Arunima Thakur

Romance Inspirational

5.0  

Arunima Thakur

Romance Inspirational

बारिश की बूंदों जैसा प्यार

बारिश की बूंदों जैसा प्यार

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"हेलो आप ही मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर नमिता जी है ना ऑटोग्राफ प्लीज" । 

आज एक स्कूल में मेरा कार्यक्रम था। मैं बस कार्यक्रम खत्म करके बच्चों से मिलकर बाहर जा ही रही थी कि एक महिला ने मुझे रोक लिया। मैं कुछ बोल पाती उससे पहले ही वह बोल पड़ी, "मेरी बेटी भी बोल नहीं पाती है । शरमाती है, सकुचाती है । लोगों से मिलती जुलती नहीं है । मैंने उसके पीछे छुपी एक लड़की को देखा। वह सुंदर गोरी घुंघराले बालों वाली थी। 


कहने को तो मैं कह सकती थी कि मैं भी तुम्हारे जैसी ही थी। पर नहीं मुझमें और उस में जमीन आसमान का अंतर था । सबसे बड़ी बात उसकी माँ उसके साथ थी। शायद अब समाज इतना बदल, सुधर चुका है कि आज बच्चों की कमी या दोष अभिभावकों के सिर पर नहीं जाते हैं । नहीं तो मेरे मम्मी पापा को तो मेरे ऊपर शर्म आती थी । वह दोनों मेरी इस कमी के लिए एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण करते। खैर जो भी हो मुझे हकलाने के लिए हमेशा डांट ही पड़ती थी कि ठीक से बोलो और मैं जितना डांट पड़ती उतना ही ज्यादा हकलाने लगती। आज के माता-पिता जानते हैं बच्चों को संरक्षण और प्यार देने से यह बीमारी ठीक हो सकती है। पर शायद मेरे मम्मी पापा नहीं जानते थे। पांच भाई-बहनों में से चौथे नंबर की मैं बिल्कुल उपेक्षित थी। नहीं लड़की लड़के का भेदभाव तो उतना नहीं था या शायद यह वह जमाना था जहां यह भेदभाव हर घर मे इतना था कि हम लड़कियों को उसकी आदत थी। मेरे मम्मी और पापा दोनों ही बहुत सुंदर थे, मेरे भाई बहन भी । सिर्फ मैं ही ना जाने किस पर पड़ गई थी। सांवली तो नहीं पर रंग जरा सा दबा था । पतली दुबली हमेशा बीमार रहने वाली मैं, शायद मम्मी खीझ जाती थी मेरी सेवा सुश्रुषा से। भाई-बहन चिढ़ाते । पता नहीं यह सब बातें वास्तव में थी या मेरे मन की कल्पना, मैंने खुद को सबसे अलग-थलग कर दिया था ।


यही हाल स्कूल का भी था । जब घर में भाई बहन अपने नहीं, तो दोस्त या सहेलियां कहां से होती । मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी, अक्षर भी मोती जैसे । पर शिक्षकों के पूछने पर जब कोई जवाब देने के लिए खड़ी होना चाहती तो कभी-कभी या अक्सर शिक्षक झुंझला जाते, जाने दो तुम बैठो, नही तो पूरा पीरियड तुम्हारे जवाब में हीं निकल जाएगा। इस प्रकार के उपेक्षित माहौल में उसका आना खुशबू के झोंके जैसा, बारिश की बूंदों जैसा था। फिलहाल तो मैं खड़े खड़े यादो की बारिश में भीगने लगी थी।


