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Prashant Subhashchandra Salunke

Fantasy Inspirational

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Prashant Subhashchandra Salunke

Fantasy Inspirational

माँ का खत

माँ का खत

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"बा, मुझे बताओ, मुझे क्या लिखना है ?"

कमलाबा पिछले कुछ दिनों से बहुत परेशान चल रही थी। इस बार भारी बारिश के कारण खड़ी फसल बह गई। घर में अन्न का दाना नहीं था। एक दूध देने वाली गाय थी उसकी भी सर्पदंश से मौत हो गई। छत के पतरे कट गए थे। हर रात उसकी आँखों से बहते आँसुओं और छत से टपकते पानी के बीच जुगलबंदी चलती रहती थी।

जैसे-जैसे चश्मे का नंबर बढ़ता गया, आंखें ठीक से देख नहीं पाती थीं। उनका स्वास्थ्य भी दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था। डॉक्टर ने दवा लिख दी थी लेकिन इतनी महंगी दवा के पैसे कहां से लाएं ? अंत में, वह शहर में रहने वाले एकलौते बेटे अंकुर को पूरी स्थिति से अवगत कराने के बारे में सोचते हुए, एक पत्र लिखने के लिए लहिया के पास आई थी।

"मुझे बोलोने बा को क्या लिखना है ?"

ह्रदय की पीड़ा को कमलाबा को कागज पर उतारना चाहती थी । लेकिन बेटे को नाराज़ करने को दिल राजी नहीं हुआ। आखिरकार आँख में आए आंसू को पौछते हुए उसने कहा, “लिखो। बेटा, तुम वहाँ खुश तो हो न ?”


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