Samant Kumar Jha Sahitya

Abstract

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Samant Kumar Jha Sahitya

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वह क्या था ?

वह क्या था ?

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उस दिन मौसम कुछ अलग सा था सूरज अपनी किरणें चारों ओर बिखेरे हुए था पर पिछले दिनों वारिस होने के कारण सूरज की रोशनी से होने वाली गरमी भी महसूस नहीं हो रही थी क्योंकि वारिस के कारण मौसम में कुछ ठंडक थी और हवा भी थोड़ी ठंडी चल रही थी जो बहुत अच्छा और ताजा महसूस करा रही थी। हां बस, वारिस होने का एक नुकसान हुआ था कि मिट्टी हल्की सी खिली ही थी। जिसके कारण लोग चप्पल जूते पहन कर ही व्यायाम कर रहे थे जबकि वारिस से पहले सब बिना चप्पल जूते पहने ही व्यायाम करते थे और वो आज व्यायाम करना चाहते थे चाहे मिट्टी गिली ही थी क्योंकि पिछले दिनों वारिस के चलते व्यायाम नहीं कर पाए थे। कुछ तो मिट्टी होने के कारण घर चले गए थे व्यायाम करने पर मैं रोज की तरह आज व्यायाम नहीं कर रहा था क्योंकि मुझे चप्पल जूते पहने बिना ही व्यायाम करना अच्छा लगता था हालांकि तब तो मैं घर जाकर व्यायाम कर सकता था पर नहीं मुझे इस छोटे मैदान में ही व्यायाम करना पसंद था। इस बहाने स्वास्थ्य भी ठीक रहता था और दो-चार लोगों से मिलना भी हो जाता था‌। 

उस दिन मैं मैदान में बैठने के लिए रखे बैंच पर बैठा हुआ था मैं बैंच पर अकेला ही बैठा हुआ था क्योंकि बाकी जो गिने-चुने दो-चार लोग वहां थे वो सब व्यायाम में लगे हुए थे। मैं काफी देर से बैठा हुआ था तो मुझे अब बैठे बैठे बोर होने लगा था। मैंने मन बना लिया था वहां से उठकर घर लौट जाने का पर तभी अचानक से एक औरत मुझे मेरी ओर आते दिखाई दी। उस औरत को आते देख मैं वही पर जमकर बैठ गया। वह औरत बहुत सुंदर लग रही थी लगभग ३०-३२ साल की वो औरत जिसके मांग में सिंदूर था लाल साड़ी पहने हुए थी और बालों की एक चोटी जो कंधे को लगते हुए कमर तक पहुंच रही थी होंठों पर गुलाबी रंग का लिपस्टिक लगाए हुए आहिस्ता आहिस्ता चलते हुए मुझ तक आई और मेरे पास आकर ठीक मेरे बाजू में बैठ गई मेरे और उसके बीच थोड़ी सी दूरी जिस कारण उसके से आ रही सुगंधित खुशबू मुझ तक पहुंच पा रही थी। वो नीचे देख रही थी और शायद कुछ सोच रही थी पर न जाने क्या सोच रही थी।

मेरे पास बैठने के कुछ देर बाद उसे महिला ने मेरी ओर देखा तो मुझे लगा उसे कुछ कहना हैं तो मैंने उससे पूछा कि उसे मुझसे कुछ कहना हैं तो उसने थोड़ा रूककर कहा-

वह स्त्री - (हिचकिचाहट में मेरी तरफ देखते हुए) “सुनिए।”

मैं - (उसकी तरफ देखते हुए साधारण आवाज में) “जी कहिए।”

वह स्त्री - (हिचकिचाहट में मेरी तरफ देखते हुए) “मुझे आप से कुछ कहना हैं।”

मैं - (उसकी तरफ देखते हुए साधारण आवाज में) “जी कहिए।”

वह स्त्री- (मेरी तरफ देखकर मुझसे कहते हुए) “जी मुझे आपको अपना दुख बताना हैं...”

मैं - (उसकी बात बीच में काटकर उससे पूछते हुए) “पर! आप मुझे जानती नहीं तो आप मुझे अपना दुख क्यों बताना चाहती हैं”।

वह स्त्री - (चौंककर मुझसे कहते हुए) “क्या! आप मुझे नही जानते पर (थोड़ा रूककर) मैं तो आपको जानती हूं (फिर थोड़ा रूककर) आप मुझे कैसे नहीं जानते”?

मैं - (उस स्त्री का बोलना खत्म करते ही उससे कहता हूं) “पर मैं आपको कैसे जान सकता हूं मैं तो आपसे कभी मिला ही नहीं”।

वह स्त्री - (प्रश्न भरी निगाहों से मुझे देखकर कहते हुए) “अरे! आपने मुझे पहचाना नहीं मैं.. मेरा नाम ‘पायल’ है”।

मैं - (आश्चर्य भरे चेहरे के साथ-साथ प्रश्न भरी निगाहों से उसकी तरफ देखकर उससे कहते हुए) “मैं अब भी आपको पहचानने में असमर्थ हूं। (फिर थोड़ा रूककर) आप साफ- साफ बताए आप हैं कौन”?

वह स्त्री - (अब मुझे सब सब साफ-साफ बताते हुए) मेरा नाम ‘पायल’ हैं और मैं चेतन मिश्रा की पत्नी हूं वैसे मेरा असली नाम तो ‘स्वर्णलेखा’ हैं पर चेतन जी मुझे प्यार से प्यारी पायल कहते हैं इसलिए मैं सबको अपना नाम पायल ही बताती हूं...

