ने वाला हूँ।“

पर जनता को उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ, उन्होंने क्रोधित होकर मंत्री को तब तक मारा जब तक उसके प्राण शरीर को छोड़ नहीं गए।


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