Prashant Subhashchandra Salunke

Fantasy Inspirational

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Prashant Subhashchandra Salunke

Fantasy Inspirational

पुण्यशाली

पुण्यशाली

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एक रात नींद न आने की वजह से मोहन अपने प्यारे पोधो को पानी देने में व्यस्त था। अचानक उसकी नजर उसके पडोसी केशव पर गई। उसका वर्तन उसे कुछ अजीब लगा। वो इधर उधर देख रहा था। मानो किसी से छिप रहा हो या कुछ छिपा रहा हो!

अक्सर देखा गया है की जब भी हम कुछ ढकी या छिपी चीज देख लेते है। तो उसे जानने की लालसा तीर्व हो जाती है! सही है न?

गली में कुत्ते भोक रहे थे। केशव ने कुछ पत्थर उनको दे मारे और गुस्से से बड बडाया। बहोत धीरी आवाज़ थी। मोहन सुन न पाया।

अचानक केशव के घर का दरवाज़ा खुला। और केशवकी बीवी बाहर आई। मोहन स्वाभाविक प्रतिकिया से नीचे बैठ गया उसे जानना था। आखिर माजरा क्या है। धीरे से उसने उसकी गर्दन उठाई और गमलो के बीच की जगह से वो छिप कर देखने लगा। शायद इशारो में कुछ बाते हो गई थी। जो मोहन देख न पाया। अब केशवकी बीवीने केशव को इशारे से पास बुलाया। और एक पोटली उसके हाथो में दे दी। केशव ने वो पोटली हाथ से ले इधर उधर नजर कर तुरंत बाहर की और निकल पड़ा। मोहन को केशव की इस प्रतिक्रया का अंदाजा न था। नहीं तो वो भी पहले से बाहर जाने के लिए तैयार रहता। वो अजीब सोच में पड गया। आखिर माजरा क्या है? कहा गया होगा केशव? उस पोटली में क्या होगा?

जाते हुए केशव को मोहन देखता रहा, नुक्कड़ पर एक मोड़ पर केशव मुड़ गया और जैसे सभी सवालों के जवाब को गुल कर गया।

मोहन से रहा न गया। फटाफट वो तैयार होकर। नीचे सीढ़िया उतरने लगा। अँधेरे में वो सच को ढूढने निकल पड़ा। पर मानो जैसे सपना सच होने के पहले ही नींद खुल जाए वैसे ही मोड़ पर उसे केशव वापस आते हुए दिखाई दिया पर उसके हाथो में पोटली दिखाई न दी।

मोहन कुछ पूछे उसके पहले ही केशव ने पूछा "अरे मोहन इतनी देर रात कहा जा रहा है?"

मोहन क्या बोलता?

उसने जवाब दिया "बस जरा चहल कदमी करने निकला हुं और तुम कहा गए थे?

केशव ने हंस कर कहा "बस तुम चहल कदमी के लिए जा रहे हो। में लौट रहा हुं। एसा बोल वो चल दिया।

मोहन उसे जाते हुए देख रहा था। और सोच रहा था। कहा गया होगा यह? और कहा गई उसकी पोटली

उस रात मोहन सो न सका पूरी रात करवटे बदलता रहा। दुसरे दिन वो सब काम निबटाके घर जल्द आ गया। और केशव के घर पर निगरानी रखी। पर केशव के घर की लाईट बंध थी! आज कुछ नहीं हुआ। दो तीन दिन एसे ही निकल गए मोहन अब भूल गया था। उसकी इंतेजारी भी कम हो गई थी।

पर चोथे दिन मोहन ने रात को पीछे के कमरे की लाइट चालु देखी। उसे याद आया उस दिन भी वही कमरे की लाईट चालू थी। याने आज केशव फिर बाहर आएगा?