आठवीं कक्षा शुरू हो करके एक महीना बीत गया था । अगस्त का महीना था, एक दिन जब रिमझिम बारिश हो रही थी और हम सब कक्षा में बैठे थे कि किसी के पुकारने पर हम सबकी नजर दरवाजे पर पड़ी। वहां पर वह खड़ा था, बारिश में भीगा हुआ। घुघराले बाल माथे पर चिपक गए थे। चश्मे पर भी कुछ बूंदे बारिश की थी। आप यह नहीं कह सकते कि वह बहुत सुंदर था, किसी ग्रीक देवता की तरह। पर हां वह आकर्षक था और चश्मिश पता नहीं क्यों चश्मिश मुझे हमेशा से अच्छे लगते हैं। उसने शिक्षक से अंदर आने की इजाजत लेते हुए एक हाथ से चश्मा निकालकर और दूसरे हाथ से रुमाल निकाल कर उसको पोछना शुरू किया । कसम से पता नहीं क्यो कुछ दृश्य आँखों में फोटो की तरह कैद हो जाते हैं। मुझे नहीं मालूम, सच में आज भी नहीं मालूम पर हमेशा यही लगता है मैंने उससे सुंदर दृश्य आज तक कोई देखा ही नहीं। वह अंदर आया शिक्षक को अपना परिचय दिया। शिक्षक ने उसका परिचय हम सबको दिया और कहा, "तुम थोड़ा देर से आए हो तो तुम्हारा काम पूरा करने के लिए अपने साथियों की मदद लेना" और हम सब से भी कहा, "तुम सब अपनी कापियां दे करके इसकी मदद करना"। शिक्षक से उसने कहा कि यह सब मुझे नहीं जानते हैं और मैं भी इनको नहीं जानता हूँ तो क्या आप किसी से मेरे लिए कॉपियां मांग देंगे। शिक्षक ने मेरा नाम पुकारा, "नमिता ! अपनी एक विषय की कॉपी रोज इसको काम पूरा करने के लिए दे देना"। उसकी नजर मुझ पर पड़ी मैं अपने में ही और सिमट गयी। उसकी नजर में अजीब सा उपेक्षा, हिराकत या आश्चर्य का भाव था। यह लड़की जो सबसे पीछे बैठी है, शिक्षक मुझे उसकी कापी दिलवा रही है ? 


खैर मैंने शिक्षक का कहना मान कर अपनी एक विषय की कॉपी उसकी ओर बढ़ायी। वह अपना बैग लेकर पीछे की पड़ी हुई खाली सीट पर आ कर बैठ गया । मुझसे कॉपी लेकर उसने सीधे मेरी आँखों में देख कर मुस्कुराते हुए थैंक्यू बोला। उफ़्फ़ इतनी गहरी आँखें ! यह उसकी आँखों का दोष था या मेरी उम्र का। कुछ देर बाद वह बोला, "थैंक्यू बोलने वाले को 'मेंशन नॉट' या 'योर वेलकम' कहा जाता है"। मैंने अपनी आँखें उठाकर उसकी ओर देखा वह मुस्कुरा रहा था। वह फिर बोला, "तुम गूंगी हो क्या" ? तो पूरी क्लास बोल पड़ी, "गूंगी नहीं हकली है"। शिक्षक अब तक कक्षा से जा चुके थे । होते भी तो किस-किस को चुप करवा पाते । वैसे तो मुझे आदत पड़ गई थी पर फिर भी ना जाने क्यों, ना चाहते हुए भी मेरी आँखें डबडबा आयी। क्यों लोगों की शारीरिक कमियों का उपहास किया जाता है यह जानते हुए भी कि शारीरिक कमियो का दोष हमारा नहीं होता है।भगवान की गलतियों की सज़ा हमे क्यों ? 

 यह देखकर सुकून मिला की पूरी क्लास की हंसी में उसकी हंसी शामिल नहीं थी। वह चुपचाप मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गया। दूसरे दिन कॉपी वापस करते वक्त उसने बोला, "हेलो नमिता ! मैं आनंद" और अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, "दोस्त आज से"। मैं थोड़ा चकित होकर उसे देख रही थी। फिर दिमाग ने कहा अभी उसको तुम्हारी किताबों की जरूरत है तो दोस्ती तो करेगा ही। मैं बगैर कुछ बोले सिर्फ मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद वह बोला, "तुम्हारी हैंडराइटिंग बहुत सुंदर है"। मेरे मन ने कहा यह तो मैं जानती हूँ। इस उम्र में लड़कियां यह थोड़े ही ना सुनना चाहती है। मुझे मालूम था कि कोई मुझे सुंदर नहीं कह सकता पर फिर भी दिल की ख्वाहिशों पर किसका जोर है। तब रोटेशन की सुविधा नहीं होती थी इसलिए पहले दिन हथिया ली गई जगह पूरे साल के लिए काबिज हो जाती थी। इसलिये वह रोज मेरे बगल वाली लाइन में ही बैठता था सबसे पीछेअक्सर मुझसे पेन, पेंसिल कुछ न कुछ मांगता रहता । पहले यूनिट टेस्ट के रिजल्ट आए तो हमेशा की तरह मैं कक्षा में अव्वल आई थी। वह तो एकदम आश्चर्यचकित रह गया। तुम पढ़ने में इतनी अच्छी हो तो सबसे पीछे क्यों बैठती हो ? क्लास में शिक्षकों के पूछने पर किसी भी सवाल का जवाब क्यों नहीं देती हो ? उसके इस तरह से प्रश्न पूछने पर मेरी आँखों में आँसू भर आए, मेरी आँखें उसको जैसे उलाहना दे रही हो । दो महीने हो गए तुमको आए हुए, अब तक तुम को समझ में ना आया। शायद वह समझ गया था उसने धीरे से मेरे हाथों को पकड़कर सॉरी बोला। यह उसके लिए शायद एक बहुत आम बात होगी क्योंकि वह एक बड़े शहर से आया था। पर हम छोटे शहर की लड़कियों के लिए किसी लड़के का यूँ हाथ पकड़ना, मेरा पूरा शरीर कांप गया । कुछ स्पर्श इतने पवित्र होते हैं कि रूह तक पहुँच जाते हैं । उसने अचकचा कर हाथ छोड़ दिया।