मैं - (एक बार फिर से उसकी बात को काटते हुए) “देखिए, आप जो कह रही हैं न वो कुछ मेरी समझ में नहीं आ रहा कौन पायल, कौन चेतन आप मुझे साफ-साफ बताइए आप हैं कौन और मुझसे क्या चाहती हैं”?

वह स्त्री -(मुझसे कहते हुए) “पहले आप मेरी बात ध्यान से सुनिए और बार-बार बीच में बात मत काटिए मुझे पहले सब कुछ बता लेने दीजिए फिर आपके जो प्रश्न हो उसे बाद में पूछ लीजिएगा”।

अब मैने कुछ नहीं कहा और वो बोलती चली गई उसने बताना शुरू किया -

वह स्त्री - (बताते हुए) “मैं आपको अपना नाम और अपने पति का नाम बता चुंकि हूं और अब मैं आपको बताती हूं कि मैं आपको कैसे जानती हूं और आपसे क्या चाहती हूं‌।

मेरा नाम पायल हैं जैसा कि अब आप जानते हो और मेरे पति का नाम भी अब आप जान चुके हों। मुझे अपने ही जन्म दिया हैं, मेरे कहने का मतलब हैं आपने ही मुझे बनाया हैं, मैं आपके कहानी की एक पात्र हूं जिसे आपने बहुत पहले रचा था एक कहानी के लिए और उसमें मेरे पति बने थे चेतन जी तो अब उनका तो देहांत हो चुका हैं और मैं विधवा हो गई हूं तो मैं चाहती हूं कि आप मेरी जिंदगी सुधार दे”।

मैं - (उस स्त्री से कहते हुए) “पहले तो आप अगर एक कहानी पात्र हैं तो आप इस दुनिया में क्या कर रही हैं और दूसरी बात मैंने तो उस पात्र जिसकी आप बात कर रही हैं तो उसे तो मैंने एक बीस-पच्चीस साल की लड़की बनाया था तो आप कैसे वो हो सकती हैं और रही बात जिंदगी सुधारने की तो वो मैं कैसे कर सकता हूं”?

वह स्त्री - (मुझसे कहते हुए) “आपके सभी प्रश्नो के जबाव हैं मेरे पास सुनिए ध्यान से मैं इस दुनिया में इसलिए आई हूं क्योंकि मैं आपसे बात करके आपसे ऐसा कुछ लिखवाना चाहती हूं ताकि मेरी जिंदगी सुधर जाए मेरे पति का देहांत हो गया हैं पर मैं विधवा का जीवन नहीं जीना चाहती। मैं चाहती हूं कि या तो आप चेतन जी को जीवित कर दीजिए या मेरी शादी किसी और से करवा दीजिए।

उस पात्र को आपने एक पच्चीस साल की लड़की बनाया था और उसे आपने कई साल पहले बनाया और समय के साथ वो बड़ी हो गई हैं और वो मैं ही हूं। आप कुछ नया लिखकर मेरी जिंदगी बदल सकते हैं जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया”।

मैं - (उसकी बातें सुनने के बाद उससे कहते हुए) “पहली बात तो मैंने तुम्हें ऐसा न बनाया था कि तुम अपने पति के जाने के बाद दूसरी शादी कर लो और रही बात जिंदगी बदलने की तो वो मैं नहीं करूंगा तुम खुद ही कर लो”।

वह स्त्री - (उसने मुझसे गुस्से में कहा) “देखो इस दुनिया में भी काफी महिलाएं अपने पति के जाने के बाद दूसरी शादी करती हैं या कई महिलाएं तो दूसरे आदमी से शादी करने के लिए अपने पहले पति को खुद ही मार देती हैं या किसी से मरवा देती हैं और केवल महिलाएं ही नहीं पुरूष भी ऐसा करते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती और अगर आपने ऐसा न किया तो मेरी मौत के जिम्मेदार आप होंगे और अगर मैं मर गई तो फिर आप कभी कोई स्त्री पात्र अपनी कहानी में रच नहीं पायेंगे।

फिर पायल वहां से उठ खड़ी हुई और मुझे यह कहकर कि मैं मरने जा रही हूं भागने यह देखकर मैं भी उठकर उसके पीछे दौड़ा इससे पहले कि मैं उसे रोक लेता वह एक तेज रफ़्तार कार के नीचे आ चुकी थी और दुनिया छोड़कर जा चुकि थी यह देखकर मेरे मुंह से चीख निकली और डर के कारण मेरी नींद खुल गई और मुझे पता चला कि मैं एक सपना देख रहा था। 

उठकर मुंह हाथ धोया और रोज की तरह मैदान में व्यायाम करने पहुंचा। जब मैदान में पहुंचा तो घबरा गया क्योंकि सब कुछ सपने जैसा ही हो रहा था। वही बारिश के बाद गिली मिट्टी कुछ ही लोग और मै व्यायाम करने की जगह मैदान मे लगी बैंच पर बैठा हुआ सपने कि तरह ही उठने वाला था कि देखा वैसी ही जैसी सपने में देखी थी उतनी ही सुंदर स्त्री मेरी तरफ आने लगी पर सपने में तो मैं उससे बात करने के लिए बैठ गया था पर यहां मैं बैठने कि जगह भाग खड़ा हुआ और अपने घर पहुंचा और यह सोचा बस किसी भी तरह ये सपना सच न हो इसलिए एक कहानी लिखी जिसमें मैंने पायल की इच्छानुसार उसके पति के गुजर जाने के बाद उसकी दूसरी शादी कर दी और उसके बाद निश्चिंत हो गया कि मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा।


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