वह फटाफट अंदर जाकर तैयार हो गया। वापिस बाल्कनी में आकर देखा तो केशव वहाँ इधर उधर देखता खड़ा था। उसकी बीवी भी बाहर आ चुकी थी। हाथ में एक पोटली भी थी।

मोहन फटाफट अपने घर की सीढ़िया उतरने लगा। उसने ठान लिया था की आज वो सच जान ही लेगा। की आखिर माजरा क्या है। पर दुसरे ही पल उसके मन में सवाल उठा की अगर केशव ने उसे पीछा करते हुए देख लिया तो? वो क्या जवाब देगा? उसके बढ़ते कदम वहि थम गए।

आखिर सारे विचार छोड़ मोहन गली के नुक्कड़ पर आ गया। केशव हाथ में पोटली लिए निकल चूका था। मोहन चुप-चाप उसके पीछे जा रहा था।

पेड़ो के पीछे छुपते छुपाते वो केशव का पीछा कर रहा था।

अक्सर हम उस्तुस्कता वश वो करते है जो हमें नही करना चाहिए। अब देखो न मोहन एकदम सीधा साधा लड़का है पर आज वो एक मामूली सी उस्तुस्कता से किसीका पीछा कर रहा था। और वेसा भी नहीं है की उत्सुकता बुरी है। अब मोहन को इस छोटे से प्रसंग से जीवन का कितना बड़ा बोध मिलनेवाला था वो उसे क्या पता?

अचानक मोहन के पैर के नीचे कुछ आ गया शायद कोई पत्ता होगा। पर उसकी आवाज़ से केशव रुक गया। और उसने पलट कर देखा। मोहन का नसीब अच्छा की पास में ही एक पेड़ था। जिसके पीछे वह छुप गया।

केशव पलट कर देखा तब उसे कोई नहीं दिखा। पर उसके मन से शंका गई नहीं। वह वापिस पलट कर तलाशने लगा उसे यकिन हो गया था की कोई तो है। जो उसका पीछा कर रहा है

पेड़ के पीछे छिपे मोहन डर से कापने लगा। शायद उसे डर नहीं पर शर्म कह सकते है।उसे अपने आप पर शर्म महेसुस हो रही थी। की क्यों उसको यह गलत बात सूझी। अब क्या जवाब देगा वो अपने पडोशीको "की क्यों वो उसका पीछा कर रहा है"

लोग क्या कहेंगे

केशव उसी पेड़ के पास पहुँच चूका था।

आस पास नजर की कुछ न मिला तब वो वापिस अपने रास्ते निकल पड़ा।

मोहन ने चेन की साँस ली।

इंसान के सर पर से खतरा टल जाए तब वो अपनी की गलतियों को भूल फिर से उसे दोहराता है। मोहन ने भी वहि किया जिस चीज का उसे पछतावा हो रहा था, वही चीज उसने दोहराई " घर लौटने के बजाय केशव का पीछा उसने फिर से शुरू किया!

केशव आगे वालि गली से मुड गया था। और मोहन की आँखों से ओझल हो गया था।

मोहन ने उसे यहाँ वहाँ तलाशा पर केशव कही नहीं मिला। कहा गया होगा वह?

अचानक मोहन को कुछ आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज़ की और बढ़ा। कुछ कदम चलते ही सामने के मोड़ पर उसे झाड़ियो के बीच केशव दिखाई दिया।

वह पास गया और देखा तो वो मन में ही हंस पड़ा और सोचा "अरे यह क्या खोदा पहाड़ और निकला चूहा!!

और उसने केशव के पास जाकर बड़े प्यार से पूछा "यह क्या कर रहे हो केशव?"

किसीने उसे देख लिया इस सोच से बेहद गभरा कर वो बोला " कुछ नहीं। में।। में।।

केशव ने जवाब दिया में।।।में।।।वो।।

मोहन ने हंस कर कहा। "में देख रहा हुं मोहन, में देख रहा हुं। बहोत खूब भाई, आप का यह कर्म देख, मेरी आँखे भर आई। मित्र, सच में इन बेजुबान प्राणीओ के लिए तुम जो कर रहे हो। वो काबिले तारीफ है।

केशव अब संभल चूका था! उसका डर गायब हो गया था!!

वो हंस कर फिर अपने काम में लग गया। उसने पोटली में से हलवा पूरी निकाल के सामने खड़े भूखे कुत्तो की और डाली। जैसे कई जन्मो से भूखे हो वैसे कुत्ते उस भोजन पर टूट पड़े। और चंद पलो में ही वहाँ कुछ नहीं था। सिवा उनकी भूखी नजरो के।।।

केशव ने खाली पोटली को लपेट कर एक और फेका। और मोहन की और मुडा।।

कुछ कुत्ते पोटली की और कुछ मिलने की आंस से लपके। पर जान लेवा प्लास्टिक के सिवा उन बेबसो के नसीब में कुछ न आया!

केशव ने मोहन से कहा " दिल को सुकून मिलता है। इन्हें कुछ देने पर"

मोहन ने पूछा " पर इतनी रात को?

