बादाम का पेड़
बादाम का पेड़
घर के सामने ही पड़ोसी के घर में बादाम का पेड़ था जिसमे बहुत सी चिड़ियाँ और गिलहरियों का बसेरा था। मेंरे लिये वो पेड़ इसलिये विशेष था क्योंकि मैं अपने दो-ढ़ाई साल के बेटे को बादाम के पेड़ में खेलती हुई गिलहरियों, चिड़ियों को दिखाकर ही नाश्ता कराती और खाना खिलाती थी। रोज पेड़ में इनकी अटखेलियों को देखने के कारण बेटे को उन जीवों के साथ उस बादाम के पेड़ से भी प्रेम हो गया था। उस पेड़ के पत्ते जनवरी में सूखने लगते और मार्च तक नये चमकते हुये हरे पत्ते आ जाते थे, बेटा मुझे नये पत्ते दिखाकर बहुत खुश होता। जैसे-जैसे बेटा बड़ा हुआ पर्यावरण संरक्षण के लिये पेड़ के महत्व को समझने लगा और खुश होता कि घर के सामने इतना बड़ा बादाम का पेड़ है। साल में एक बार पेड़ के टहनी की छटाई होती तो वो दुखी जरूर होता था, कि मम्मी उन टहनियों को कितना दुख होता होगा जिसे पेड़ से अलग किया जाता है और मैं उसे समझाती "बेटा जैसे हम नाखुन और बाल काटते हैं और ये फिर से आ जाते हैं , वैसे पेड़ की टहनी काटने से नई टहनी आ जाती है।
एक दिन लगातार आ रही कुल्हाड़ी की आवाज ने हमें परेशान कर दिया, देखते-देखते बादाम के पेड़ की सारी टहनी काट दी गई अब वार उसके तने और जड़ पर किया जा रहा था। बेटे ने कहा "मम्मी आंटी को मना करिये कि वह पेड़ ना कटवाये, अभी तो उसमें नई पत्तियाँ आई थीं, प्लीज मम्मी उन्हे रोक लीजिये।" मैं निरूत्तर थी, मुझे एक पॉश कालोनी में रहने पर अपनी सीमायें पता थीं फिर भी हिम्मत जुटाकर मैंने कहा "भाभीजी इस पेड़ से आपके घर में ही नहीं बल्कि पूरे काॅलोनी में हरियाली थी, जड़ से ना कटे तो फिर एक साल में हरा-भरा पेड़ खड़ा हो जायेगा।" भाभी ने कहा "इसके पत्ते गिरकर आंगन को खराब करते हैं, मैं तो एक पल इसे अपने आंगन में न रखुं ,आप अपने घर बादाम का पेड़ जरूर लगवा लीजिये।" मैं बनावटी मुस्कुराहट के साथ उनसे विदा लेकर नम आँखों से घर की ओर मुड़ी। मैं भीतर से आहत थी कि काश! मैं भाभीजी को पेड़ कटवाने से रोक पाती या अपने बेटे को सच्चाई बता पाती कि आंटी आँगन में पत्तियों का कचरा न हो इसलिए वो पेड़ को कटवा रहीं हैं। दो साल बाद जब भाभीजी अपने घर के ऊपर कमरा बनवा रही थीं तीन फीट का दीवार बन पाया था कि तेज आंधी तुफान से दीवार धराशायी हो गया, भाभीजी बहुत दुखी थी कि नया बना हुआ दीवार प्राकृतिक आपदा के कारण टुट गया। भाभी जी के साथ उनकी घर का दीवार गिरने पर दुःख तो हमें भी था पर वह दृश्य बार-बार आँखों के सामने आ रहा था जब बादाम के पेड़ के कटने पर चिड़ियाँ और गिलहरियाँ टूटी डालियों में आकर बार-बार बैठते थे, शायद वो कह रहे होंगे कि पेड़ को मत कटवाओ, यही तो हमारा आशियाना है। उस समय भाभीजी काफी कठोर थीं और आज प्रकृति।