सामंत कुमार झा 'साहित्य'

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सामंत कुमार झा 'साहित्य'

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मेरी कहानी - १

मेरी कहानी - १

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नमस्ते आंटी,

नमस्ते

आज मेरा और मेरी बहन का जन्मदिन है। हाँ! हम दोनों का… अरे माफ कीजिएगा आप लोग मैं आपको अपना परिचय देना तो भूल ही गई, खैर अब याद आ ही गया है तो..

मेरा नाम रौशनी है और आज मेरा और मेरी छोटी बहन प्रेरणा का जन्मदिन है हाँ हम दोनों का जन्मदिन एक ही दिन होता है क्योंकि हम दोनों जुड़वा है हाँ बस मैं उससे ३० सैकेंड बड़ी हूँ। हम दोनों आज १५…

"रौशनी… रौशनी…"

"माफ कीजिए मुझे मम्मी बुला रही है मुझे जाना होगा बाद में आप सब को अपनी ३० सैकेंड छोटी बहन से मिलवाती हूँ।"

"हाँ, मम्मी"

मैं दौड़कर कमरे में जाती हूँ जहाँ से मम्मी ने आवाज लगाई थी

हाँ, बोलो मम्मी – मैंने मम्मी से कहा

"बेठा, जाकर तैयार हो जा ये क्या कपड़े पहन रखे जाकर बदल लें लोग आने लगे हैं फिर केक भी तो काटना है।" - मम्मी ने कहा

मैंने कहा – "हाँ मम्मी, अभी तैयार हो जाती हूँ बस २० मिनट लगेगा।"

"बस! बीस मिनट भला कभी लड़कियों को तैयार होने में इतना सा टाइम लगता है "– मम्मी ने २० मिनट सुनकर चौंकते हुए कहाफिर थोड़ा ठहर कर कुछ सोचते हुए

"आज तेरा जन्मदिन है, रोज की तरह तैयार मत हो जाना कैसे भी, अच्छे से तैयार होकर आना" – मम्मी ने कहा

"ठीक है मम्मी" – मैंने कहा 

उधर मैं तैयार होने जा ही रही थी कि प्रेरणा तैयार होकर आ गई।

"जल्दी तैयार हो जा "– प्रेरणा ने मुझे क्षण भर देखते हुए कहा।

"अभी आती हूँ तैयार होकर "– मैंने अपने कमरे की ओर जाते हुए कहा


अब मैं अपने कमरे में तैयार होने चली गई और मुझे नहीं पता कि बाहर क्या हो रहा था बस इतना जरूर है कि लोगों के बातें करने की आवाज आ रही थी। लगभग ४० मिनट बाद मैं तैयार होकर आ गई फिर थोड़ी देर बाद हमने केक काटा और फिर लगभग रात के ग्यारह बजे पार्टी खत्म हुई और सभी मेहमान अपने-अपने घर चले गए। अब मैंने और मेरी छोटी बहन ने अपने-अपने कमरे में जाकर कपड़े बदले और इतना करते-करते लगभग बारह बज चुके थे तो हम दोनों सो गए हालांकि पार्टी के बाद हमें गिफ्ट खोलना था पर बहुत रात हो जाने के कारण हम सब सो गए। 

मैं अपने बिस्तर पर लेटे हुए यही सोच रही थी कि अच्छा हुआ कल रविवार है नहीं तो गिफ्ट देखने के लिए थोड़ा और इंतजार करना पड़ता क्योंकि अगर कल रविवार नहीं होता तो स्कूल जाना पड़ता। यही सोचते-सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गई और मैं सो गई।

अगले दिन तक जाने के कारण मैं लगभग ८:३० बजे उठी और ९:३० बजे तक नहा-धोकर तैयार हुई। और फिर लोगों द्वारा दिए गिफ्ट खोलने लगी। मैं पहले गिफ्ट खोलने ही वाली थी कि मैंने देखा मेरी बहन अपने गिफ्ट नहीं खोल रही है यह देखकर मैंने उससे पूछा –

"अरे प्रेरणा! तू अपने गिफ्ट नहीं खोल रही? "- उससे गिफ्ट न खोलते हुए देखकर मैंने चौंकते हुए पूछा नहीं मैंने सुबह जल्दी उठकर खोल ली थी। - उसने मेरे सवाल का साधारण स्वर में उत्तर दिया

"अच्छा! तूने पहले ही खोल लिया तो दिखा ना क्या-क्या दिया है लोगों ने "– मैंने उसका गिफ्ट देखने की इच्छा जताते हुए कहा

