Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

बालिका मेधा 1.05

बालिका मेधा 1.05

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मम्मी, टेबल की दूसरी ओर थी। उस लड़के को आता देख मम्मी सतर्क दृष्टि से मुझे देख रही थीं। तब लड़के ने फुसफुसा कर मुझसे कहा, मेरे साथ गेम खेलोगी। मैंने बोलने की जगह सिर हिलाकर मना किया था। मेरे मना करने पर वह रुष्ट (Displeased) दिख रहा था। तब तक मम्मी, अपना ट्रैकसूट पहन कर हमारे पास आ गई थीं। आते ही उन्होंने लड़के पर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो लड़के ने कहा - 

आंटी, अभी मैंने 1 घंटे के लिए टेबल बुक कराई है, मगर मेरा पार्टनर अब तक नहीं आया है। इसलिए मैं, मेधा से साथ खेलने के लिए पूछ रहा हूँ। 

मम्मी एवं मैं, उसके, मेरे नाम जानने से चौंकी थीं। मम्मी ने उससे कहा - 

मेधा को अभी अपने पापा के साथ बाहर जाना है। तुम चाहो तो मैं, तुम्हारे पार्टनर के आने तक तुम्हारे साथ खेल सकती हूँ। 

लड़के की भाव भंगिमा (Gesture) से मम्मी की बात, उसे अरुचिकर लग रही दिखी थी। वह मना करने का कोई कारण नहीं ढूँढ पाया था। मन मारकर उसे हाँ कहना पड़ा था। तब मम्मी ने मुझे घर जाने के लिए कहा था और वे अपना ट्रैकसूट वापस उतारने लगी थीं। 

मैं बिना लड़के की ओर देखे, मम्मी से बाय कहते हुए क्लब से वापस घर आ गई थी। मम्मी ने मना करने के लिए बहाना किया था। मुझे पापा के साथ मार्केट नहीं जाना था। मेरे घर लौटने के लगभग 35 मिनट बाद मम्मी घर लौटीं थीं। मैं क्या हुआ यह जानना चाहती थी। फिर भी मैंने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई थी। मैं अपेक्षा कर रही थी कि मम्मी, स्वयं इस बारे में कुछ बताएंगी। 

मम्मी ने उस दिन कुछ नहीं कहा था। अगले दिन दोपहर बाद वे स्वयं अपने लिए चाय और मेरे लिए एप्पल जूस लेकर मेरे कमरे में आईं थीं। पीते हुए उन्होंने मुझसे कहा - मेधा, पता है कल तुम्हारे लौटने के बाद क्लब में क्या हुआ था!

मैंने हँसते हुए कहा - क्या हुआ था, यह मुझे आप ही तो बता सकेंगी मम्मी!

मम्मी भी मेरी बात पर हँस दी थीं। फिर मम्मी ने कहा - हाँ यह तो है। 

तब हम अपना अपना पेय पीते हुए कहने सुनने लगे थे। मम्मी ने बताया - 

उस लड़के का नाम मिलिंद है। उसने इस वर्ष कक्षा आठ की परीक्षा दी है। अतः वह तुमसे दो साल बड़ा होगा। अभी वह हमारी सोसाइटी में अपने मामा के घर आया हुआ है। वह मुझे तुम्हारे लिए कोई चुनौती खड़ी करने वाला नहीं लगा है। उससे बात करते हुए, मुझे सिर्फ तुम्हारे हित का ही नहीं अपितु मिलिंद का हित क्या है, इस बात का भी ध्यान आया था। आखिर में मिलिंद के भी तो कोई, तुम्हारे ही तरह के (हम जैसे) मम्मी-पापा होंगे। तब मैंने तय किया कि मुझे, उससे वैसा व्यवहार करना चाहिए जैसे कि मैं ही उसकी मम्मी हूँ। 

मम्मी की यह बात मुझे अप्रिय लगी। तब अपनी मम्मी को लेकर मैं स्वत्वात्मक (Possessive) अनुभव कर रही थी। मम्मी ने बिस्किट खाने और चाय की चुस्कियाँ लेने के लिए विराम लिया था। फिर कहना आरंभ किया - 

