सोच
सोच
एक सुंदर औरत रास्ते से जा रही थी। यहाँ वहाँ नजर घुमाते, बाग़ बगीचों की सुन्दरता देखते वह रास्तो से जा रही थी। तभी अचानक एक गेंद आकर उसके सर पर लगी। वह वहि बेहोश हो गई। आसपास लोग इक्कठा हो गए। जिन बच्चो की गेंद उस औरत को लगी थी। वे भी वहाँ पहुँच गए। वहाँ जमा हुई भीड़ ने गुस्से से उन बच्चो पर टूट पड़े, कहते हैं कि भीड़ "बिना सर का राक्षस" होता है। न सोच न विचार! बच्चो ने माफ़ी मांगी।
उसमे से एक बच्चा मनोहर जो रईस खानदान से था। उसने अपने ड्राइवर की मदद से उस महिला को गाड़ी में डाला। अपने दोस्तों को गाड़ी में बिठा वो अस्पताल की और निकल पड़ा।औरत अभी भी बेहोश थी।कोन थी वो औरत?उसे कुछ होगा तो नहीं?और अगर कुछ हो गया तो वो खेल खेल में न जाने किस झमेले में पड़ जाएंगे?रास्ते में कही छोड़ भी नहीं सकते थे, क्योकि भीड़ में से कुछ सेवा भावी उन्ही के पीछे पीछे आ रहे थे!
अस्पताल के बाहर सब खड़े थे। डोक्टर अंदर उस महिला को चेक कर रहे थे। थोड़ी देर बाद वे बाहर आए। चिंतित मनोहर से डो। ने कहा "सब ठीक है। उस महिला के सर पर चोट लगने से वो बेहोश हो गई थी। अब होश में है। हमने चोट पर मरहम लगा दिया है। सब ठीक है। मामूली सा घाव है। आप उन्हें घर ले जा सकते है।वह महिला बाहर आई
मनोहर ने झिझक से कहा। "आईये में आपको घर छोड़ दूँ । आप कहाँ रहती हैं ?
दिल दहेलाने वाला जवाब मनोहर को मिला "घर मेरा घर कहाँ है? में कौन हुं?
सभी सुन।।
दोस्त आपस में इशारे से एक दुसरे को जैसे पूछ रहे हो। "अब क्या करे?"
तभी उस महिला की खिलखिलाने की आवाज़ आई। "अरे में ठीक हुं। मजाक कर रही हुं। मनोहर तुमनें मुझे पहचाना नहीं में तुम्हारे पिताजी के दोस्त गणपत की पत्नी तुम्हारी विमला आंटी हुं। पहचाना? हममम छोटे थे तब घर आए थे। पिताजी घर आए थे तब तुम्हारे बर्थ डे के फोटो दिखाए थे। इस लिए में तुम्हे पहचान गई।
मनोहर के अब जान में जान आई उसने पूछा "आंटी एसा मजाक क्यों किया? हमारी तो जान ही निकल गई थी।
विमला आंटी "बच्चो तुम्हे सबक सिखाने सोचो तुम्हारे लापरवाह खेल से किसी के साथ क्या क्या हो सकता है?"
बच्चे एक साथ बोले "सोरी आंटी"
हँसते हुए सभी ने विमला आंटी को घर छोड़ आए।
उस रातविमला अपने कमरे में बाल सवार रही थी। गणपत उसे देख रहा था। उसके मुरझाये चहरे को। उसकी दर्द से भरी आँखों को। उसके फिक्के चहरे को!!क्या हुआ विमला? उसने पूछा
विमला ने चौंक कर जवाब दिया। "कुछ नहीं तो, सो जाए।"और लाईट बंद कर दीपर गणपत के सोच को वो बंद न कर सकी।यह अचानक क्या हो गया विमला को? हमेशा हँसती विमला आज इतनी गुमसुम क्यों है? क्या उसे आज उस गेंद से कोई अंदरूनी चोट लगी हो। और उसे छिपा रही हो! या वह चोट उसे तकलीफ दे रही हो?ठीक है कल सुबह फिर से डॉ के पास ले जाऊँगा। एसा सोचते सोचते न जाने कब उसे नींद आ गई!
गनपत डॉ के सामने बैठा था। डॉविमला को चेक कर रहा था।
गणपत "सब ठीक है न डॉ ।"
डॉ।: हा सब ठीक है, एक्स रे रिपोर्ट भी सही है। आप की पत्नी एकदम नार्मल है।"
गणपत :" नहीं डॉ, वो नोर्मल नहीं कुछ तो है, वह न पहले जेसी हँसती, न मुस्कुराती, बस अकेले अकेले रहती है। न किसी से मिलती है। न ज्यादा बात करती है।"
डॉ : में यह दवाईया लिख देता हुं, आप उन्हें दे दे. ठीक है?"