इस पर केशव ने कुछ डर कर और दिमाग का घोडा दोडाकर कहा " हा भाई दिनभर समय मिलता नहीं। और दिन में किसी ने मुझे इन्हें खाना देते देख लिया तो बोलेगा " इन कुत्तो को मैने ही सर चढा कर रखा है।

मोहन ने कहा ' सही है।

दोनों बाते करते करते घर तक पहुँच चुके थे। मोहन अब अपने बिस्तर पर सोते सोते सोच रहा था। कहते हे शांत मन हर सवालों के जवाब दे देता है। या कुछ नए सवाल भी खड़े करता है!!

मोहन ने सोचा " जब मेंने केशव को मैने पहले पुकारा तो वो डर क्यों गया? अच्छा कुत्तो को हमेशा पत्थर मारकर और गालिया दे कर भगाने वाला केशव अचानक उनके प्रति इतना प्यार क्यों बरसा रहा है।

अच्छा उसने कहा वो रोज एसा करता है। पर मुझे मालूम है वो कभी कभी ही पोटली लेकर बाहर निकलता है। फिर वो मन में ही हंस दिया। और सोचा "यह उसका निजी मामला है। रोज दे या कभी कभी। पर।।पर कुछ तो गडबड है वो मुझे देख कर क्यों डर गया था, जरुर दाल में कुछ काला है। या पूरी दाल काली है???

फिर अचानक वो अपने आप से ही ज़ोर से बोला "चल सो जा मोहन प्यारे इन सभी सवालों के जवाब के लिए तुझे कल का इंतजार करना पडेगा।।।

दो-तीन दिन सब सामान्य रहा। केशव की तरफ से कुछ हल चल नहीं थी। मोहन ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। और एकदिन उसे उसी पीछे के कमरे की लाईट चालू दिखी।

आगे क्या घटनाक्रम दोहराएगा यह तो मोहन जानता ही था। पर उसे आगे की बात जाननी थी। उस कमरे में क्या होता है वो मोहन को जानना था।

मोहन फटाफट नीचे उतर गया। अब वो केशव के घर के सामने था। ऐसे चोरी छुपी से जाते हुए कोई उसे देख न ले। यह विचार आते ही मोहन सतेज हो गया। उसने चारो और का मुआयना कर लिया। कोई देख नहीं रहा इस बात का यकीन होते ही वो धीरे धीरे कमरे की और बढ़ने लगा।

एक झाड़ी के पास जाकर वो बैठ गया। और अंदर चल रही बातचीत को सुनने लगा। आवाज़ बहोत धीमी थी। उसे कुछ स्पष्ट सुनाई नहीं दे रहा था। इसलिए वो कमरे की दीवार से चिपक के बैठ गया। अब उसे बातचित सुनाई दे रही थी। कमरे के अंदर मोहन अपनी बीवी को कुछ बतला रहा था। जो सुन उसके माथे की रेखा तंग होती गई। अब बच्चो की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

जब हमारी एक इच्छा पूरी होती है। तब हमारे मन में दूसरी इच्छा जागृत होती है। कुछ एसा ही हुआ मोहन का हाल अब उसे कमरे में झाकने की तीव्र इच्छा हुई। उसने खिड़की से अंदर झाककर देखा। अब वो सुन और देख दोनों रहा था। और उसे अंदर की बातचित सुन और देख अपने आँख और कान पर भरोसा नहीं हो रहा था। अरे उसका दुनिया से ही भरोसा उठ गया था!!! यह यह वो इंसान हे जिसे वो पुन्यशाली समझ रहा था। इतना नीच, इतना कमीना।।। ।।।

(बाकी की कहानी कल)

लेखक : प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

पुन्यशाली पार्ट 8

अंदर मोहन ने झाकना बंध किया। और नीचे बैठकर सोचने लगा की अब क्या करे? उसे किसन पर बहोत गुस्सा आ रहा था। उसकी बेशरमी पर। अंदर का द्रश्य कुछ इस प्रकार का था। किशन की बीवी ने गरमा गर्म खीर पकाई थी। और वो अपने बीवी बच्चो समेत उस खीर का लुफ्त उठा रहा था। मोहन अब तक हेरान नहीं हुआ था। हेरान तो तब हुआ जब उसने उनकी बाते सुनी।