मिलिंद के साथ खेलते हुए मैंने, उससे कहा कि मेरी बेटी मेधा, तुमसे दो वर्ष छोटी और तुम्हारी बहन की तरह है। अगले छह वर्ष वह, जब तक अपने लिए अच्छे कॉलेज में प्रवेश सुनिश्चित नहीं कर लेती तब तक पढ़ने पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है। अभी वह किसी लड़के के साथ खेलना तो क्या, बहुत जरूरी ना हो तो कोई बात करना भी पसंद नहीं करती है। अभी तुम्हें भी अपना ध्यान पढ़ने पर ही फोकस करना चाहिए। 

मैं समझ रही थी कि मेरी कही बात उसे पसंद नहीं आ रही थी। मैं जानती थी कि उस लड़के का टाइप तुम्हारी तरह विशेष नहीं है। अपितु वह सामान्य साधारण तरह का लड़का है। तब भी मैं, धैर्य से अपनी बातें कहते हुए उससे बेटे जैसा व्यवहार कर रही थी। मैं जानती थी कि यह अकेला ही अवसर था जब मैं उससे बात कर रही थी। अतः मैं उसके लिए उपयोगी मार्गदर्शन का यह अवसर व्यर्थ नहीं करना चाहती थी। मैंने उससे कहा कि तुम्हारी अभी यह कोशिश होना चाहिए कि तुम खेल में या पढ़ने में अपने से अधिक अच्छे खिलाड़ी या प्रतिभाशाली कुशाग्र बुद्धि के लड़के की संगत करो। ऐसे बेहतर साथी की संगत से, हमारा खेल या पढ़ने के प्रदर्शन में सुधार आता है। मेधा टीटी की उतनी अच्छी प्लेयर नहीं है जिससे खेल कर तुम अपना गेम इम्प्रूव कर पाओ। मैंने उससे पूछा था, समझ रहे हो मैं क्या कह रहीं हूँ, इस पर उसने हामी में सिर हिलाया था। 

मम्मी ने फिर चाय-बिस्किट लेने के लिए पॉज लिया था। तब मैं सोच रही थी क्या सभी मम्मी ऐसी होती हैं, या फिर मेरी मम्मा कुछ स्पेशल है। जो मेरी ही नहीं हर लड़की की चुनौतियों को अपनी समस्या मानती हैं। साथ ही जो किसी लड़के को अपने बेटे की तरह मानते हुए उसके हित और मार्गदर्शन करने की चिंता रखती हैं। 

मम्मी ने आगे बताना आरंभ किया - 

कुछ देर की यूँ ही प्रैक्टिस करा देने के बाद मैंने मिलिंद से ‘बेस्ट ऑफ़ फाइव मैच’ खेलने कहा था। इस पर मिलिंद तैयार हो गया था। मैंने पहले गेम में खिलाते हुए उसे, 21-17 से जीत जाने दिया था। इससे मिलिंद जब खुश हो रहा था तब ही, उसका फ्रेंड आ गया था। उसे मिलिंद ने हमारे मैच तक वेट करने कहा था। उसका फ्रेंड, तब हर पॉइंट के बाद स्कोर कहने लग गया था। यहाँ से मैंने अपना ओरिजिनल गेम खेला और मिलिंद को अगले तीन गेम में अंडर फाइव अर्थात 21-3, 21-4 और 21-0 से हरा दिया था। मिलिंद इस तरह हारने से भौंचक्का रह गया था। अब मुझे उसके प्रतीक्षा करते फ्रेंड को खेलने का मौका देना था। मैंने अपना ट्रैकसूट पहनते हुए, पता है मेधा उससे क्या कहा?

मैं अपनी मम्मी की बताई बातों को सुनकर उनसे बहुत प्रभावित हुई एवं मैंने प्रसन्नता में अभिभूत होकर कहा - यू आर ग्रेट मम्मा! बताओ इस अध्याय का समापन (Finishing touch) क्या किया, आपने?


(क्रमशः) 


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