 स्कूल में चेस कंपटीशन (शतरंज प्रतियोगिता) का आयोजन किया गया था। वह उसमें भाग लेने वाला था।चेस तो घर पर मैं भी अक्सर अपने दादा के साथ खेलती थी। पर दादा जी के ना रहने के बाद से मेरा चेस खेलना छूट ही गया था। उस दिन खाली पीरियड में क्लास में यूं ही वह अकेला बैठकर प्रेक्टिस कर रहा था । मेरा भी मन किया। मैंने पूछा , नहीं नहीं शब्दों से नहीं आँखों से कि क्या मैं तुम्हारे साथ खेलूँ ? वह आश्चर्य से बोला, "तुम्हें आता है ? क्या तुम भी कंपटीशन में भाग ले रही हो"? 


मेरे साथ एक खेल खेलने के बाद वह मेरे पीछे पड़ गया कि नहीं तुम्हें भी कंपटीशन में भाग लेना चाहिए । तुम्हें यह खेल खेलना बहुत अच्छे से आता है और इसमें तुम्हें सिर्फ खेलना है बोलना थोड़ी ना है कि तुम डर रही हो । इतने सालों से मैंने कभी भी कंपटीशन में भाग नहीं लिया था। पर इस साल मेरे भाग लेने पर मेरे सहपाठी और शिक्षक दोनों ही आश्चर्यचकित थे और मैंने प्रतियोगिता में दूसरा क्रमांक पा कर सबको और भी आश्चर्यचकित कर दिया था। यह बहुत छोटी सी बात थी पर मेरा अभी स्कूल में नाम था और यह मुझ में थोड़ा-थोड़ा आत्मविश्वास भर रहा था। खाली पीरियड या खाने के समय में वह मेरे साथ बाते करता। अक्सर मुझे वह संतरे की गोली खाने को देता और बोलता इस को चूसते हुए बोलो । कभी मैं हकलाने लगती तो मेरे हाथों को थाम लेता। मैं सुन रहा हूँ ना तुम्हारी बात, आराम से बोलो। मैंने पाया कि सच में उससे बातें करते वक्त मैं हकलाती नहीं थी । क्योंकि ज्यादा बातें करने को नहीं थी इसलिए वह मेरे साथ अक्सर अंताक्षरी खेलता। उसकी आवाज बहुत प्यारी थी। वह भी गाना गाता और मुझे भी गाने को कहता। उसका पसंदीदा गाना था "छोड़ दे सारी दुनिया किसी के यह मुनासिब नहीं आदमी के लिए प्यार से भी जरूरी कई काम है प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए"। मेरा मन करता वह बस गाता रहे और मैं सुनती रहूँ। शुरु शुरु में तो कक्षा के बच्चे हंसते थे, हकली बोल नहीं पाती है और गाना गाएगी । पर उसने ना तो किसी से मेरे लिए लड़ाई की ना ही किसी को समझाने की कोशिश की । वह सिर्फ मुझे सुधार रहा था। मेरा आत्मविश्वास बढ़ा रहा था, इतना कहकर कि दूसरों की ओर मत देखो, दूसरों की बातें मत सुनो, सिर्फ वही करो जो तुम्हें अच्छा लगता है ।


