बौनी उड़ान

बौनी उड़ान

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'क्या बात है? तू आज इतनी परेशान क्यों है?' तान्या ने बड़े प्यार से खुशी से पूछा।


'नहीं यार कुछ भी तो नहीं, बस वो मेरी दादी मुझे जींस, टी-शर्ट पहनने से मना करती है और कहती है कि मुझे शोभा नहीं देता कि मैं किसी बात पर खुलकर हँसू। मैं लड़की हूँ मुझे अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। गली-मुहल्ले के लोग क्या कहेंगे। दिन भर ये सब बातें ही मुझे देखते ही बोलने लगती है। कल मैं टी. वी. देख रही थी तो उन्होंने तुरंत टी. वी. बंद कर दिया और बोला- 'जाकर अपनी माँ के साथ काम करवा।' वह कभी भी मेरे भाई को मना नहीं करती जबकि वो न तो पढाई करता है, और न ही किसी का कहना मानता है।’


'अच्छा ये बात है। देख खुशी मेरी दादी मां की भी यहीं आदत है, पर मेरे मम्मी-पापा मुझे हमेशा यही कहते हैं कि बेटा हम सब की सोच अच्छी होनी चाहिए। जिससे हम कोई भी ऐसा काम न करें

जिससे किसी को किसी भी प्रकार की तकलीफ़ हो और हमें अपने ख्वाहिशों की उड़ान हमेशा ऊँची रखनी चाहिए न कि बौनी उड़ान। तू समझी कुछ?’


और तान्या मुस्कुराने लगी।


’चल हमें अपनी सोच को बांधना नहीं है। खोलकर रखना है जिससे आने वाले वक्त में हम कुछ अच्छा कर सके और अपने परिवार का नाम रोशन कर सके और तुम्हारी दादी की सोच को बदल सकें। चल जल्दी चल नहीं तो कोचिंग के लिए देर हो जाएगी।’


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