गणपत : धन्यवाद डॉ ।
इस बात को कुछ महीने बीत गए। विमला का स्वभाव दिन ब दिन बिगड़ता जा रहा था। वो चिड चिड़ी सी रहने लगी थी। एकदम से वह बूढी लगने लगी थी। बाल सफ़ेद होते जा रहे थे। चेहेरो पर झुरिया अब स्पष्ट रूप से दिख रही थी। सुंदरता की वह मूर्ति, कुछ तितर बितर हो गई थी। कुछ था जो उसे अन्दर ही अंदर खाए जा रहा था।
क्या था वह? इस सोच में गणपत पागल सा होता जा रहा था। डॉ भी अब कहते कुछ नहीं हुआ सब ओके है। पर ओके कहा है!!
उसी में एक दिन दरवाजे की घंटी बजी।गणपत ने दरवाज़ा खोला सामने मनोहर था।गणपत ने मनोहर से स्मित के साथ स्वागत करते कहा "आओ मनोहर, अरे सुनो देखो तो कोन आया है?
अंदर से विमला की झलाई सी आवाज़ आई "कोन है?" और इतना बोल वो कमरे से बाहर आई।
मनोहर उसे देखता ही रह गया। और गभराकर गणपट से पूछ बैठा "यह यह क्या हुआ है आंटी को?यह सुन विमला गुस्से से बोली
"यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है। सिर्फ तुम्हारी। तुम्हारी गेंद और तुम्हारे खेल, और नासमझी का नतीजा भुगत रही हुं में। आज मेरी इस हालत के सिर्फ तुम और तुम्ही जिम्मेदार हो।"
गणपत बीच में बोला "क्या कह रही हो विमला? उस घटना का तुम्हारी इस हालात से क्या तालुक? तुम्हारी चोट तो उसी दिन ठीक हो गई थी!"
विमला ने चिड कर कहा "अच्छा तो यह क्या है?"मनोहर और गणपत अचभित से देखते रहे।"
गनपत ने पूछा 'क्या विमला क्या दिखा रही हो?"
विमला सीढ़िया उतरकर नीचे आई, और उसने अपने सर के आगे के बाल उठा कर दिखाए। उस पर एक चोट का दाग था। बाल नीचे कर विमला बोली " गर्व था मुझे अपनी सुंदरता पर। पर उस दिन तुम्हारी गेंद मेरे सर पर लगी और यह मनहूस दाग छोड़ गई। जब भी आईने में देखती हुं मेरी नजर इसी दाग पर जाती है। और मेरे सभी किए श्रृंगार को जैसे यह दाग चिढ़ा रहा हो एसा महेसुस करती हुं। इस दाग ने जैसे मेरी सुन्दरता पर एक ग्रहण लगाया है! किसी को चेहेरा दिखाने तक शर्म महेसुस करती हूँ ।"
और वो रोने लगी। गणपत ने उसे रोने दिया।
फिर गणपत बोला " विमला मेरे मोबाइल पर एक मेसेज आया है सुनोगी? सुनो पाँव की मोच और छोटी सोच इंसान को कभी आगे बढ़ने नहीं देती!"
चाँद पर भी दाग होता है जेसी घटिया फ़िल्मी सवांदो से तुम्हे तसल्ली नही दूंगा, पर भले तुम्हे बुरा लगे यह बात जरुर कहूंगा । तुम जानती हो? इस दाग पर मेरा ध्यान आज पहली बार गया। जब तुमने दिखाया! मतलब बात इतनी बड़ी नहीं थी जितनी तुमने बढ़ा दी है! ज़रा देखो अपने आपको आईने में! दाग देख-देख कर तुमने अपने आप ही फेसला कर लिया, कि मै अब पहले जेसी सुन्दर नहीं दिखती? और माफ़ करना तुम्हारी इस फिजूल की सोच तुम पर इतनी हावी हो गई, की आज वाकई में तुम सुन्दर नहीं दिखती! और उसका कारण वह दाग नहीं तुम्हारी सोच है। तुम्हारी इस पूरी की पूरी, बुरी हालत का जिम्मेदार वह दाग नहीं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी छोटी सोच है!"
विमला पश्याताप से रो रही थी। उसके सर के सफ़ेद बाल इधर उधर लहरा रहे थे। और वो दाग़? सफ़ेद बालो के बीच वह अब भी नहीं दिख रहा था!