केशव अपनी बीवी से कह रहा था " चुप चाप खाले कही। माँ और बापूजी जाग न जाए।

केशव की बीवी " नहीं जी वो तो कब के सो गए है। अब सुबह ही उठेंगे।

केशव " अरी।।।। धीरे बोल।।धीरे।।।। कही वे जाग गए तो।।। हमे खीर खाते देख गए तो।।।। उन्हें भी देनी पड़ेगी। और फीर गुस्से से अपने बच्चो को बोला " सुनो जितना परोसा है। सब खालो यह हर दो तीन दिन के बाद उन कुत्तो की मेजबानी होती है। फिर बीवी से " सब बर्तन वर्तन अच्छे से मांजना देखना किसी भी बर्तन से माँ को यह न पता चले की हमने रात को खीर खाई थी। समझ गई।

तभी एक बेटा बोला "बस माँ मेरा पेट भर गया।

किशन "नहीं नहीं खाले बेटा।।।फिर एसा मत कहेना की कभी खीर नहीं खाई।

उनकी इस तरह की बाते सुन मोहन को बहोत दुःख हुआ। जो माँ बाप अपने बच्चो को खुद भूखा रहकर पेटभर खिलाते है। वही बच्चे बड़े हो कर माँ बाप को भूखा सुलाकर खुद पेटभर कर खाते है!!!

फिर मोहन कुछ सोच कर मन ही मन बोला "नहीं।।नहीं में मोहन को सबक सिखाऊंगा, में उसे समजाऊंगा।।। कम से कम मेरे आँखों के सामने तो में यह अन्याय होने नहीं दूंगा।

और मोहन उसी जगह जाने लगा। जहा केशव बचा हुआ खाना कुत्तो को देने के लिए जाने वाला था। क्योकि खीर आज बचने वाली थी। एसा अंदाजा मोहन को उनकी बातो से पता चल गई थी।

और वो उसी और बढ़ गया।

बेचारे मोहन को क्या पता की केशव को सबक सिखाने में उसे ही जिंदगी की बड़ी सिख मिलने वाली थी!!!

मोहन उसी जगह पहुँच चूका था। उसके वहां जाते ही कुछ कुत्ते उसके करीब आए और आंस भरी आँखों से देखने लगे। मोहन को थोड़ा सा डर लगा। वैसे भी रात के उस वख्त में जहा कोई आता जाता न था और आवारा कुत्ते!!

मोहन काफी बेचेन था।

कुत्तो की नजर मोहन पर थी और मोहन की नजर सामने वाले गली पर जहा से केशव आने वाला था।

कुछ पल एसे ही गुजर गए। और तभी कुछ कदमो की आवाज़ ने। शांति को भंग कर दिया। मोहन छिपने के लिए एक झाडी के पीछे गया। कुत्ते उसकी और ही देख रहे थे। मोहन बेचेन हो गया उसे उन कुत्तो पर अब गुस्सा आ रहा था। वे उसे एसे ही देखते रहे तो केशव को पता चल जाएगा। कदमो की आहट और पास आई तभी सभी कुते उस और दोड़े। मोहन ने देखा सामने से केशव ही आ रहा था। उसने चेन की साँस ली।

केशव ने पास आकर वो पोटली खोल कुत्तो को खाना देने लगा। तभी मोहन उसके पीछे जाकर खड़ा रहा और बोला "क्या कर रहे हो केशव?"

केशव ने आज फिर मोहन को देख रूखे स्वर में कहा "देख नहीं रहा कुत्तो को खीर खिला रहा हुं"

मोहन ने हंस कर पूछा "माँ बापूजी को खिलाए बिना"

केशव के हाथ की पोटली छुट गई। जमीन पर वो गिरने से पहले ही एक कुते ने वो लपक ली और एक और भागा पिछे बाकी। वैसे भी उन्हें केशव से मतलब न था!

केशव बेबस सा मोहन के सामने खड़ा था।

मोहन ने कहा। शर्म नहीं आती केशव तुम्हे, घर में माँ बापूजी को छोड़ कर तुम अकेले हलवा पूरी खाते हो? बचा खाना इन कुत्तो को खिलाते हो। इन कुत्तो को? जिन्हें रोज तुम फटकारते हो गालिया देते हो! जिन्हें तुम्हारी पोटली से मतलब है!! इन कुत्तो को?

