सामंत कुमार झा 'साहित्य'

Abstract

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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

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बाहर की दुनिया

बाहर की दुनिया

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रोहन... रोहन... उठो, जल्दी उठो चलो बाहर चलते है घूमने।

ये आवाज़ सुनकर रोहन उठा और बोला "क्या हुआ ? , आह ! अरे इतना दर्द क्यों हो रहा है और तुम कौन हो ?

"आराम से, आराम से, ज्यादा जोर मत डालिए आराम से उठिए।" रोहन के पास खड़ी महिला ने रोहन को दर्द में देखकर कहा।

"तुम कौन हो ?" रोहन ने फिर से वही प्रश्न किया।

"मैं विशाखा" उस महिला ने कहा।

कौन विशाखा ?" रोहन ने कहा।

"विशाखा आपकी पत्नी"

तभी कमरे में दौड़ते हुए एक तीन साल की बच्ची पापा पापा कहते हुए आती है जिसे देखकर रोहन विशाखा से पूछता है ये कौन है ?

"ये हमारी तीन साल की बेटी" विशाखा कहती है।

पापा उठ गए पापा उठ गए कहकर वह बच्ची खुश होती है।

विशाखा अपनी बेटी से कहती है हाँ बेटा पापा उठ गए तुम जाकर खेलो। 

रोहन कहता है "तुम मेरी पत्नी हो और हमारी एक बच्ची भी है पर मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा ?"

"आप छ महीने से विस्तर पर ही है, आपका एक भयंकर एक्सीडेंट हुआ था आपके पैरो में चोट आई थी और साथ में दिमाग पर भी कुछ चोट आई थी, डाक्टर आपको देखने घर पर ही आते थे अगर चल सके तो क्या हम डाक्टर के पास चले वैसे भी आप इस कमरे में ऊब गए होगें।" विशाखा ने कहा

"चलो चलते है" रोहन ने कहा

आज छह महीने बाद रोहन अपने घर से बाहर निकला था अपनी पत्नी और बच्चे के साथ। 


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