बारह सौ की सैंडिल
बारह सौ की सैंडिल
वकील का सुबह सुबह ही फोन आ गया....बधाई हो....हो गया आपका तलाक .....नहीं जी, आपको आने की जरूरत नहीं है, सारे कागजात कलेक्ट कर मैं ही आ जाऊँगा आपके घर। बाकी बातें वहीं कर लेंगे।
बाकी बातें.....क्या बचा है....अच्छा....वकील की बची फीस !
मात्र पंद्रह दिन की शादी, और ग्रहण लगा गई बारह सौ की एक सैंडिल। अगर एक सैंडिल दिलाने की हैसियत नहीं थी तो शादी ही क्यों की थी ?
हनीमून था, माल में घूम रहे थे, लग गई सुनहरे रंग की वह सैंडिल अच्छी,... लेने के लिए कहा तो गिनाने लगे कि अभी तो शादी के तमाम कपड़े, ज्वेलरी, सैंडिल, सब तो नए हैं, पहले उन्हें तो एक बार पहन लो।
बात तो मान की थी, जो नयी-नयी शादी में एक सैंडिल नहीं खरीद सकता है, वह जिंदगी में क्या मान-मनुहार करेगा। कितना रोई, चीखी, चिल्लाई, पर फर्क नहीं पड़ा बंदे को।
हनीमून कैंसिल करवा कर घर वापस लौट गये। मम्मी को फोन किया तो मम्मी ने भी कितनी बातें सुना दीं कि हमने बहुत लाड़ से पाला है अपनी लाड़ली को, आधी रात को भी माँगा तो चाँद-सितारे खरीद दिया और तू एक सैंडिल नहीं खरीद पाया....तू क्या निभायेगा हमारी बेटी से ?
जवाब में क्या कहा कि जो लड़की एक सैंडिल के लिए इतना हंगामा मचा सकती है....उससे दुख-सुख में साथ निभाने की क्या उम्मीद ?
तलाक की धमकी भी किसी काम नहीं आई, बल्कि हामी भर दिया कि... ले लो तलाक, मेरी भी रजामंदी है।
और तलाक....वह तो अब हो गया है....सब कुछ वापिस ले लिया है, धूल चटा दी है....पर अब यह सैंडिल पैरों में इतनी चुभ क्यों रही है.....?