"नहीं, मैं नहीं दिखा रही तू अपने खोलकर देख ले।" - उसने थोड़ा चिढ़े हुए स्वर में कहा

"लगता है गिफ्ट पसंद नहीं आए। क्या हुआ लोगों ने अच्छे गिफ्ट्स नहीं दिए क्या?" – मैंने उसका उत्तर सुनकर पूछा

"तुझे क्या करना है जानकर के गिफ्ट अच्छे हैं या नहीं तू अपने गिफ्ट देखना।" - इस बार उसने पहले से ज्यादा चिढ़े स्वर में कहा,इतना सुनकर मम्मी-पापा आ गए 

"क्या हुआ क्यों लड़ रहे हो तुम दोनों…?" – मम्मी ने पूछा

"होना क्या है ये रौशनी ने ही छेड़ा होगा इसे तभी वो चिल्ला रही है वैसे ही थोड़ी ना चिल्लाएगी वो।" - पापा ने हमेशा की तरह मुझे गलत ठहराते हुए कहा। 

"नहीं, पापा मैंने तो सिर्फ इसे गिफ्ट्स दिखाने को कहा था। "- मैंने पापा को बताते हुए कहा

"सप्ताह में एक छुट्टी मिलती है रविवार की उसमें भी तुम लोग चैन से नहीं रहने देते लड़ने लगते हो। "- पापा ने परेशान आवाज में कहा

फिर मम्मी किचन में चली गई और पापा टी.वी. देखने और मैंने चुपचाप अपना गिफ्ट खोलकर देखा।

****************************** 

सोमवार सुबह मैं और प्रेरणा स्कूल पहुँचे आज हमारा मैथ टेस्ट था।

टेस्ट शुरू हुआ मेरे तो पेपर देखकर ही होश उड़ गए क्योंकि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखूँ तो मैंने सोचा मेरी बहन जो मुझसे आगे वाली सीट पर बैठी थी उससे पूछने की सोची मुझे पूरा यकीन था कि वो मुझे बिल्कुल नहीं बताएगी फिर भी कोशिश की यह सोचकर की कहीं वो बता दें।

मैंने फुसफुसाते हुए कहा – प्रेरणा.. प्रेरणा.. बहन मुझे सारे सवाल के हल के साथ उत्तर बता दें या दिखा दे, बहन मुझे कुछ नहीं आता।

प्रेरणा ने भी बैठे बैठे पीछे की ओर झुकते हुए उसी तरह फुसफुसाहट में मुझसे कहा – मैं नहीं दिखाऊँगी, पढ़कर आया कर पर नहीं जब पापा कहते हैं पढ़ लें तब तो तुझे पढ़ना नहीं होता अब मैं क्यों दिखाऊँ। 


जिसकी उम्मीद थी वहीं हुआ मुझे पता था वो नहीं दिखाएगी पर नहीं दिखाना तो न सही पर भाषण क्यों देने लगी।

टेस्ट तो जैसे तैसे बीत गया और मुझे जो समझ आया वही लिख दिया पर चिंता थी तो इस बात की के नम्बर कैसे आएंगे।

खैर मैंने यह सोचकर कि जैसे भी आए इस नम्बर से कौन-सा फ़र्क पड़ता है अपने आपको शांत कर लिया।

अगले दिन मेरा स्कूल जाने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था पर न चाहते हुए भी जाना पड़ा और किसी तरह धीरे-धीरे स्कूल में समय गुजर ने लगा पर समय के साथ-साथ परिणाम भी नजदीक आ रहा था क्योंकि नम्बर आज ही पता चलने वाले थे।

आखिरकार न चाहते हुए भी समय आ ही गया कि नम्बर पता चले धीरे-धीरे एक-एक कर सब के नम्बर बताए जाने लगे। प्रेरणा कि बारी आई उसका नाम पुकारा गया तो वो उठकर गई और जब वापस आई तो मुसकुरा रही थी मुझे लगा अच्छे नम्बर आए है।

अब मेरा नाम पुकारा गया और मैं गई और मायूस चेहरा लेकर लौटी मेरे १० में से केवल २ नम्बर आए थे। फिर थोड़ी देर बाद छुट्टी हो गई और सब चले गए पर मुझे घर जाने का मन नहीं कर रहा था तो वही बैठ गई मुझे मायूस बैठे हुए मेरे एक दोस्त ने देखा तो उसने मुझसे पूछा क्या हुआ तो मैंने सब बताया। वो मेरी दोस्त छुट्टी के बाद भी यहाँ थी क्योंकि उसे कोई लेने आता था वो अकेली घर नहीं जाती थी।

