बाँझ का इल्जाम
बाँझ का इल्जाम
मैं कुछ दिनों के लिये अपने मायके आई। पता चला कि मेरी बचपन की सहेली ममता भी नौकरी के सिलसिलेमें वापस यही आई। जब उसे पता कि मैं यहाँ हूँ तो उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया।
मैंने सोचा आज संडे है वो घरमें ही होगी तो मैं उसे मिलने उसके गई। उसने मुस्कुराकर मेरा स्वागत किया। मुझे गले लगाकर ड्राईंग रुम में सोफे पर बिठाकर मेरे लिये चाय बनाने किचन में चली गई। मैं उसके घर की सजावट देखती रह गई। उसके घर में मैंने एक बड़ा शोकेस देखा जिसमें ढेर सारे खिलौनो से भरा था। सुंदर कई तरह खिलौने थे।
उड़ती खबरें भी सुनी थी कि जिनमें ममता के बाँझ होने की चर्चा भी थी। जब वो चाय लेकर आई तो उसकी मासुम सूरत देखकर मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि उस सिलसिले में कुछ पूछूँ।
मैं उसका दिल दुखाना नहीं चाहती थी। मुझे देककर उसे राहत सी महसुस हुई। उसे मुझ पर बहुत भरोसा था। कई दिनों बाद उसे ऐसा लगा जैसे उसो कोई अपना मिल गया। उसके दर्द को जुबान मिल गई। धीरे-धीरे सारे राज अपने आप खुल गये। बच्चे को लेकर जो सपने ममता ने देखे सिर्फ लड़के की चाह में उनको बड़ी बेरहमी से तोड़ा गया।
मैं ये जानकर हैरान रह गई कि सिर्फ एक लड़केकी चाह में उसे तीन-चार बार अबार्शन करने के लिये मजबूर किया।
यही नहीं कि जब डाक्टरने कहा कि वो भविष्य में कभी माँ नहीं बन सकती तो उस पर बाँझ होने का इल्जाम लगाकर जाहिल और जल्लाद लोगों ने धक्के मारकर घर से निकाल दिया। और तो और अपने बेटे की दूसरी शादी भी कर दी।
एक औरत के लिये इससे बड़ी सजा और क्या हो सकती है ? एक पोते के लिये माँ की भावना के साथ ऐसा खिलवाड ! मैं सोच कर हैरान रह गई।