केशव : मोहन मेरी बात सुन।।।

मोहन: बस केशव बस।।।। में सब जानता हुं, मुझे अब गोल गोल मत घुमा। शर्म आनी चाहिए तुम्हे केशव। माँ बाप ने तुम्हे इतने लाड प्यार से पाला। बड़ा किया। खुद भूखे रहकर तुम्हे खिलाया। झोपडी में रहेते थे न? जिस घर में तुम रहेते हो वो घर तुम्हारे पिताजी की बदोलत है। पेट काट काट कर उन्होंने जो घर बनाया आज उसी घर से तुम उन्हें काट रहे हो?

जिन बच्चो को तुम हलवा पूरी खिला रहे हो आज जो भी वो देख रहे है कल वही सीखेंगे। कभी वे भी बड़े होंगे और तुम लाचार। तब तब केशव इन कुत्तो की तरह ही तुम लाचार खाने की तलाश में दर दर भटकोगे। केशव।।।।।

तभी केशव की आँखों से आंसू आ गए और वो बोला "बस मोहन बस पहले मेरी बात सुन मेरे भाई फिर तेरे मन में आए तो पैर की चप्पल निकाल कर मुझे मारना।

इसके बाद केशव बोलने वाला था और मोहन सुनने वाला था!!!

 कुछ एसा जिसे सुन मोहन सुन हो जाने वाला था। क्या कहा एसा केशव ने?

केशव ने कहा "मोहन यह तूने जो भी देखा या सूना वो सच होते हुए भी सच नही है!!

मोहन : मतलब?

केशव : कभी कभी आँखों देखी और कानो सुनी बात भी गलत होती है। दोस्त हम देखते है और सुनते है पर समझते हमारी मर्जी से है। हमे वो ही समझ आता है जो हमने अपने अनुभवों से सिखा हो। उसके पार हम न तो जानना चाहते है। न ही समझना!!!

दोस्त तुझे पता है यह छुप छुप कर खाने का सीलसिला कुछ महीनो से ही शुरू हुआ है। मेरे बच्चो ने खीर आज पहेली बार देखी! और चखी।

वो रोज मुझे पूछते पिताजी यह खीर क्या होती है? हलवा पूरी कैसा होता है? यह मेवा मिठाई क्या है? में डांट कर उन्हें चुप करवा देता। पर हम कभी घर में बनवाते नहीं!! जानते हो क्यों?

क्यों की मेरे माँ और बापूजी को हाई डाईबिटिझ है। डॉ। ने उन्हें मीठा खाने से मना किया है।

पर वे मीठा देख अपने आप को रोक नहीं सकते। सुगरफ्री उन्हें पसंद नही। उसमे बनाये हुए पकवान में वे शक्कर डाल कर खाते है। अब शक्कर उनके लिए जानलेवा हो गई है।

में भी क्या करू मोहन क्या करू। में बेटे के साथ साथ एक पिता भी हुं। अपने माँ बापूजी के लिए। में उनका जी कब तक तड़पाऊ। और बेटो की ख़ुशी के लिए अपने माँ बाप को कैसे मोत के करीब ले जाऊ!!

इसीलिए मैने यह बीच का रास्ता अपनाया। मेरी बीवी भी यह पूरा ख़याल रखती है की माँ बापूजी को किसी भी बर्तन को देख यह पता न चले की क्या बनाया है नहीं तो वे भी वही खाने की जिद्द करेंगे। जानबुझ कर वो मीठा खाना ज्यादा बनाती है ताकि बेटे पेट भर के खा सके वो कहेती है बार बार एसा छुप के खाना अच्छा नहीं। सो जो बना है पेट और जी दोनों भर कर खाओ!!

मोहन कुत्तो को पत्थर मार कर भगाने का कारण है। उनके भोकने से माँ बापूजी की नींद खुल जाती है। वे सो नहीं सकते!!

बोल मोहन तुही बोल। में क्या करू।

मुझे माँ बापूजी भी चाहिए। और बच्चो से भी प्यार है। इतना बोल मोहन घुटनों के बल गिर गया और रोने लगा। अपना खाना खाने के बाद वापिस लोटे कुत्ते बेचेनी से उसकी आसपास घुमने लगे। उसे चाटने लगे। और आसमान की और देख भोकने लगे।

और मोहन।।मोहन ज्यादा देर तक वहाँ रुक न सका। रुकता भी कैसे उसे उसके विचार पर घिन्न आ रही थी। शायद आज के बाद उस पुन्यशाली से वो नजरें भी मिला न सकेगा !


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