उसके हाथों का स्पर्श, संतरे की गोली, उसके स्नेह के साथ तीन साल बिल्कुल मानो पंख लगा कर उड़ गए। सच में अच्छा समय इतनी जल्दी क्यों बीत जाता है ? हमारी दसवीं की परीक्षा हो गई थी । कहने की बात नहीं हम सभी बच्चे अच्छे नंबरों से पास हो गए थे । ग्यारहवीं में हल्की हल्की दाढ़ी मूछों और शारीरिक बदलाव के साथ हम सब बड़े हो गए थे। दो महीने में एक झिझक सी आ गई थी। अब हमारी कक्षा में जोड़े बनने लगे थे । लड़के लड़किया आपस में खुशर पुशुर भी करने लगे थे । मैं भी अक्सर उसके बारे में सोचती। उसके हाथों का स्पर्श उसकी आँखों का अपनापन सब कुछ तो कह देता । पर मैं डरती जैसे अभी मेरे दोस्त बनने पर सब उसकी हंसी उड़ाते हैं कल को कोई मेरे हकलाने के कारण उसकी हँसी न उड़ाए। उसको तो लाखों मिल जाएंगी। फिर भी दिल करता काश कभी तो वह कुछ कहे। एक दिन मैंने पूछ ही लिया कि तुम यह गाना क्यों गाते हो तुम्हें कोई प्यार मोहब्बत का गाना अच्छा क्यों नहीं लगता ? वह बोला, "शायद मैं बहुत पुराने विचारों का हूँ। मैं अपने मम्मी पापा की बहुत इज्जत करता हूँ। मेरे एक चचेरे भाई ने एक लड़की के प्यार में पड़ कर अपना कैरियर अपनी जिंदगी सब बर्बाद कर ली थी। मैं अपने मम्मी पापा को चाचा चाची की तरह हैरान परेशान नहीं देख सकता"। मैंने उसे कुरेदते हुए पूछा, "हर लड़की एक सी तो नहीं होती"। वह बोला, "पता नहीं पर मेरे लिए प्यार मायने नहीं रखता है। पर हाँ तुम्हारी दोस्ती मायने रखती है। और मैं सारी जिंदगी यह दोस्ती निभाऊंगा । तुम भी निभाओगी ना"?

 मैं कहना चाहती थी मैं तो प्यार निभाने को भी तैयार हूँ। पर मेरा हकला होना मेरे आड़े आ गया ना मैं आंखों से बोल पाई ना मुँह से। मुझे भी उसकी बात सही लगी । रिश्ता वो रखा जाए जो जिंदगी भर निभाया जा सके। हम बाद में सालों तक साथ पढ़े । दिल में उसके लिए सिर्फ उसके लिए ही जगह होते हुए भी कभी कह नहीं पायी। बस इंतजार करती रह गई कि शायद कभी उसको मेरे प्यार का एहसास होगा। पर मेरी यह कोशिश अधूरी थी क्योंकि शायद मैं खुद नहीं चाहती थी कि उसको मुझ हकली के प्यार का एहसास भी हो। अजीब है ना दिल क्या चाहता है क्या नहीं चाहता है उसे खुद नहीं मालूम होता । मेरा पहला प्यार ... हा सच मे बारिश की बूंदों जैसा , जिसमे हम निर्णय नही ले पाते हम भीगना चाहते है या नही। वास्तव में हम भीगना चाहते तो है पर......। आज भी वह मुझे बड़े गर्व से सबसे मिलवाता है। यह देखो यह मेरी सवसे अच्छी दोस्त, मेरी बचपन की सहेली । मैं चिल्ला चिल्ला का कहना चाहती हूँ यह मेरा पहला प्यार है जिससे मुझे जीना सिखाया । पर आज भी थोड़ा बहुत हकलाती हूँ। बहुत सारी बातें आज भी नहीं कह पाती बस मुस्कुरा कर रह जाती हूँ।


मैंने मुस्कुराते हुए डायरी में ऑटोग्राफ दिया और पर्स से कुछ संतरे की गोलिया निकाल कर उस लड़की को देते हुए बोला, "तुम बहुत प्यारी हो इनको खाते हुए बोला करो और उसके सिर पर हाथ फेर कर उसकी माँ से बोला इसको डॉ आनंद को दिखा दो वह बहुत अच्छे स्पीच थैरेपिस्ट है। 



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