आलू महाराज की प्रेम कहानी
आलू महाराज की प्रेम कहानी
मेरे घर की एक बात जो मुझे बहुत दिनों तक पता नहीं थी, पर एक रात जब मै पानी पीने के लिए उठा और किचन की तरफ बढ़ा तो जाना। बात ये थी कि मेरे घर मे रोज रात को रसोई में एक चौपाल जमती थी पर वहाँ लोग एकत्रित नहीं होते थे ।यहाँ पर जो रात को एकत्रित होते थे वो पहले से ही मेरे घर में मौजूद थे और दिन निकलते ही शांत होकर अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाते थे।
वहाँ रोज रात को सब्जियाँ और बर्तन इकट्ठे होते थे।
टमाटर- "शश्...शश्... आलू भाई"।
आलू- "हाँ बोलो टमाटर"।
टमाटर- "भाई बोल दिया"?
आलू- "क्या और किससे बोलना था"?
टमाटर- "अरे! भिंडी भाभी से दिल की बात"।
आलू- "अरे कहाँ बोल पाया जैसे ही वो सामने आती है सारी हिम्मत जीरो हो जाती है"।
अब मुझे ये बाते सुनकर थोड़ी उत्सुकता हुई ।दीवार में एक छेद हो गया था जिसे बहुत दिन से ठीक नहीं करवाया था आज काम आ गया। मैं उस छेद से अब अंदर छाकर सब देखने लगा।
तभी एक चकला लुढ़कते हुए आया और वहाँ पहुँचकर रुका
चकला- (टमाटर और आलू से) "हाय भाईयो"।
टमाटर- "मै सही हूँ"।
आलू- "मै भी सही हूँ"।
चकला- (खुशी मे आलू से) "अच्छा, भाई मतलब आपने भिंडी जी को बोल दिया"।
टमाटर- (चिड़चिड़ाहट मे चकला से) "नहीं यार, भाई ने नहीं बोला"।
तभी अचानक से चकला बोला,
चकला- (उत्सुकता मे) "अरे भिंडी जी आ रही है चल टमाटर भाई यहां से चलते है भाई को 'आलू' से 'आलू भिंडी' बन जाने दे"।
टमाटर-(आलू से) "भाई अब बोल देना और हमे भी अपने ब्याह के लड्डू खिला देना"।
और फिर चकला और टमाटर वहाँ से चले जाते है और भिंडी आलू के पास पहुँचती है।
भिंडी- (शांत आवाज मे) "हाँ, आलू मुझे यहाँ क्यों बुलाया"?
आलू- (शांत स्वर मे) "भिंडी मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ"।
भिंडी- (पुनः शांत स्वर मे) "क्या"?
आलू- (भी पुनः शांत स्वर मे हिचकिचाते हुए) "मै कहना चाहता हूँ भिंडी मैं तुम्हारे साथ मिलकर 'आलू भिंडी' बनाना चाहता हूँ"।
भिंडी- (चौककर) "क्या तुम हम दोनो की सब्जी बनाना चाहते हो"।
आलू- (घबराकर) "नहीं ! नहीं ! मै तुम्हे पसंद करता हूँ"।
ये सुनते ही भिंडी वहाँ से शर्माते हुए भाग जाती है और उसके जाते ही टमाटर और चकला वहाँ आते हैं और सारी बात आलू से पूछते हैं। वह सब बात बताता है।
अब कुछ दिनों बाद आलू और भिंडी की शादी की तैयारी होने लगती है। इधर शादी की तैयारी चल रही होती है और उधर कोई भिंडी को कोई किडनैप कर के ले गया।
जब आलू को इस बात का पता चला तो वो उसे बचाने पहुँचा ।भिंडी को पालक ने किडनेप किया था तो आलू ने भिंडी को छोड़ने के लिए कहा जिसके बदले पालक ने कहा-
पालक- (गुस्से मे) "अगर तुम्हे भिंडी वापस चाहिए तो मुझे मसाले दो और भिंडी ले जाओ"।
ये सुनकर आलू ने कहा-
आलू- (चिंता मे) "अगर मैंने तुम्हें मसाले दे दिये और तुमने उन मसालों के साथ भिंडी बना ली तो मेरा क्या होगा"?
पालक- (साधारण स्वर मे) "नहीं , मै ऐसा नहीं करूँगा"।
आलू- (साधारण स्वर मे) "अगर भिंडी बनाओगे तो मुझे जरूर खिलाना"।
पालक- (साधारण स्वर मे) "जरूर! जरूर!"
इसके बाद आलू ने पालक को मसाले दिये और भिंडी लेकर चला गया। तब तक उधर शादी की तैयारी भी हो चुकी थी। जयमाला का वक्त आया जैसे ही आलू ने भिंडी को जयमाला पहनाने लगे की आलू लूढ़क गये, ये देख टमाटर और चकला समेत सारे बाराती हँस पड़े. फिर आलू ने उठकर भिंडी को जयमाला पहनाई और सात फेरों से शादी की सारी विधी पूरी हुई। विदाई के वक्त भिंडी की माँ बथुआ रोने लगी तो भिंडी के पापा परवल ने कहा आँसू मत बहाओ नहीं तो तरी वाली बथुआ कौन खाऐगा और भिंडी की बहन लौकी को करेले ने कहा-
करेला- (मजाकिया अंदाज मे) "वैसे भी तुम्हें कोई पसंद नहीं करता और तरी वाली हो जाओगी तो और नहीं कोई पसंद करेगा"।
जिस पर लौकी ने करेले को जवाब दिया-
लौकी- (ताने कसते हुए) "कह कौन रहा है"।
विदाई के वक्त भिंडी की माँ बथुआ ने भिंडी से कहा-
बथुआ- (भिंडी को समझाते हुए) "देखो आलू के साथ ब्याह हुआ है तो 'आलू भिंडी' ही बनना कुछ और मत बन जाना नहीं तो लोग कहेंगे सब्जी अच्छी नहीं बनी"।
भिंडी- (अपनी माँ से सहमती जताते हुए) "ठीक है माँ"।
इसके बाद विदाई के साथ भिंडी अपने ससुराल चली गई और आलू महाराज की प्रेम कहानी इस तरह पूरी हुई और वो आलू आलू से 'आलू भिंडी' हो गया।