सब जानकर उसने मुझे समझाया और कहा – 

दोस्त ने कहा – देख जो हुआ सो हुआ पर तू घर चली जा सब तेरी चिंता करेंगे।

मैंने निराश स्वर में कहा – कोई चिंता नहीं करेगा किसी को मेरी परवाह ही कहाँ है।

उसने फिर मुझे समझाते हुए पूछा – तू तो कहती थी तेरे घर में तेरी मम्मी तुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है तो अपनी मम्मी की खातिर चली जा।

उसने इतना कहा पर मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं मिला क्योंकि इतने में उसे कोई लेने आ गया तो वो चली गई।

अब मैं डरते-डरते घर पहुँची और रात को पापा घर पर आए उन्होंने हमारे नम्बर पूछे तो प्रेरणा ने तो अपने नम्बर बताए दिए पर मैंने नहीं बताए।

पापा ने थोड़ी गुस्से भरी आवाज में कहा – रौशनी तुम्हारे कितने नम्बर आए। 

तो फिर मुझे न चाहतें हुए भी बताना पड़ा। जैसे ही मैंने नम्बर बताए पापा ने गुस्सा होते हुए कहा – 

क्या! इतने कम नम्बर अरे तुम्हें शर्म आनी चाहिए, अपनी छोटी बहन को देखो, देखो जरा प्रेरणा को १० में से १० और तुम दस में सिर्फ २ नम्बर, अरे कम से कम पास होने जितने तो नम्बर ले आती। जाओ आज से दो दिन के लिए तुम्हारा खेलना, खाना बंद जाओ अपने कमरे में ।

इतना सुनकर मैं रोते हुए अपने कमरे में चली गई और खाना खाने के वक्त भी नहीं आई। जब ये सब हो रहा था तो मेरी मम्मी वहीं खड़ी थी।

रात हो गई थी और भूख के कारण नींद भी नहीं आ रही थी कि के अचानक मेरे कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने दरवाजा खोला तो बाहर मम्मी खड़ी थी वो अंदर आई उनके हाथ में खाने का प्लेट था ।

ले जल्दी से का ले भूख के कारण नींद नहीं आ रही होगी। - मम्मी ने प्लेट मेरे तरफ करते हुए जल्दी-जल्दी कहा 

नहीं मम्मी, मैं तो सो रही थी। - मैंने झूठा नींद का बहाना करते हुए कहा

झूठ मत बोलो तेरी आँखों से साफ पता चल रहा है कि तुझे नींद नहीं आ रही थी, ले अब जल्दी-जल्दी का ले नहीं तो तेरे पापा उठ गए तो तेरे साथ-साथ मुझे भी मारेंगे कि मैं तुझे खाना क्यों खिला रही हूँ। अब खा ले और सो जा और बस अगली बार से इतना पढ़ लियो कि पास हो जाए। -  मम्मी ने मेरी ओर रोटी का निवाला सब्जी लगाकर करते हुए कहा

मम्मी, आई लव यू – मैंने भावुक होकर भरे आँखों से कहा

वो क्यों? - मम्मी ने मुसकुराते हुए पूछा 

तुम्हें बिन बताए ही पता चल गया कि मुझे नींद नहीं आ रही होगी और तुम मुझे खाना खिलाने चली आई, मुझे अपने हाथों से खिलाया, मुझे पापा की डाँट से भी बचाती है और तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो। - मैंने भावुक होकर भरी आँखों से कहा

अरे मैं एक माँ हूँ और अपने बच्चों का ख्याल रखना मेरी जिम्मेदारी है। – मम्मी ने मुसकुराते हुए कहा

मैं एक बात सोचती हूँ कि तू चली जाएगी तो मेरा क्या होगा कौन मेरा ख्याल रखेगा? मैंने भावुक होकर भरी आँखों से कहा

अरे पगली लड़की जब तक मैं जाऊँगी तब तक तो तेरी शादी हो जाएगी और तू ससुराल चली जाएगी – मम्मी ने मुसकुराते हुए कहा

अच्छा मैं वादा करती हूँ कि अच्छे से पढ़ूंगी कम-से-कम इतना कि पास हो जाऊँ। मैंने भावुक होकर भरी आँखों से कहा

अच्छा ठीक है, अब सो जा। मम्मी ने मुसकुराते हुए कहा

फिर मम्मी मेरे कमरे से चली गई और मैंने अंदर से कमरा बंद कर लिया और लेट गई और कुछ देर में सो गई।



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