सामंत कुमार झा 'साहित्य'

Abstract

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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

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मेरे किस्से मेरी कहानियाँ,,,,पतंगबाज़ी, भाग 1

मेरे किस्से मेरी कहानियाँ,,,,पतंगबाज़ी, भाग 1

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मैं हूँ सामंत कुमार झा और आप पढ़ रहे हैं पाँच एपिसोड के सिरीज़ ‘मेरे किस्से मेरी’ कहानियाँ का पहला एपिसोड जिसका नाम है पतंगबाजी।

वैसे तो मुझे पतंग उड़ानें का कोई शौक़ नहीं था परंतु जब से मैं सहारनपुर रहने आया अपने परिवार के साथ तो वहाँ पर मुझे एक नया शौक़ चढ़ा पतंग उड़ानें का पर ये शौक़ हर साल के कुछ ही समय के लिए सीमित रहता था क्योंकि वहाँ पर एक खास दिन होता था जब आसमान में पंछी कम और पतंगें ज्यादा दिखती थी‌ और वो ख़ास दिन बसंत पंचमी का दिन होता था।

अब मैं आपको अपने बारे में एक महत्त्वपूर्ण बात बता दूँ कि मैं एक ऐसा इंसान हूँ जो होता ही रहता है अगर कोई उठाए न तो मतलब बिना किसी के नींद से जगाए मैं जागता नहीं मेरी नींद ही नहीं टूटती पर न जाने ऐसा क्या होता था कि बसंत पंचमी के दिन अपने आप नींद टूट जाती थी और मैं सीधा छत पर पहुँच जाता था उड़ती पतंगों को देखने और ऐसा ही हाल मेरे बाकी दोनों भाइयों का था हालांकि वो दोनों खुद ही उठ जाते थे और मेरे से जल्दी ही पर वो भी उस दिन उठते ही छत पर पहुँच जाते थे।

पता नहीं बसंत पंचमी में ऐसा क्या था कि हम सारा दिन छत पर टंगे रहते थे और बस सारा दिन पतंग लूटते और उड़ाते थे। हम पतंग खरीदते नहीं थे बल्कि कट के जा रही पतंगों को पकड़ते थे और उसी को पहले नीचे जमीन पर उतारते थे और फिर उसे उड़ाते थे और पतंगें लूटकर ही इतना मांझा जमा हो जाता था कि मांझा भी नहीं खरीदना पड़ता था।

आप यकीन नहीं करेंगे पर उस दिन इतनी पतंगें उड़ती थी की आसमान में सिर्फ पतंगें ही नजर आती थी और कुछ नहीं और साथ ही हम एक दिन में तकरीबन सौ पतंगें एक दिन में ही लूट लेते थे।

उन दिनों हम स्कूल में पढ़ा करते थे।बसंत पंचमी के दिन जहाँ तक मुझे याद है स्कूल की छुट्टी होती थी हाँ बस ये भी याद है कि एक बार स्कूल की छुट्टी नहीं थी तो हमने ख़ास पतंग उड़ानें के लिए छुट्टी ली थी और उस समय मैं पाँचवी कक्षा में था। उस दिन तो खाना पीना भी मुश्किल हो जाता था वैसे हम सब साथ खाते थे पर उस दिन अलग अलग खाते थे ताकि कोई पतंग निकल न जाए उस दिन एक खाता था तो दूसरा छत पर रहता था।

उस दिन हम पूरा दिन छत पर रहते थे और पतंग उड़ाते और लूटते थे। पतंग के चलते तो हमारी दूसरे बच्चों से लड़ाई भी होती थी। हम तो अपनी छत से आस पास की छत पर भी उतरकर पतंग ले आते थे।

पर जबसे 2011 में सहारनपुर छोड़ा तबसे तो पतंगें उड़ानें का शौक़ कम हो गया पर ख़त्म नहीं हुआ और आखिरी बार पतंग उड़ानें का आनंद दिल्ली में 15 अगस्त 2021 में स्वतंत्रता दिवस के दिन लिया क्योंकि दिल्ली में उसी दिन पतंग उड़ती थी हालांकि वो इतना यादगार नहीं रहा न ही किसी से लड़ाई हुई और न ही सौ पतंगें लूटी और न ही जल्दी और खुद नींद ही टूटी बस सेम थी तो एक चीज की देर तक छत पर पतंग उड़ाई।

बस इतनी ही थी मेरी पतंग बाजी की कहानी।


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